बस अगले दर्शनीय स्थल नागेश्वर के लिये चल दी। यह स्थान द्वारका से 17 किमी. दूर है। पण्डित जी ने बताया कि ये हमारे बारह ज्योर्तिलिंगो में है। यहाँ भी फोटोग्राफी मना है। और जहाँ फोटो लेना मना होता है, वहाँ मैं कभी नियम नहीं तोड़ती। उन्होंने कथा सुनाई कि सुप्रिय नामक धर्मात्मा, सदाचारी एक वैश्य शिव भक्त था। वह अपनी सभी उपलब्धियों को शिव का आर्शीवाद मानता था। दारूक नामक राक्षस को शिव भक्ति करना पसंद नहीं था इसलिये उसे सुप्रिय फूटी आँख नहीं भाता था। एक बार वह नौका पर सवार अपने साथियों के साथ जा रहा था। दारूक ने उन पर आक्रमण करके, सबको कैद कर जेल में डाल दिया। सुप्रिय जेल में भी शिव भक्ति करता औरों को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करता। एक दिन दारूक जेल में उसकी गतिविधि देखने आया। उसने देखा कि सुप्रिय आँखें बंद किये ध्यान में लीन है। यह देख दारूक तो गुस्से से पागल हो गया। वह गरज कर बोला,’’दुष्ट तूं क्या षडयंत्र और कुचालों की योजना पर विचार कर रहा है।’’ तब भी उसकी समाधि भंग नहीं हुई। अब वह उन पर अत्याचार करने लगा। और उसने सुप्रिय का वध करने का आदेश दिया। वह जरा भी भयभीत नहीं हुआ। सुप्रिय का रोम रोम अपने आराध्य शिव को पुकारने लगा और अपने साथियों की मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगा। भक्त की प्रार्थना सुन कर शिव का दर्शन के साथ, चमकते सिंहासन पर र्ज्योिर्तलिंग रूप प्रकट हुआ। प्रकट ही नहीं हुए साथ ही उसे पाशुपतास्त्र अस्त्र दिया। जिससे दुष्टों का नाश हुआ। शिव के आदेशानुसार इस ज्योर्तिलिंग का नाम नागेश्वर रक्खा। यह प्रसिद्ध मंदिर द्वारका के बाहरी क्षेत्र में है। हिंदु र्धम के अनुसार नागेश्वर अर्थात नागों का ईश्वर होता है। यह विष आदि से बचाव का सांकेतिक है। रूद्र संहिता में इन भगवान को दारूकावने नागेशं कहा गया है।
यहाँ हमें 30 मिनट रूकने का समय मिला। बाहर पूजा के सामान की छोटी छोटी दुकाने थीं। लाइने बहुत लम्बी थीं। फोटो लेनी नहीं थी। लाइन मे लग कर, बस यही इच्छा थी कि दर्शन हो जाये। यहाँ विशेष पूजा के अलग अलग रेट थे। पैसा जमा होते ही एक पुजारी आपके साथ चल देता है। पूजा के लिये धोती पहन कर जाना होता है। गर्भ गृह के पास ही कक्ष है, जहाँ आपके कपड़े जमा करके आपको धोती मिल जाती है। वह पुजारी आपकी पूजा अनुष्ठान संपन्न करवाता है। लाइन के साथ साथ पूजा और धार्मिक सामान की दुकाने लगी थीं। आप साथ साथ शॉपिंग भी कर सकते हैं। मेरा दर्शन का नम्बर भी आ गया। यहाँ नागदेवता चांदी के हैं। बाहर आकर मंदिर परिसर में जो भी मंदिर थे सब के दर्शन किये। यहाँ भगवान शिव की बड़ी ध्यान मुद्रा में मूर्ति है। जिसे स्वर्गीय गुलशन कुमार ने बनवाया था। वहाँ जमकर फोटोग्राफी चल रही थी। इसके आसपास कोई रिहायशी बस्ती नहीं थी. अब अपनी बस मे आकर वैठे और बेट द्वारका की ओर चल पड़े।
No comments:
Post a Comment