Search This Blog

Monday, 7 October 2019

ले तो आये हो हमें सपनोंं के देश में, विदेश को जानो, भारत को समझो घरोंदा Videsh Ko Jano, Bharat Ko Samjho GHARONDA Part 11 नीलम भागी


दुबई घूमने का सुनकर सबने कोरस में  कहा,’’ठीक है।’’एक साल मैंने घर न जाकर इन्हें बुलाया। मेरे रुममेट अपने दोस्तों के पास एक महीने के लिये चले गये। गाड़ी मेरे परिवार के लिए छोड़ गये। यहाँ प्रवासी सब इसी प्रकार एक दूसरे का सहयोग करते हैं। सकीना और बच्चों की यह पहली विदेश और हवाई यात्रा थी। दुबई एयरर्पोट के बाहर, बच्चे मुझे देखते ही दौड़ कर मुझसे लिपट गये। मुझे अपनी हवाई यात्रा पार्किंग तक सुनाते गये। सामान रख कर गाड़ी में  बैठने तक उनका यात्रा वृत्तांत चालू था। मैंने जैसे ही गाड़ी र्स्टाट की। तीनों चुपचाप विस्मय विमुग्ध से दुबई को देखते रहे। तभी मैंने सोच लिया था कि इन्हें यहाँ का कोना कोना दिखाऊँगा। मैंने परिवार को घुमाया फिराया। सकीना तो यहाँ की कानून व्यवस्था से बहुत संतुष्ट थी। मैंने उन्हें उन परिवारों से मिलवाया, जिनके यहाँ बच्चे पढ़ रहे थे। मेरे ऑफिस जाने के बाद सकीना उनमें उठती बैठती, पूरा हिसाब किताब समझती। वह जान गई थी कि यहाँ परिवार रख कर बचत नहीं हो सकती है। उसने मुझे कहा कि जैसा चल रहा है, वैसा ही चलने दो। मुंबई में फ्लैट बुक कर लो और बचत उसमें लगाओ। यहाँ वह बड़ी समझदारी से सेल में टैग देख देख कर दरहम को रुपये में कैलकुलेट करके अपने और मेरे परिवार के लिए गिफ्ट खरीद रही थी। वीजा अवधि समाप्त होते ही, बच्चे नये नये इलैक्ट्रिानिक गजैट्स के साथ बड़ी खुशी से मुझे हाथ हिलाते हुए चल दिए। मैं एयरर्पोट पर उदास खड़ा, उन्हें जाते हुए देखता रहा। उन्होंने मुड़ कर भी नहीं देखा। सकीना के कहने पर देखा और हाथ हिलाया। जहाज के उड़ान भरने से पहले सकीना का हंसते हुए फोन आया कि तुम्हारे लाडले मुबंई पहुंचने के लिये बहुत उतावले हो रहें हैं। मेरे कुछ बोलने से पहले ही बोली,’’दरअसल ये सामान यहाँ तो सब बच्चों के पास है। हमारी सोसाइटी में रहने वाले बच्चों के पास नहीं है। ये जाकर उनको दिखाने के लिए उतावले हैं। परिवार को यहाँ बुलाने से दो महीने की बचत खर्च हो गई थी। डेढ़ साल तक मैं मुम्बई नहीं जा पाया था। इनके जाने के छ महीने बाद मैं घर गया। दुबई से ही मैं प्रापर्टी डीर्लस के कांटैक्ट में था। लैंड करते ही उनके फ्लैट दिखाने के लिए फोन आने लगे। मुझे दो बैडरुम का फ्लैट बुक करना था। उन छुट्टियों में परिवार को खुद के फ्लैट में शिफ्ट करवा कर आया था। उस बार का मुम्बई जाना तो घर खरीदने और घर बदलने की भाग दौड़ में ही गया। अब किराये की भी बचत हो गई थी।। लोन की किश्त मैं उतारता था। दुबई से जाने के बाद सकीना की बच्चे तंग करने वाली शिकायत तो खत्म हो ही गई थी। छ महीने बाद जब मैं घर गया। फ्लैट में घुसते ही साफ और सादगी से सजा घर देख कर मन खुश हो गया। परिवार के लिए प्रवासी रहना भी सार्थक लगा। रिश्तेदारों के फोन आते। सकीना ही पूछती कि कब उनसे मिलने आएं? वह बच्चों के स्कूल समय में ही ज्यादातर दोस्तों, रिश्तेदारों के घर मिलवाने ले जाती थी। घर खरीदने के बाद तो जहाँ भी जाते लगभग सब का एक ही प्रश्न होता कि उनके घर का कोई सदस्य दुबई कैसे कमाने जा सकता है? मैं उन्हें क्या समझाऊं? हमें क्या पता? यहाँ तो आप देख ही रहीं है, सब कितने व्यस्त हैं! कोई हमारी सोशल लाइफ नहीं है। समय भी बचा कर प्राइवेट काम और पकड़तें हैं। ताकि जल्दी से पैसा जोड़ कर जाकर परिवार में रहें इसलिए मैंने कहीं आना जाना भी कम कर दिया। बच्चे अब स्कूल के बाद कोचिंग लेते थे। सकीना उन्हें नहीं पढ़ा सकती थी। शायद दूर रहने से दूरी बढ़ रही थी। अब जब भी मैं घर जाता हूँ। बच्चे हग करने के बाद जब तक लगेज़  सकीना नहीं खोलती, तब तक वहीं बैठे रहते हैं। जो मैं पूछता हूँ उसका जवाब देते हैं। अपनी तरफ से कोई बात नहीं करते हैं। उस समय अगर बाई काम कर रही होती है तो वे बैठे रहते हैं। बाई के जाते ही सकीना लगेज़ खोलती है। तीनों की आँखें सामान पर होती हैं और उनकी शक्ल से खुशी और उत्सुकता टपक रही होती है। मैं उस समय उनके चेहरे के भाव देख कर खुश होता हूँ। बच्चे अपना सामान लेकर अपने कमरे में चले जाते हैं। बाकि सब सकीना अपने कब्जे़ में कर लेती है। अब बच्चे व्यस्त हो जाते हैं|क्रमशः
           

No comments: