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Monday 6 May 2019

श्री गोरक्षनाथ जी आश्रम Gorakhnath Ashram Junagadh Gujaratजूनागढ़ गुजरात यात्रा 7 नीलम भागी

श्री गोरक्षनाथ जी आश्रम जूनागढ़ गुजरात यात्रा 7
नीलम भागी

ख़ूबसूरत रास्ते से हमारी बस प्राचीन संतों की नगरी, प्रसिद्ध पावन गिरनार पर्वत की पौराणिक महत्व की भावनाथ तलहटी पर जाकर रूकी। सामने ही विशाल श्री गोरक्षनाथ आश्रम था। अंदर प्रवेश करते ही सफेद साफ स्वच्छ विशाल प्रांगण मन में सकून और अलग सा शांत भाव पैदा कर रहा था। न जाने कितनी देर मैं प्रांगण में खड़ी, सामने गिरिनार पर्वत की चोटी को देखती रही, चारों ओर दूर तक फैली हरियाली को देखती रही। हैरान मुझे इस बात ने किया कि आस पास रिहायशी इलाका होने पर और लगातार श्रद्धालुओं के आने पर भी यहाँ का वातावरण एकदम शांत था। मेरे सामने सब साथी गुरूजी के पास कारपेट पर बैठ गये। मुझे डॉक्टर ने नीचे बैठने को मना किया है। मैं ऊपर बैठी। हमारे लिये बड़े बड़े स्टील के मगों में चाय आई। गुजरात में बहुत स्वाद चाय मिली पर कप बहुत छोटे थे, ज्यादा पीने की मनाही नहीं थी पर आदत बड़े मग में पीने की है तो दोबारा लेने में संकोच होता था। यहाँ चाय पी कर मज़ा आ गया। इतने में बड़े ब़ड़े कटोरो में गठिया और दो बहुत बड़े पीस बेसन की बर्फी(यहाँ शायद इसका कुछ और नाम होगा) के आ गये। सबको एक एक कटोरा पकड़ा दिया गया। बेहद लजी़ज़। प्रसाद खाकर मैं अपनी आदत के अनुसार शिव के अवतार, चौरासी सिद्धों में प्रमुख गोरखनाथ जी के आश्रम में घूमने लगी। भगवान सदाशिव का मंदिर देखा, सफेद संगमरमर की दुर्गा जगतजननी माँ के मंदिर में, अम्बा जी की प्रतिमा का फूलों और गहनों से श्रृंगार किया गया था। उनके सामने अखण्ड ज्योति जल रही थी। गणपति और हनुमान जी का मंदिर देखा। मंदिर के शिखरों पर पताकायें लहरा रहीं थीं।संत श्री सोमनाथ जी की भी समाधि है। संत निवास में देश भर से आये संतों के विश्राम का ध्यान रक्खा जाता है। शेरनाथ बापू जी की देखरेख में भक्तों द्वारा भोजन बनाया जाता है। प्रसादी के बहुत स्वाद होने का कारण भी समझ आ गया। सब कुछ ताजा और स्वयं तैयार किया जाता है। यहाँ की प्रसादी और सफाई की तो जितनी तारीफ की जाये वो कम है। शाम की आरती शुरू हो गई थी। गुरू गोरक्षनाथ का प्रार्दुभाव एक हजार साल पहले हुआ था। उन्होंने अखण्ड भारत का भ्रमण किया था। इन्हें गोरखनाथ भी कहते हैं। यू. पी. में गोरखपुर शहर भी इनके नाम पर है। नेपाल में गोरखा गुफा में इनके पदचिन्ह हैं। उस स्थान के लोग गोरखा कहलाते हैं। आरती के बाद बाहर आकर आश्रम की ओर हाथ जोड़े खड़ी हूं। बस के र्स्टाट होने से ध्यान भटका है। कपूरथला में रहीं हूं, वहाँ इनके मंदिर को नाथों का मंदिर कहा जाता है। कहते हैं कि रांझा ने झेलम के किनारे गुरू गोरखनाथ से दीक्षा ली थी। पंजाब में एक गाना बहुत मशहूर है ’आ मिल मेरे रांझणा, लुट्टी हीर वे ग़मा ने, जोगी बन के, हाय वे रांझणा, मुंदरा पाके, इक वारी फेरा पा जा वे लुट्टी हीर वे गमा ने।’ गिरनार की चोटियों में यहाँ सबसे ऊँची चोटी का नाम भी गोरखनाथ चोटी है। इसकी ऊँचाईं 3,361 फीट है। गिरनार भ्रमण के लिए बस में बैठ गई हूं।
मुंदरा (यहां संन्यासियों के कानों मेंं पहनने वाले रिंग) क्रमशः 
     







4 comments:

डॉ शोभा भारद्वाज said...

आपके साथ प्रसिद्ध पावन गिरनार पर्वत की पौराणिक महत्व की भावनाथ तलहटी पर जाकर रूकी। सामने ही विशाल श्री गोरक्षनाथ आश्रम के भी दर्शन कर लिए मन तृप्त हो गया अद्भुत आ मिल मेरे रांझणा लुट्टी हीर वे ग़मा ने, जोगी बन के रांझणा, मुंदरा पाके इक वारी फेरा पा जा लुट्टी हीर वे गमा ने।’प्रेम का मार्ग आसान नहीं है एक वृतांत याद है आया एक गायक ने रो रो कर गया था तैनू पाना आसान नहीं है पैलो कन फड़वाने पैंदे ने फेर अलग अलख जगानी पैंदी ऐ जगानी पैंदी

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

Hardik dhanyvad

SP Sharma said...

अति सुन्दर वर्णन, अपने देश और धर्म के बारे में पढ़ कर अति प्रसन्नता हुई