सजी संवरी चांदनी को देख कर सरोजा को थोड़ा भगवान पर भी मन में गिला आया कि वह परशोतम की एक आंख तो ठीक देता। देख कर वो हैरान हो जाता कि उसकी मां उसके लिए चांद सी दुल्हिन लाई है। फिर एक लम्बी सांस छोड़ कर मन ही मन बोली,’’जोड़ी तो भगवान बनाता है। चांदनी के नसीब में परशोतम ही लिखा था और मेरे जैसी अच्छी सास लिखी थी।’’ सरोजा ने चांदनी को अपने झोले में से निकाल कर टूथब्रश दिया। और समझाया कि अब अंगुली से दांत मत मांजियों, इससे मांजियों। ब्रश हाथ में लेते ही वह खिल गई। वो खाना बनाने लगीं। सरोजा नहाने लगी। जैसे ही वह नहा कर आई, चांदनी ने परशोतम और उसके आगे थाली परोसी और तवे से उतरती फूली फूली रोटियां उनकी थाली में रखती रही। मां बेटे के खाने के बाद सरोजा ने कहा,’’चांदनी अब तूं भी खा ले गरम गरम। हम परशोतम की दादी की तरह नहीं हैं। वो क्या करे थी, आप खा के जरा सी सब्ज़ी हमारे को देती। जिस दिन सब्जी नहीं बचती तब कहती,’’अपने आप खाना ले लो।’’ हम नमक प्याज हरी मिर्च से रोटी खा लेवें थे। बहू तूं खूब जी भर के खा। ’हम अपनी सास की तरह न हैं।’ सास की हर दरियादिली के साथ उसको स्वर्गीय दादी सास का परिचय अच्छी तरह हो गया था। वो अपनी सास और पति की जी जान से सेवा करती थी। खाकर सोकर जब सरोजा मौहल्लेदारी करने जाती तो उसकी हम उम्र सखियां पहला प्रश्न पूछतीं,’’चांदनी क्या कर रही है?’’वो कहती,’’ परशोतम के पास बैठी है।’’ वो समझातीं ऐसे तो सबकी बहुएं बिगड़ जायेंगी। ख़सम के पास बैठने को रात क्या कम होवे? वो कहेंगी हम भी अपने घरवाले के पास बैठेंगी। घर का काम ही कित्ता है। कल को बाल बच्चे होंगे। उनको अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना, ट्यूशन लगाना कित्ता खर्चा!! बुढ़ापे में क्या तूं ही खटती रहेगी? सुनकर सरोजा परेशान हो जाती। इन महिलाओं का, आपस में बिना कहे एक समझौता था कि तूं मेरी को कह, मैं तेरी को कहूं। सरोजा काम पर गई। चांदनी काम निपटा कर परशोतम को समझती रहती थी कि ये बिना किसी की मदद के अपने सब काम खुद कैसे करता है! कई बार वह ऑंखें बंद करके, घर में चलने की कोशिश करती, तो चीजों से टकरा जाती थी। वह परशोतम पर बहुत हैरान होती थी। सोच सोच कर कई बार वह परेशान हो जाती थी। ऐसे में एक दिन सास की सहेली संतोषी उससे बालों में से जूएं बिनवाने आ गई। उसने सरोजा की स्तुति सुनाई की, बड़ा परिवार था बाहर का काम भी करती थी। घर का भी करती थी। सास की खूब सेवा की, उसकी असीस से भाग जागें हैं। जो तेरे जैसी लक्ष्मी बहू मिली है। वो तो चली गई। चांदनी सोचने लगी वो कैसी बहू है! सास बुढ़ापे में भी कमा रही है और वह राज कर रही है। चांदनी ने भी निश्चय कर लिया। रात को जब सास के पांव दबाने लगी तो उसने सरोजा से कहा,’’अम्मा तुम अपनी मदद को हमें काहे नहीं साथ ले जातीं, हम दिन भर खाली ही तो रहती हैं। यही तो सरोजा चाहती थी। सुबह की तैयारी सरोजा ने रात को ही कर ली थी। दोपहर में जो सब्जी बनानी थी उसे काट कर रात को ही फ्रिज में रख दिया था। सुबह नाश्ता करवा कर और करके वो अपनी सास के साथ काम पर चल दी। रास्ते में सास ने समझाया कि किसी की कितनी भी कीमती चीज हो, उसे नहीं छूना है। मालकिन को दीदी कहना है। साहब को भइया। साहब की तरफ नहीं देखना है। क्रमशः
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Tuesday, 17 December 2019
वक्त के सितम कम हंसीं नहीं, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 8 Neelam Bhagi 8 नीलम भागी
