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Tuesday, 27 July 2021

मुफ्त में खूबसूरत बुक शेल्फ नीलम भागीReduce, Re-use, Re-cycle! Neelam Bhagi

अदम्य रीडिंग करना सीख गया है। उसके लिए तस्वीरों वाली बड़े बड़े शब्दों में लिखी किताबें आतीं हैं। कोरोना के कारण ज्यादातर खरीदारी ऑनलाइन होती है। जिसके कारण गत्ते के डिब्बे बहुत हो जाते हैं। श्वेता की छुट्टी थी और बच्चों का नो स्क्रीन डे था यानि टी.वी. मोबाइल सब बंद रखना था। सिर्फ कॉल सुन या कर सकते थे। इसलिये दिन बहुत बड़ा हो गया था। बच्चों को व्यस्त भी रखना था। इसलिए श्वेता ने अदम्य की स्टोरी बुक्स रखने के लिए बुक शेल्फ बनाने की योजना बनाई। इसमें शाश्वत और अदम्य दोनों को शामिल किया। उनकी भी सलाह ली गई। दोनों ने अपना आइडिया दिया। गत्ते का एक बड़ा बॉक्स लिया और एक छोटा।


श्वेता ने अपना एक पुराना टॉप लिया।



शाश्वत ने बॉक्स की लम्बाई चौड़ाई नाप कर टॉप के टुकड़े काटे। अदम्य ने साइडों पर ग्लू लगाया। श्वेता ने उसपर कपड़ा चिपकाया। तीनों ने बहुत लगन से काम किया। मुझे देखने में ऐसा लग रहा था जैसे किसी बहुत बड़े प्रोजैक्ट पर काम किया जा रहा हो। बच्चों के लिए तो खै़र बहुत बड़ा काम था। श्वेता को देख कर मुझे हंसी आ रही थी जो बिल्कुल बच्चों की तरह गंभीरता से लगी हुई थी। हे गुगल करके बच्चे साथ में गाने भी अपनी पसंद के सुन रहे थे और हाथ भी चला रहे थे।

जैसे ही बुक शेल्फ तैयार हुई दोनों ने डांस किया। अदम्य ने अपनी सभी स्टोरी बुक उसमें ला कर लगाईं। ऊपर की सेल्फ का वजन नीचे की सेल्फ पर ना पड़े, इसके लिए श्वेता ने दो गत्तों के बीच में गुलू लगाकर उसको सेंटर में फिट कर दिया। अब बच्चों ने शैतानी बंद करके अपनी बनाई, नई बुक शेल्फ में रखी पढ़ी हुई किताबों को फिर से पढ़ना शुरु कर दिया।   


 कृपया मेरे लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए दाहिनी ओर follow ऊपर क्लिक करें और नीचे दिए बॉक्स में जाकर comment करें। हार्दिक धन्यवाद 


Monday, 12 July 2021

टी. वी., मोबाइल के बिना जिंदगी नीलम भागी No Screen Day Neelam Bhagi

शाश्वत ने मुझसे पूछा,’’नीनो जब आप छोटी थीं, तब आपके मम्मी पापा भी आपको टी.वी. और मोबाइल आपकी मर्जी से नहीं देखने देते थे?’’मैंने जवाब दिया,’’तब मोबाइल नहीं, लैंडलाइन फोन होता था और ब्लैक एंड व्हाइट टी.वी था। जिसमें संडे को एक पिक्चर आती थी और बुद्धवार को आधे घण्टे का चित्रहार आता था।’’ये सुनते ही छोटे से अदम्य ने पूछा,’’आप पुअर थे, आपके पास इंटरनेट भी नहीं था!!’’जवाब में मैंने उसके मुंह पर हाथ फेर कर अपनी गोदी में बिठा लिया। शाश्वत का अगला प्रश्न,’’तब टाइम पास कैसे करते थे?’’मैंने बताया कि हमारी दादी का कहना था कि लड़कियों को खाली नहीं बैठना चाहिए इसलिए हम पढ़ने के साथ साथ सिलाई, बुनाई, कढ़ाई, कुकिंग करते थे और समय निकाल कर किताबें पढ़ने का शौ़क़ पूरा करते थे। श्वेता काम करते हुए हमारी बातें सुन रही थी। इस शनिवार उसके बैंक की छुट्टी थी। सुबह उसने घोषणा कर दी कि आज नो स्क्रीन डे है। टी.वी., मोबाइल नहीं देखना, फोन सुन सकते हैं और गाने सुन सकते हैं। दिन तो बहुत बड़ा हो गया। जो सामने नहीं दिखता बच्चे उसकी जासूसी करने जाते कि वो छिप कर मोबाइल तो नहीं देख रहा है। बच्चों में एनर्जी बहुत ज्यादा होती है। वे शैतानियां कर रहे थे साथ ही, हे गुगल बोल के गाने सुन रहे थे। श्वेता उनके सामने फेंकने वाली प्लास्टिक की बोतलों से प्लांटर बनाने का सामान रख कर, उनसे सलाह मांगने लगी कि कैसे हम इन प्लास्टिक की बोतलों को रीयूज़ करके सुन्दर प्लांटर बना सकते हैं ताकि उसमें वाटर प्लांट लगा कर, एयर पॉल्यूशन कम करें। बच्चों को अपना आइडिया बताया। उन्होंने भी घ्यान से सुना। अब सिरैमिक पाउडर में ग्लू मिलाने का काम अदम्य करने लगा तो शाश्वत बोतल को पेंट करने लगा। एक बोतल पर पेंट होने पर श्वेता ने उस पर सिंपल पर बहुत प्यारा डिजाइन बना दिया, जिसे देख कर बच्चे बना सकते थे।


अब तो अदम्य और शाश्वत ने मोर्चा सम्भाल लिया। उन्हें तो खाने पीने, मोबाइल टी.वी किसी की याद भी नहीं रही। म्यूजिक सुनते हुए काम में मस्त। उन्होंने कबाड़ बोतलों को खूबसूरत प्लांटर में बदल दिया।




अब श्वेता ने उनमें छेद करके प्लास्टिक की मजबूत डोरी से बांध दिया और सब में आधा लीटर पानी भर दिया। अंकुर ने उनमें मनी प्लांट लगा कर लटका दिया। मजबूती का पूरा घ्यान रखते हुए, फिर भी ऐसी जगह लटकाया जहां कोई बैठता नहीं है। छोटे छोटे पौधे लगते ही ड्रॉइंगरूम अलग सा लगने लगा। और मुझे भी लगने लगा कि ’नो स्क्रीन डे सम्भव है।’