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Friday, 30 August 2019

सपना भी आप ही हैं, हकीकत भी आप हैं उसने तो प्यार किया है न! Usney Toh Pyar Kiya Hai Na!! Part 14 नीलम भागी


मैंने काजल को मैसेज किया कि वह यहाँ से जाने के बाद अपने बारे में डिटेल में फुरसत में बताये। कोई जल्दी नहीं है, नई नवेली बहू हैं न, अभी कहाँ उसके पास समय होगा? नहीं, काजल के पास अपनी दीदी के लिए समय है। उसने कुछ मिनटों में अपनी डायरी सखी के पेजों की फोटो खींच कर मुझे भेज दी। अपनी दीदी से इतना प्यार! मैं भी उसी वक्त उसके लिखे वाक्यों को भुक्खड़ों की तरह निगलने लगी। वह लिखती है, हवाईजहाज के उड़ान भरते ही मैं भी सपनों की उड़ान भरने लगी। अब मेरे सपने अपनी कुल जमापूंजी, अपने कौशल और फ्लैट के आसपास ही थे। दिल से मैं वापिस सिंगापुर नहीं लौटना चाहती हूँ। एक बार जी जान से कोशिश करके अपने देश में सैटल होना चाहती हूँ। अब मुझे कई घरों में जाकर खाना बनाने जाना भी पसन्द नहीं आ रहा है। मेरे दिमाग में यही सब चल रहा है। ये सोच कर मैंने विचार करना बंद कर दिया कि इण्डिया जाकर ही परिस्थितियों के अनुसार योजना बनाउंगी और स्क्रीन पर फिल्म लगा कर समय काटने लगी। दो देशों की यात्रा की हुई मै क्या अपने देश में घर पर अकेली नहीं जा सकूंगी भला? ये सोच कर मैंने कालू को एयरपोर्ट आने से मना कर दिया। पैसा समय की बचत करते हुए मैं मैट्रो से अपने फ्लैट पर पहुँच गई। खाली फ्लैट में सिर्फ मेरा लगेज़ था पर मन खुश भी बहुत था कि इस 2 बी. एच. के. को अपनी मर्जी से सजाउंगी। माँ को भी कह दिया कि आप लोग मिलने मत आना दिल्ली, मैं ही गाँव में मिलने आउंगी। कालू को कह कर मैंने पेंटर को बुला लिया मेहनताना, सामान लाना सब कालू भाई के जिम्मे लेकिन  रंग सिंगापुर में दीदी के घर जैसे मैंने मेरी मर्जी के करवाये। काम होने के बाद फ्लैट बहुत ही खूबसूरत लगने लगा। अक्टूबर की शुरुवात थी। दो पंखे ड्रॉइंग रुम में और एक बैडरुम में लगवाया और कुछ किचन का सामान रक्खा। मैं किसी की सेवाएं नहीं ले रही थी इसलिए कालू और उसकी पत्नी काम पर जाने लगे। एक चटाई जाते ही खरीद ली, जो मेरे सोने और बैठने के काम आती थी। सबसे खुशी की बात, दीदी का घर मेरे घर से डेढ़ किलोमीटर दूर था। दीदी का सामान अम्मा को देने गई तो पापा से मैंने कहा कि मुझे एक कम्प्यूटर खरीदवा दो। बच्चों के जाने के बाद उन्होंने ऊपर घर किराये पर लड़कोंं को उठा दिया है। उनमें एक कम्प्यूटर इंजीनियर है, उससेे मेरी बात करवाई। उसने मेरी जरुरत पूछी और सस्ते में एसेम्बल करवा दिया। कमरे के एक कोने में कम्प्यूटर टेबल चेयर लग गई। विमल भी आया हुआ है। मैं