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Monday, 20 January 2020

अधेड़ मजनूं.... हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 19 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 19 Neelam Bhagi नीलम भागी

परशोतम के बाद अब कुमार भी अपने ढंग से जीने लगा है। शायद उसके दिल में आ गया कि इंसान की जिंदगी का कोई भरोसा नहीं है। सुबह उठ कर मैडीटेशन करता है फिर योगा करता है। खुरच खुरच कर दाढ़ी बनाता है। फिर अंग्रेजों को कोसते हुए, चांदनी को सरल शब्दों में बताता है कि अंग्रेज हमारी सब किताबें ले गए, जिनमें उन जड़ी बुटियों के बारे में लिखा था कि जिसे खाने से बुढ़ापा नहीं आता। मन में सोचते हैं कि आज उनके पास पैसा है जडी बूटी खरीदने को, पर बूटी का ही नहीं पता।’’ सुनकर चांदनी पूछती है कि जिस देश में किताबें गई हैं, उस देश के लोग तो बूटी खाकर बूढ़े नहीं होते होंगे!! ऐसे भोले जवाबों से चांदनी कुमार को निरुत्तर कर देती है कभी कभी। अब कुमार के चेहरे पर हमेशा इश्तिहारी मुस्कुराहट रहती है। मीनू की ज़िंदगी में इसे हमेशा सेंवटी परसेंट सेल की शर्ट नसीब हुई थी और ये। अब इसके ब्राण्डेड कपड़े देख, डाइटिशियन की सलाह लेता है। जब घर में होते हैं तो मौहम्मद रफ़ी के गाने बजते  हैं। गाने ज्यादातर हुस्न पर होते हैं जैसे हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं...,तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करुं कुछ कहते हुए मैं डरता हूं...। अब उसने सोसाइटी में सीनियर सीटीजन का ग्रुप बनाया है। उन्हें महीने में एक बार लैक्चर देते हैं कि इस उम्र में भी कैसे स्वस्थ, चुस्त रहा जा सकता है। जीवन में जहां से भी मिले, प्रेरणा लो। अब इसकी प्रेरणा तो घर पर काम निपटा रही है। बाकि कहां से प्रेरणा लें? मैंने पूछा कि तुझे इनके भाषणों का कैसे पता? वो बोली,’मैं भी तो भाषण सुनने जाती हूं। शर्मा जी तो उन पर कभी कभी अकेले में छींटाकशी कर देते हैं।’’मैंने पूछा,’’ सुन कर कुमार बुरा तो नहीं मानते!’’ वो बोली,’’ लो भला, बुरा क्यों मानेंगे!! वे कौन सा बूढ़े खूसट हैं जो इन बातों का मजा़ न लें।’’इतने में गाना बंद हो गया। आराधना ने जल्दी से दरवाजा खोल दिया। सामने कुमार दरवाजे को लॉक लगा रहे थे। आराधना ने हैलो के बाद कहा,’’कुमार साहब ? आइए न, एक कप चाय पी कर जाइये। वे न न करते आ ही गये। मैंने हैलो के बाद पूछा,’’और कुमार साहब कैसा चल रहा है?’’ वे बोले,’’मीनू के बाद लगता था कि जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं। कुछ देर चुप रहे फिर सांस छोड़ कर बोले, आह! जब तक सांस है जीना तो है ही न। फिर सोचा अपने को उन कामों में लगा दो, जिससे किसी का भला होता हो। मुझसे किसी का भला हो, उसी काम में लगा रहता हूं। जाते हुए बोले कि आप भी सीनियर सीटीजन की मासिक गोष्ठी में आया कीजिए’’ और चाय का प्याला खाली होते ही चले गये। उसके जाते ही दरवाजा बंद कर आराधना पूछती है,’’तुझे इसमें क्या चेंज लगा?’’ मैं बोली,’’अधेड़ मजनू लग रहा है।’’ हम दोनो खूब हंसी। फिर वो बोली,’’लेकिन काम बहुत करवाता है। पार्क इसने बहुत सुन्दर कर दिए हैं।
चांदनी के मां बाप देखने आये थे कि उनकी बेटी कैसे रह रही है? दो दिन बाद वे चले गये। दोपहर को मोनू टोनू खेल रहे थे। काने ने मोनू को बुला कर, जानते हुए भी पूछा,’’बेटा नाना नानी चले गये हैं? उसने कहा,’’ जी अंकल।’’सुनते ही काना बोला,’’अरे मुझसे पूछे बिना कैसे चले गए?’’ये सुन कर मोनू ने पूछा,’’क्यों अंकल?’’ अब उसने प्यार से कहा,’’बेटा, तुम्हारा बाप अब मैं हीं हूं।’’ ये सुनकर वहां खड़े आवारा किस्म के लड़के हंसने लगे। सभ्य मोनू उसे गुस्से में काना काना, कहता आग बबूला होकर, पैर पटकता हुआ घर आया। मोनू ने आते ही सारा किस्सा मां को बताया। मां ने उन्हें समझाया कि आगे से तुम लोग उसकी दुकान के सामने मत जाया करो। चांदनी सोचने लगी इस कॉलौनी में और दीदी की कॉलौनी के लोगों में कितना फर्क है! वहां कितनी ही लड़कियां अकेली फ्लैट्स में रहतीं हैं। कोई ध्यान ही नहीं देता और यहां!! क्रमशः       

2 comments:

Pushkar Rana said...

Aapki lekhni saral evam akarshak hai, maine pure blog ko ek sath pad dala, kahani ka title Ijjat ka rakhwala thoda ajeeb laga

Neelam Bhagi said...

धन्यवाद