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Thursday 30 April 2020

चोर के साथी कैसे होंगे!!.....मथुरा जी की यात्रा Mathra Yatra 4 Makhanchor Ke Sathi Kaise Honge Neelam Bhagi नीलम भागी


  
       हमें जब उसने हमें इ रिक्शा से उतारा तो मैं चारों ओर देख कर बोली,’’भइया यहां तो मंदिर दिखाई नहीं दे रहा है।’’ उसने जवाब दिया,’’ आगे पुलिस नहीं जाने देती, वो देखो पुलिस बैठी है। मैटल डिटैक्टर से जाओ, थोड़ी दूर पर मंदिर दिख जायेगा।’’अब पैदल चलते हुए वो हिसाब किताबी महिला बोली,’’ये रिक्शावाला शरीफ़ था, पहले वाला तो डाकू था, उसने तो हमें लूट लिया।’’ बदले में मैंने उसे एक यात्रा वृतांत्र सुनाया’,’’दक्षिण भारत और मुंबई आदि जानेवाली रेलगाड़ियां मथुरा होकर जाती हैं। एक बार रेल यात्रा के दौरान, मेरे साथ डॉ. शोभा भारद्वाज थी। कुछ महिलाएं बहुत चहकती हुई मथुरा वृंदावन जा रहीं थीं। डॉ शोभा को नसीहत देने का भूत सवार हो गया। वह उन महिलाओं से बोली,’’ यहां के पंडे बहुत लूटते हैं। चार चार कदम पे कोई न कोई मंदिर दिखा कर कहेंगे कि यहां राधा रानी के पैर पड़े थे, पैसे चढ़ाओ। यहां कन्हैया ने बंसी बजाई थी। माथा टेको। पैसा चढ़ाओ फिर....’’ उनमें से एक महिला ने बीच में टोक कर कहा,’’बहन जी, उस चोर, माखन चोर के साथी कैसे होंगे!! गिरहकट न। हम तो वहां लुटने ही जा रहें हैं।’’ एक ने जयकारा लगाया,’’बोलो माखन चोर कन्हैया की।’’सब ने बोला,’’जय।’’उनके चेहरे से टपकते भक्तिभाव के आगे सब नसीहतें फेल थीं। डॉ0 शोभा ने चुप ही रहना मुनासिब समझा। तभी सामने एक आदमी ने घिया मण्डी के लिए रिक्शावाले से भाड़ा पूछा। रिक्शावाले ने सौ रुपया बताया। सवारी बोली,’’इत्ते!! चौं रे मौकू परदेशी समझ रउ है। अबे लाला मैं जंईं का हूं। ठीक पइसा मांग।’’(इतने! क्यों रे, मुझको परदेसी समझा! मैं यहीं का हूं।) लोकल भाषा सुनते ही रिक्शावाला बोला,’’जो ठीक समझैं दें।’’ मैंने कहा,’’इसी तरह निजामुद्दीन स्टेशन दिल्ली से मेरे घर का मीटर से ऑटो का किराया 120 रुपये है। पर हाथ में लगेज़ देखते ही बाहर की सवारी समझ कर ऑटोवाला 500रु0 मांगता है। मीटर से जाने को राजी नहीं होता। बाद मे 200रु0 में लोकल होने के कारण ले आता है। ये किस्से देख सुन कर अब वो यात्रा एंजॉय करने लगी।
     यहां खूब चौड़ी सड़क पर वाहन मना है। एक मजीरेवाला आया, बोला,’’तीन जोड़ी मजीरे बचे हैं। आप ले लो। 150 रु के तीनों दे दूंगा।’’ मैंने क्या करने थे? नहीं लेने थे, इसलिए पीछा छुड़ाने के लिए कहा,’’50रु के तीनों दे दो।’’ उसने दे दिए। मैंने गले में लटका लिए। एक राधे राधे का ठप्पा लगाने आया। उसने शायद मजीरे लटके देख कर मेरे चेहरे पर जहां जहां जगह दिखी, राधे राधे के ठप्पे लगा दिए। मैंने उसे दस रुपये दिए, सबने ठप्पे लगाने के रुपये दिए। मंदिर में सिक्योरिटी जांच बहुत सख्त थी। मंदिर में पर्स, बैग, मोबाइल आदि नहीं ले जा सकते थे। पैसे मेरे कुर्ते की जेब में थे। मैं प्रवेश की लाइन में लग गई। बाकि सामान जमा करवाने की लाइन में लग गईं। मैं अपना पर्स लेकर नहीं गई थी। मोबाइल पर्स में रखवा दिया। यहां बंदर खूब थे। प्रवेश की लाइन में मेरे आगे चार महिलाएं खड़ीं थीं। जिनमें से एक मथुरावासी थी। वह साथ की तीन अपनी मेहमान महिलाओं को मथुरा की विशेषताएं बता रही थी मसलन मथुरा तीन लोक से न्यारी, मथुरा की जाई, मथुरा में ब्याही। तीनों में से एक महिला बोली,’’मोबाइल के बिना फोटो कैसे खींचेंगे।’’ मथुरावासिनी ने समझाया कि ये तो अच्छा है मोबाइल जमा करवा लेते हैं। नही ंतो बंदर छीन कर ले जाते हैं। तुम्हारे सामने बैठ कर तुम्हें चिड़ायेंगे। उसे जमीन पर घिसेंगे। कुछ खाने को दो तो उसे छोड़गे। क्रमशः

2 comments:

kulkarni said...

wonderful neelam ji

Neelam Bhagi said...

हार्दिक धन्यवाद