घर बनाने में जुटी हुई हूं। वो मिलने मिलाने में लगा है, मुझसे मिलना चाह रहा है। मैं दूध की जली हुई, छाछ को भी फूंक कर नहीं, उबाल कर पी रहीं हूं। मैंने सोचा कि कम पैसों में घर फर्नीश कर लेती हूं। अम्मा के घर लड़को के लिए बाहर से टिफिन आते देख, मैंने टिफिन का काम करने की योजना भी बना ली। काम चल गया तो यहीं सैटल नहीं, तो फर्नीश घर को भाड़े पर उठा कर सिंगापुर, किश्तें तो चुकानी हैं न। विमल होटल में काम करता है। उसे मैंने फोन पर अपनी योजना बताई। वह दिल्ली का पढ़ा, बढ़ा मुझे मार्किट की जानकारी देने लगा और मिलने को उतावला है। हमने चांदनी चौक पर मिलना तय किया। जब मैं पहुँची तो उसको इंतजार करते पाया। देखने में मेरे भाइयों की तरह साधारण कद काठी का पर पढ़ा लिखा होने से प्रभावशाली और हंसमुख है। उसने मुझे ध्यान से देखते हुए कहा कि यहाँ से फतेहपुरी तक पुरानी मशहूर खाने पीने की दुकाने हैं। अपने कोर्स के दिनों में मैं यहाँ स्वाद लेने आता था ताकि अपने बनाये व्यंजनों में यही स्वाद दे सकूं। अब हम एक सिरे से खाना शुरु हुए एक प्लेट लेते, दोनों खाते क्योंकि हमें ज्यादा वैरायटी जो खानी थी। जो भी खाते उसके बारे में एक दुसरे से प्रश्न करते। पेट बुरी तरह से भर गया। हमने कई तरह के नमकीन मिठाई थोड़ी मात्रा में ली। उसने खारी बावली दिखाते हुए बताया कि यहाँ हर तरह के खाने में उपयोग होने वाला सामान मिलता है। चलते समय मैंने उसे कहाकि चलों मैं तुम्हे अपनी मेहनत का फल दिखाती हूं। और ऑटो बुला कर घर की ओर चल पड़ी। एक प्रश्न मेरे मन में बार बार उठ रहा था कि मेरे घर में भाई खा पीकर बर्तन छोड़ कर उठ जाते थे और जिन घरों में मैं काम करती थी वहाँ भी बेटों से कैरियर और कोर्सेज़ की बाते की जातीं थी। उनके जूठे बर्तन, माँ बहने ही उठाती थीं। ऐसे में विमल का खाना बनाना, मुझे अजीब लगा। मैंने पूछ ही लिया। विमल ने बताया कि उनका वन रूम सेट घर था। सामने ही वह माँ को खाना बनाते ध्यान से देखता था, कभी कुछ बनाता तो उसका स्वाद बहुत अच्छा होता। मम्मी पापा ने उसका शौक देख कर बारहवीं के बाद उसे इस कोर्स में डाल दिया। तब तक घर  आ गया। फ्लैट में प्रवेश करते ही, विमल ने मुझसे पूछा कि मैंने कहाँ से कोर्स किया है? मैंने जवाब में कहा," मैं समाज के उस वर्ग से हूं जहाँ बेटियां पैदा होते ही रसोई बनाना सीख जाती हैं।" वह घूम घूम कर फ्लैट देखने लगा और मैं कॉफी बनाने लगी। कॉफी पीते हुए उसके प्रश्नों के जवाब में मैंने उसे अपनी जीवन यात्रा सुना दी। सुनने के बाद उसने कहा कि कल वह दस बजे पर्दों के लिए टेलर लेकर आयेगा, उसके बताये नाप के परदे का कपड़ा खरीदेगें और फर्नीचर खरीदेगे। खाना