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Saturday 26 October 2019

मुझसे किसी को प्यार नहीं! विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part12 नीलम भाग



बच्चे बस मुझे आते जाते मुस्कान देते हैं। जब मैं उनके पास बैठ कर उनसे बाते करने के लिए शुरुआत करता हूँ कि तुम्हारा दिन कैसा रहा या उनके दोस्तों के बारे में उनसे दोस्त की तरह बात करने की कोशिश करता हूं। वे कहते हैं कि उनका टैस्ट है। मैं चुप हो जाता हूँ। सकीना के पास भी अब काम बहुत कम है पर वह बहुत व्यस्त है। उसके पास समय का हमेशा अभाव है। पहले वह बच्चों को स्कूल से लाने, ले जाने का काम करती, घर के काम के साथ उन्हें होम वर्क करवाती तो मैं उसे झाड़ू खटका और बर्तन घिसने के लिए बाई लगाने को कहता था तो जवाब में वह कहती कि कामवालियां झूठी और चोर होती हैं इसलिए वह अपना काम खु़द से करना पसंद करती है। कौन बहस में पड़े! ये सोच कर मैं चुप लगा जाता था। अब सकीना सिर्फ कुकिंग करती है। सब्ज़ी कटवाने से लेकर, कपड़े घड़ी(तह) करवाना तक बाइयां करती हैं। एक के बाद एक तीन बाइयां घर में आतीं हैं और सकीना जिन जिन घरों में वे जाती हैं। उनकी रिर्पोट वह उनसे ले लेती है। इस काम में मेरे जाने पर भी वह कोताही नहीं बरतती है। बचे हुए समय में वह जिम जाती है और कभी कभी किट्टी जाती है। मैं अब्बू अम्मीे को फोन करके कहता हूं कि अकेली सकीना गृहस्थी संभाल रही है। आप कभी कभी उसके पास रहने चले जाया करो। वे कहते हैं,’’जरुर जरुर।’’ पर जाते कभी नहीं। एक बार मैंने अपनी भाभी को ग़िला किया कि आप लोग कभी सकीना बच्चों के पास क्यों नहीं रहने जाते? अब तो फ्लैट भी बड़ा है। उसने जवाब दिया कि भाईजान दुल्हिन के सिर में दर्द रहता है। जब भी हम गये हैं वो सिर पर कपड़ा बांध कर आँखें बंद करके, कमरे में अंधेरा करके, चुपचाप लेटी मिलती हैं। जैसे बुखार मापने का थर्मामीटर होता है। ऐसे ही दुबई में कोई दर्द नापने का यंत्र हो तो लेते आना और खी खी करके हंसने लगीं। ये हिस्सा तो दानिश ने मुस्कुराते हुए सुनाया। अब वह फिर उदास होकर बोला,’’ मुझसे किसी को प्यार नहीं। यहां सब कुछ है पर जिन्दगी में रस नहीं है। जो अपने देश में बात है, वो वैसा यहाँ मन नहीं रचता। जो साथी बच्चों को अपने साथ लाये थे, बच्चे यहाँ पले बढे़। अब बच्चे यहाँ से जाना नहीं चाहते। उनके कारण माँ बाप यहाँ रहने को मजबूर हैं। अब वह फिर गुमसुम सा बैठ गया। उसे चुप देख कर मैं बोली,’’दानिश मैं जहाँ रहती हूँ न, मेरे आस पास घरों में सिर्फ बुर्जुग, कुत्ता और नौकर(फुल टाइम या पार्ट टाइम) हैं। कुछ अपवाद को छोड़ कर नौकर उनकी अच्छे से देखभाल करते हैं क्योंकि उनकी नौकरी उनके जीवन के साथ है। उन्होंने अपनी संतानों को इतना लायक बना दिया कि वे उनके लायक नहीं रहीं। वे देश विदेश की बड़ी बड़ी कम्पनियों में उच्च पदों पर हैं। माँ बाप के बनाये घरोंदे में न रहना उनकी मजबूरी है। माँ बाप को भी संतोष है कि उनके बच्चों ने उनकी मेहनत सार्थक की। न बेटी ने पास रहना है न बेटे ने। हाँ इनकी पीढ़ियां बैठ कर खायें, उनके लिये खटते हुए अपनी जिंदगी नरक मत करना। कब तक कितना कमाना है, इस पर विचारो फिर उस पर संतोष करके लौट जाना। परिवार को तुम्हारे बिना रहने की आदत हो गई है। जब लौटोगे कुछ दिन बाद सब ठीक हो जाएगा।  अब वह काम में लग गया और मैं सो गई। बेटी उत्कर्षिनी अब दानिश की तारीफ़ करती थी कि दानिश हमेशा समय पर काम देता है। जब शो शुरु हुए, मैं ऑडियंस में बैठती थी। जब कभी दानिश शो में आता तो मुझे मिलने जरुर आता। अपने हाथ से मेरे लिए कॉफी बना कर लाता। पहले कॉफी पकड़ाता फिर मेरे पैर छूता। मैं भी अगर दो मिनट पहले भी कॉफी पी चुकी होती तो भी उसकी प्यार से लाई हुई कॉफी जरुर पीती। शो के दिनों में मैं और कात्या मूले रात को ही मिलते थे। क्रमशः       

         

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