
हुआ यूं कि मैं दोपहर में आराम कर रही थी। किसी ने बैल बजाई। मन में उसे कोसते हुए बाहर आई। एक मरियल सा लडका खड़ा था। मुझे देखते ही बोला,’’बच्चों को बाहर मत आने देना। दरवाजे खिड़कियां बंद कर लो।’’मैंने उतावलेपन से पूछा,’’क्यों?’’वो बोला पार्क में बहुत बड़ा मधुमक्खियों का छत्ता है। उसे बंदरों ने तोड़ दिया है। मधुमक्खियंा उड़ रहीं हैं, वो काट लेंगी। मैं तो जल्दी से दरवाजे खिड़कियां बंद करने लगी। पार्क में कभी शहद का छत्ता तोड़ने वाले आते तो मैं उन्हें भगा देती हूं।। मैं उन्हें समझाती की यहां मधुमक्खी पालन का उद्योग नहीं लगा रक्खा है। जहां होता है मधुमक्खी पालन है, वहां शहद निकालने का काम करो। मधुमक्खियां नहीं होंगी तो फूलों में पौलिनेशन कैसे होगा? ये काम तो फूलों का रस लेते हुए मधुमक्खियां ही करती हैं। पर बन्दरों को मैं नहीं समझा सकती न। एक घण्टे बाद वो आया। उसके हाथ में शहद से भरी पारदर्शी पॉलिथीन की थैली थी। मुझसे बोला,’’अब कोई डर नहीं हैं। बंदर भी चले गए हैं। मधुमक्खियों ने छत्ता दूसरी जगह बना लिया है।’’ सुन तो मैं कानों से रही थी पर मेरी आंखें शहद पर गड़ी हुई थीं। जिसमें कुछ मधुमक्खी भी दिख रहीं थीं और एक आध टुकड़ा शहद के छत्ते का भी था। मैं सुबह की चाय में एक चम्मच ऑरगैनिक शहद डाल कर पीती हूं।


जिसकी दो सौ ग्राम की शीशी दो सौ रुपए में आती है। ये शहद भी तो ऑरगैनिक है, एकदम ताजा। मैंने पूछा,’’भइया तुम ये शहद का क्या करोगे? उसने दुखिया सी आवाज निकाल कर कहा कि सैंकड़ो डंक सह कर शहद निकाला है, पेट की खातिर। एक मैडम हैं उन्हें शहद की बड़ी पहचान है। वे मेरा सारा शहद खरीद लेती हैं। एक दम पक्की ग्राहक, हमेशा की तरह पहले उनके पास जाउंगा। वो ले लेंगी तो उन्हें दे दूंगा। फिर किसी और से पूछूंगा। ये कह कर वह चलने लगा तो मैंने कहा कि इस बार मुझे दे दो। बोला,’’साढ़े तीन सौ रुपए किलो बोलो, कितना दूं। मैंने मन में खुश होतेे सोचा, ये ऑरगेनिक तो जानता ही नहीं है।’’बारगेनिंग करके तीन सौ रु किलो पर बड़ी मुश्किल से वह राजी हुआ। मैंने बड़ा पतीला निकाला, वजन तोलने की मशीन पर उसे तोला। सात किलो के वह पैसे पकड़ कर वो, ये जा वो जा। मैं शहद को बोतलों में भरने लगी। तो कुछ स्वाद अलग सा लगा। वो तो मुझे न जाने गुड़ की, किसकी चाशनी दे गया। जल्दी से मैं बाहर गार्ड के पास गई। उससे पूछा कि बंदरों ने छत्ता तोड़ा था। वो बोला,’’नहीं जी। मैंने पूछा,’’ किसी ने शहद का छत्ता तोड़ा था।’’ उसने जवाब दिया,’’नहीं जी, बिल्कुल नहीं, मैं तो यहां बैठा हूं, कोई नहीं आया। यहां से पार्क दिखता है, वो देखिए छत्ता अपनी जगह लगा हुआ है।’’ मैंने उसे शहद खरीदने की कहानी सुनाई। सुन कर उसने कहा कि पीछे का गेट जिसमें से एक इनसान ही पैदल निकल सकता है। वहीं से कोई आया होगा। अब’’समझ नहीं आ रहा कि इस शहद का क्या करुं!!
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