बाहर ही खायेंगे। वह चला गया। सुबह दस बजे वह दर्जी को लेकर खड़ा था। दर्जी नाप बताता जा रहा था, वह नोट करता जा रहा था। दर्जी के जाते ही  कॉफी पीते हुए वह फर्नीचर के बारे में मुझसे सलाह करता जा रहा था। पहले हम फर्नीचर पसंद करने गए । वो होटल लाइन का है इसलिए उसकी पसंद में मैं कमी निकाल ही नहीं सकती थी। पर्दे चादर खरीदने के बाद खा पी कर हम लौटे। जल्दी सिलने के लिए टेलर कपड़ा ले गया और फर्नीचर आना शुरु हो गया। मैं तो दर्शक थी फर्नीचर उसने बहुत सुन्दर तरीके से लगाया। पर्दे लगते ही रंगों के सही चुनाव के कारण सादगी से सजा घर भी बहुत सुन्दर लग रहा था। घर को निहारते हुए, मैंने विमल से कहा,’’आपकी पसंद बहुत अच्छी है।’’वह बोला,’’ मेरे घर वाले भी यही कहते हैं जब मैंने शादी के लिए उन्हें अपनी पसंद की लड़की का वीडियो दिखाया था।’’ पता नहीं ये सुन कर मैं क्यों उदास हो गई! मैंने बड़ी मुश्किल से अपने को संयत किया और पूछा,’’मुझे नहीं दिखाओगे अपनी पसंद की लड़की।’’उसने रैसिपी समझाते हुए मेरा वीडियो मेरी आँखो के सामने कर दिया। मेरे मुंह से एकदम निकला,’’ ये तो मैं हूँ।’’ मुझसे मोबाइल लेकर बोला,’’ तुम्हीं तो हो मेरी पसंद, अगर तुम भी मुझे पसंद करती हो तो मैसेज कर देना।।’’ और तुरंत चला गया। जाते ही उसने पासपोर्ट की कॉपी भेजी और अपनी इन्क्वायरी करवाने को कहा। मैं तुरंत अम्मा पापा के पास गई। सारी बात बताई। तीन दिन बाद उन्होंने कहा कि ठीक लोग हैं। मैंने सहमति भेज दी। विमल तो पता नहीं उड़ कर आ गया। उसने कहा कि कल ही र्कोट मैरीज के लिए एप्लीकेशन लगानी है। सादा  विवाह होगा, बाद में उसके घर वाले छोटी सी पार्टी रक्खेंगे। गाँव से अम्मा पिता जी को भी बुला लिया। दोनो के घर वाले आपस में मिले और शादी तय हो गई फिर शादी हो गई। विमल ने कहा कि इस बार का कांट्रैक्ट वो पूरा करेगा। मैं भी अपना काम शुरु करुँगी। पढ़ कर मन शांत हो गया था। मैंने उसकी शादी में कुछ नहीं दिया। मैं बहुत खुश थी। मैंने अम्मा को फोन किया कि काजल के फ्लैट की जो भी पेमैंट बची है। उसका पेमैंट मैं करूंगी। नमन ने सुना तो वो भी बहुत खुश हुए और बोले,’’काजल के कारण हमने कभी घर की चिंता नहीं की। जो सेवा उसने हमें दी है उसके आगे तो ये पेमेंट कुछ भी नहीं है। ’’ अब मेरे आँसू लगातार बह रहे थे। ये आँसू थे बहकी हुई काजल के व्यवहार  के आगे कुछ न कर पाने के, ये आँसू थे तन और मन से लुटी हुई काजल के दुख के समय जो मैंने सम्भाले हुए थे,  अब निकल रहे थे और विभिन्न देशों की मेरी सहयोगी महिलाओं ने ऐसे समय में काजल को सम्भालने में मेरी मदद की थी ये आँसू उनके लिए भी आभार स्वरुप निकल रहे थे। 
समाप्त

