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Tuesday 13 July 2021

20% खाना सामाजिक एवं धार्मिक समारोह में फेंका जाता है नीलम भागी

 


हमारा देश उत्सवों और त्यौहारों का देश है। आए दिन विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा और  समितियों द्वारा कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम के समापन पर प्रशाद वितरण किया जाता है और कभी-कभी भोजन, प्रशाद की भी व्यवस्था होती है। सभी सभ्य लोग होते हैं, वे उतना ही लेते हैं, जितना वे खा सकते हैं। पीने के पानी की व्यवस्था के पास ही, पहिये वाले बड़े-बड़े कूड़ेदान रख दिये जाते हैं । जिसमें श्रद्धालु भोजन के बाद अपनी डिस्पोजेबल प्लेट डालते हैं। देख कर बहुत दुख होता है जब कुछ लोग जरूरत से ज्यादा खाना ले लेते हैं और डस्टबिन की बजाय खाने से भरी प्लेंटे इधर उधर रख कर खाने के पण्डाल को गन्दा करते हैं।

धार्मिक कार्यक्रम के भण्डारे हों या किसी कार्यक्रम के समापन पर भोजन सब जगह बुफे ही लगाया जाता है ताकि खाने वाले अपनी मर्जी से उतना लें जितना वे खा सकते हैं और खाने की वेस्टेज़ न हो। जो बैठ कर खाना चाहते हैं उनके लिये वहां कुर्सी मेज़ भी लगी होती है। पर कुछ लोगो के कारण नज़ारा कुछ अलग ही होता है। वे बदग़मनी सी फैला देते हैं। पूड़ियों के पहाड़ अपनी मेज़ पर लगा लेते हैं। फिर जितना खाया जाता है खाते हैं बाकि जूठन से भरी हुई मेज़ छोड़ कर चल देते हैं। और मेरे जैसे लोग ये देख कर दुखी होते हैं।

मैं पहली बार नोएडा के आयप्पा मंदिर गई। कार्यक्रम के समापन पर भोजन प्रसाद की दो हॉल में व्यवस्था थी। श्रद्धालु ज्यादा थे। सब षांति से लाइन में लग गए। जैसे ही हॉल में गई वहां केले के पत्तों पर प्रसाद के सभी व्यंजन परोसे हुए थे। सब कुर्सियों पर बैठ गए। अपने आगे के पत्ते से भोजन करना शुरू कर दिया। परोसने वाले प्रत्येक लाइन में व्यंजन लेकर घूम रहे थे जिसे जो जितना चाहिए वे पत्ते पर परोस रहे थे। और मैं अपनी आदत से मजबूर खा भी रही थी और आस पास देख भी रही थी कि यहां भी लोग प्रषाद को जूठा तो नहीं छोड़ रहें हैं। पर ऐसा नहीं था। मेरे आस पास किसी के भी पत्ते पर जूठन नहीं थी। हर कोई खाने के बाद अपना पत्ता मोड़ देता था। यहां पूरी तरह से प्रसाद का सम्मान था। हॉल खाली होने पर फिर से केले के पत्तों पर व्यंजन परोसे जाने लगे। नीचे वाले हॉल में भी मैं देखने गई, श्रद्धालु प्रसाद का आनन्द उठा रहे थे। यहां देख कर बिल्कुल नहीं लगा की 20 प्रतिषत भोजन फेंका जाता होगा!!


1 comment:

Neelam Bhagi said...


नरेश हामिलपुरकार का सप्रेम प्रणाम.
हम सब यहाँ ईश्वर की असीम कृपा से कुशल हैं और आप सभी की सु कुशल की कामना करता हूँ.
आपके द्वारा प्रेषित लेख पढ़ाकर मुझे बहुत अच्छा लगा धन्यवाद.
मुझे ऐसा लगता है, आप बहुत संवेदनशील, चिंतक और जागरूक है और समाज में जाग्रति लाना चाहती हैं जो उच्च कोटि के विचार हैं.
आप जैसी बुद्धि जीवियों से बातें करने से बहुत कुछ सीख सकते हैं.
काश आपका परिचय पहले होता, खैर.. " ज़िन्दगी के सफर में यूँ तो कोई न कोई मुसाफिर मिल ही जाता है मगर हम खयाल मिलना, हम दर्द मिलना, हम राज़ मिलना मुश्किल है.
बहुत बहुत शुभकामनायें.
नरेश हामिलपुरकर
भास्कर नगर
चिटगुप्पा -585412
बिदर, कर्नाटक.
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