Search This Blog

Sunday, 12 May 2019

गिरनार, श्री स्वामी नारायण र्स्वणमंदिर Shri Swaminarayan Swarn Mandir Junagardh Gujrat जूनागढ़ गुजरात यात्रा भाग 8 नीलम भागी

गिरनार, श्री स्वामी नारायण र्स्वणमंदिर जूनागढ़ गुजरात यात्रा भाग 8
नीलम भागी
गिरनार पर्वत गुजरात के जूनागढ़ और काठियावाढ़ में है। इसके प्राचीन नाम गिरिनगर, उज्जयंत और गिरिवर हैं। यह पर्वत ऐतिहासिक मंदिरों शिलालेखों और अभिलेखों के लिए प्रसिद्ध है। ’गिर वन राष्ट्रीय उद्यान’एशियाई शेरों के लिए विश्वप्रसिद्ध है। यहाँ शेर अपने प्राकृतिक परिवेश में रहते हैं। हांलाकि इनकी संख्या में कमी आ रही है लेकिन वन विभाग अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रहा है इनके संरक्षण में। ये पहाड़ियाँ हिन्दुओं और जैन धर्मावलंबियों के लिये बहुत पवित्र स्थान हैं। हरियाली से भरे गिर के वन हमारे महापुरूषों की धार्मिक गतिविधियों की तपोभूमि रहे हैं। आप सीढ़ियाँ चढ़ते जायेंगे और मंदिरों के दर्शन करते जायेंगे। हर पांच सीढियो के बाद प्लेटफार्म हैं इनमें नेमीनाथ, अंबामाता, गोरखनाथ, औघड़ सीखर, गुरू दत्तात्रेय और कालका जी प्रमुख हैं। यहाँ सभी धर्मों के भक्त आते हैं। गुरू दत्तात्रेय के साथ साथ जैन मंदिरों का भी दर्शन करते हैं। सौ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद जो लोग नहीं चढ़ सकते उनके लिये पालकी की व्यवस्था हैं। इसे चार लोग उठा कर ले जाते हैं। रेट सवारी के वजन के हिसाब से है। कम से कम आठ हजार से शुरू है। यहीं पहाड़ी की तलहटी पर सम्राट अशोक का एक स्तम्भ है जिसमें 14 र्धमलेख उर्त्कीण हैं। इसी चट्टान पर क्षत्रप रूद्रदामन का लगभग 150ई. का प्रसिद्ध संस्कृत का अभिलेख है। यहाँ मल्लिनाथ और नेमिनाथ के स्मारक बने हुए हैं। अंबामाता का मंदिर अंबा चोटी पर है। गौमुखी, हनुमानधारा और कमंडल नामक तीन कुंड यहाँ स्थित हैं। पहाड़ की चोटी पर कई जैन मंदिर जिनके दर्शनों के लिये पत्थरों से तराशी 10000 सीढ़ियाँ चढ़नी होंगी।गिरनार परिक्रमा में लाखो श्रद्धालु आते हैं. पांच दिन की परिक्रमा में मुफ्त भोजन पानी की व्यवस्था रहती हैं. 36 km की यात्रा में 24 घंटे प्रशासन यात्रियों और वन्यजीवों की सुरक्षा करता हैं.  इसके अलावा दर्शनीय स्थलों में अपरकोट किला, सक्करबाग, प्राणी उद्यान, गिरवन्यजीव अभयारण्य, बौद्ध गुफा, अड़ी काड़ी वेव और नवघन कुंआ, जामी मस्जिद, मल्लिकानाथ मंदिर, जूनागढ़ संग्राहलय, आयुर्वेदिक कॉलेज,  दरबार हॉल संग्राहलय, इन्दोइस्लमिक शैली में बना महावत मकबरा और दामोदर कुण्ड है। कहते हैं कि दामोदर कुंड के आस पास का स्थान इतना मनमोहक था कि 15वीं सदी में कवि नरसी मेहता यहाँ आये और उन्हें यहाँ से लगाव हो गया था उन्होंने कई रचनाएं यहाँ पर कीं।  शहर के बीचोबीच श्री स्वामीनारायण स्वर्ण मंदिर है। जिसके पाँच शिखरों में से तीन शिखरों पर र्स्वण चढ़ा है।  पूर्व में राधारमण देव एवं हरेकृष्ण महाराज ,श्री रणछोड़ और त्रिकमराय, पश्चिम की ओर सिद्धेश्वर महादेव, श्री पार्वती, गणेश और नंदेश्वर 1मई 1826 को इस मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न हुआ। यह प्राचीन मंदिर 191 वर्ष का है। हम आरती से पहले यहाँ पहुँच गये थे। सीढ़ियाँ चढ़ कर आरती की प्रतीक्षा करने लगे। आरती के समय श्रद्धालुओं से हाल भर गया। नीचे तक भक्त खड़े थे। आरती के बाद मंदिर प्रांगण में साइड में सीढ़ी चढ़ कर भोजनालय में गये। जहाँ मेज कुर्सियां लगी थीं। खिचड़ी, रोटला(गेहूं की रोटी), कढ़ी, सब्जी दाल और छास थी। मीठा भी था क्या था मुझे याद नहीं आ रहा। गोरखनाथ आश्रम की कटोरा भर के प्रसादी खाई थी। पेट भरा था फिर भी मैंने सब कुछ चखा था, वो इसलिये की कई पाठक यात्रा से पहले भोजन और आवास के बारे में मुझसे पूछते हैं। सब कुछ स्वादिष्ट था, सफाई भी उम्दा। पास में ही अतिथीगृह था जहाँ हम ठहरे थे। पैदल आकर हम अपने कमरे में आकर सो गये। क्रमशः









7 comments:

Astrologer Krishna Sharma said...

To good

Unknown said...

ऊत्तम

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Unknown said...

Very good

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Unknown said...

बहुत प्ररेणा दायक जानकारी,आभार ।