     
ेद

9 comments:

Unknown said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Shweta said...

Kahani ka end padh kar to mere bhi aansu aa gye.bahut sunder rachna

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद

Tushar said...

Nice work aunty

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद तुशार

Neelam Bhagi said...

कहानी

उसने तो प्यार किया है न

लेखिका:--नीलम भागी

"उसने तो प्यार किया है न'' लेखिका नीलम भागी द्वारा लिखित कहानी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । जिसमें लेखिका ने एक ऐसी गरीब और साफ-सफाई करने वाली लड़की के संघर्षशील जीवन की वास्तविकता को उकेरा है । दूसरे एक समृद्ध, सम्भ्रान्त एवं शिक्षित परिवार द्वारा बिन भेदभाव, बिन ऊंच-नीच की विचारधारा से एक परे होकर एक छोटी बच्ची को पढ़ने के लिए उत्प्रेरित करना, उसकी प्रत्येक समस्या पर विशेष ध्यान देना, उसके माँ-बाप से पृथक उसको जीवन चलाने की छोटी-छोटी बातें समझाना, अपने परिवार से जोड़े रखना, उस पर अटूट विश्वास करना, बच्चों की व घर की रसोई का पूरा दायित्व भरोसे के साथ उसे देना । अपने साथ परिवार के सदस्य की तरह रखना । जहाँ भी जाना उसको साथ रखना, हर कार्य हेतु पूर्ण स्वंतन्त्रता देना, जीवन की हर शैली के विषय में उसको बताना ।
ऐसी बहुत-सी बातें जो जाने-अन्जाने एक लड़की काजल के जीवन को समृद्धशाली, गरिमामयी व स्वभिमानी बनाने में सहायक सिद्ध होती हैं ।
कहानी का सबसे रोचक प्रसंग होता है एक साधारण लड़की का सच्चा प्रेम, उसके सपनों के राजकुमार का जीवन में प्रवेश
करना, फिर उसके प्रेम-विश्वास को एक परे कर, उसकी अस्मत को तार-तारकर उसको धोखा देकर भाग जाना ।
इस दुर्घटना से कहानी की नायिका का टूट जाना, उसके स्वर्णिम सपनों का चूर-चूर हो जाना । उसके जीवन को हताशा और निराशा की ओऱ धकेल दिए जाने से उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाना, उसका शून्यता में प्रवेश कर जाना कई प्रश्न खड़े कर देता हैं । इस प्रकरण से नायिका को उसका जीवन शून्य समान लगने लगता है । जिसकी सोचने समझने की क्षमता लगभग समाप्त हो जाती है । उस समय नायिका की मालकिन ही उसके प्रति सहयोगी बनकर आती है, नायिका को इस भयावह स्थिति से बाहर निकालने के लिए प्रेम और सहानुभूति से उसको बिना किसी भेद-भाव के अनेक प्रयत्न करती है । जिसमे वह नायिका की एक साथिन का सहारा लेती है और कुछ दिन में उस भयावह स्थिति से उसे बाहर निकालकर नए सिरे से जीवन जीने की प्रेरणा देती है । धीरे-धीरे नायिका का मानसिक संतुलन पटरी पर आता है और फिर वह अपने जीवन को नये सिरे आरम्भ करती है पिछली बातों को सपना समझकर भूलकर । आगे बढ़ जाती है एक नई मंजिल की ओर, यही सोचकर कि-"मंजिले और भी हैं ।''
कहानी का सार यही है कि "उसने तो प्यार किया है न'' । उसके साथ धोखा हुआ या प्यार मिला यह उसके हाथ में नहीं था । मानव को वही मिलता है जो उसकी किस्मत में लिखा होता है । आशा व निराशा जीवन के दो पहलू हैं । किसके हिस्से में क्या आता है, यह न हम जानते हैं न आप । सबकी अपनी-अपनी किस्मत होती है ।

नीलम जी ने इस कहानी को बहुत ही सुंदर शब्द सुमनों से कहानीरूपक माला में पिरोया है । नीलम जी के लिए साधुवाद ।

शुभापेक्षी:--
पवन शर्मा परमार्थी
कवि-लेखक
9911466020
9354004140
दिल्ली, भारत ।

डॉ शोभा भारद्वाज said...

नारी सशक्तिकरण का उदाहरण सबसे उत्तम कार्य किसी को हौसला देकर फिर से उठाना

Neelam Bhagi said...

हार्दिक आभार