सजी संवरी चांदनी को देख कर सरोजा को थोड़ा भगवान पर भी मन में गिला आया कि वह परशोतम की एक आंख तो ठीक देता। देख कर वो हैरान हो जाता कि उसकी मां उसके लिए चांद सी दुल्हिन लाई है। फिर एक लम्बी सांस छोड़ कर मन ही मन बोली,’’जोड़ी तो भगवान बनाता है। चांदनी के नसीब में परशोतम ही लिखा था और मेरे जैसी अच्छी सास लिखी थी।’’ सरोजा ने चांदनी को अपने झोले में से निकाल कर टूथब्रश दिया। और समझाया कि अब अंगुली से दांत मत मांजियों, इससे मांजियों। ब्रश हाथ में लेते ही वह खिल गई। वो खाना बनाने लगीं। सरोजा नहाने लगी। जैसे ही वह नहा कर आई, चांदनी ने परशोतम और उसके आगे थाली परोसी और तवे से उतरती फूली फूली रोटियां उनकी थाली में रखती रही। मां बेटे के खाने के बाद सरोजा ने कहा,’’चांदनी अब तूं भी खा ले गरम गरम। हम परशोतम की दादी की तरह नहीं हैं। वो क्या करे थी, आप खा के जरा सी सब्ज़ी हमारे को देती। जिस दिन सब्जी नहीं बचती तब कहती,’’अपने आप खाना ले लो।’’ हम नमक प्याज हरी मिर्च से रोटी खा लेवें थे। बहू तूं खूब जी भर के खा। ’हम अपनी सास की तरह न हैं।’ सास की हर दरियादिली के साथ उसको स्वर्गीय दादी सास का परिचय अच्छी तरह हो गया था। वो अपनी सास और पति की जी जान से सेवा करती थी। खाकर सोकर जब सरोजा मौहल्लेदारी करने जाती तो उसकी हम उम्र सखियां पहला प्रश्न पूछतीं,’’चांदनी क्या कर रही है?’’वो कहती,’’ परशोतम के पास बैठी है।’’ वो समझातीं ऐसे तो सबकी बहुएं बिगड़ जायेंगी। ख़सम के पास बैठने को रात क्या कम होवे? वो कहेंगी हम भी अपने घरवाले के पास बैठेंगी। घर का काम ही कित्ता है। कल को बाल बच्चे होंगे। उनको अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना, ट्यूशन लगाना कित्ता खर्चा!! बुढ़ापे में क्या तूं ही खटती रहेगी? सुनकर सरोजा परेशान हो जाती। इन महिलाओं का, आपस में बिना कहे एक समझौता था कि तूं मेरी को कह, मैं तेरी को कहूं। सरोजा काम पर गई। चांदनी काम निपटा कर परशोतम को समझती रहती थी कि ये बिना किसी की मदद के अपने सब काम खुद कैसे करता है! कई बार वह ऑंखें बंद करके, घर में चलने की कोशिश करती, तो चीजों से टकरा जाती थी। वह परशोतम पर बहुत हैरान होती थी। सोच सोच कर कई बार वह परेशान हो जाती थी। ऐसे में एक दिन सास की सहेली संतोषी उससे बालों में से जूएं बिनवाने आ गई। उसने सरोजा की स्तुति सुनाई की, बड़ा परिवार था बाहर का काम भी करती थी। घर का भी करती थी। सास की खूब सेवा की, उसकी असीस से भाग जागें हैं। जो तेरे जैसी लक्ष्मी बहू मिली है। वो तो चली गई। चांदनी सोचने लगी वो कैसी बहू है! सास बुढ़ापे में भी कमा रही है और वह राज कर रही है। चांदनी ने भी निश्चय कर लिया। रात को जब सास के पांव दबाने लगी तो उसने सरोजा से कहा,’’अम्मा तुम अपनी मदद को हमें काहे नहीं साथ ले जातीं, हम दिन भर खाली ही तो रहती हैं। यही तो सरोजा चाहती थी। सुबह की तैयारी सरोजा ने रात को ही कर ली थी। दोपहर में जो सब्जी बनानी थी उसे काट कर रात को ही फ्रिज में रख दिया था। सुबह नाश्ता करवा कर और करके वो अपनी सास के साथ काम पर चल दी। रास्ते में सास ने समझाया कि किसी की कितनी भी कीमती चीज हो, उसे नहीं छूना है। मालकिन को दीदी कहना है। साहब को भइया। साहब की तरफ नहीं देखना है। क्रमशः
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6 comments:
Nice
धन्यवाद तुषार
Very nice
हार्दिक आभार
जन साधारण से जुड़ा विषय
धन्यवाद
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