समझदार बिल्ली साल में एक या दो बार बच्चे देने हमारे घर आती है। इस बार उसने 3 बच्चे दिए दो बादामी और एक काला है।
दोनों बादामी तो आपस में बहुत मिलकर रहते हैं, खेलते हैं , कुर्सी पर बैठते हैं । लेकिन काले को मुंह नहीं लगाते। न ही कभी उसे कुर्सी पर बैठने देते हैं। वह हमेशा नीचे बैठता है।
जब वे थोड़े बड़े हो जाते हैं तो मेरी 92 साल की अम्मा उनको अंदर तो घुसने नहीं देती। कभी-कभी वह तीनों हमारे आंगन में आकर खेलते हैं और जब उनकी मां आ जाती है, तब उसके साथ चले जाते हैं । पिछला आंगन उनका जन्म स्थान हैं। जब वे बहुत छोटे थे तब मैं वहां जब भी किसी काम से जाती तो उस समय अगर समझदार बिल्ली आती तो सबसे पहले वह दोनों बादामी अपनी मां को चिपक जाते हैं, कालू चुपचाप दूर खड़ा देखता। वे मां को खूब लाड करते लेकिन मां तो मां ही होती है। कुछ देर बाद मां उन्हें एक घुड़की देती तो दोनों भाग कर अलमारी के पीछे चुप खड़े हो जाते और वहां से झांकते।
अब कालू मां से लाड लड़ाता था। मां भी उसे खूब प्यार करती जब वह पेट भर के दूध पी लेता और खुद हटता था तब मां उन दोनों बादामियों को आने देती। यह सिलसिला देखने में मुझे बहुत मजा आता। जब ये हमारा घर छोड़कर जाते हैं, तो कभी यहां विजिट करने आते हैं तब मैं सब काम छोड़ कर इनकी हरकतें देखती हूं। मां पानी से भरी कटोरी में इन्हें पानी नहीं पीने देती, पंजे से गिराती है, जो पानी बिखर जाता है उसे इन्हें जमीन से चाटना सिखाती।
दोनों बादामी कुर्सी पर बैठ जाते हैं। उनमें से भी, जो तगड़ा है, वह लेट भी जाता है और फैल कर सो जाता है और दूसरा बादामी चुपचाप बैठ कर उसे देखता है। पर कालू को कुर्सी पर बैठने की परमिशन नहीं देते हैं। वह कुर्सी के नीचे ही बैठता है।
पहली बारिश आने पर वह डर के कपड़ों के बीच में कुर्सी पर छुप जाते हैं पर कालू नीचे पहली बरसात को देखते हुए कांपता है।
लेकिन मां शायद जानती है कि दोनों बादामी इसको इग्नोर करते हैं तभी तो वह कालू को ट्रेनिंग देती है कि अगर बाहर कुत्ता आ जाए तो गेट के जंगले में से कैसे अंदर आना है! बदामी खड़े देखते हैं पर सिखाने का सब काम मां कालू को ही करती है। यह सब देख कर मेरे दिमाग में आता है कि जानवरों में भी रंगभेद होता है!
दोनों बादामी तो आपस में बहुत मिलकर रहते हैं, खेलते हैं , कुर्सी पर बैठते हैं । लेकिन काले को मुंह नहीं लगाते। न ही कभी उसे कुर्सी पर बैठने देते हैं। वह हमेशा नीचे बैठता है।
जब वे थोड़े बड़े हो जाते हैं तो मेरी 92 साल की अम्मा उनको अंदर तो घुसने नहीं देती। कभी-कभी वह तीनों हमारे आंगन में आकर खेलते हैं और जब उनकी मां आ जाती है, तब उसके साथ चले जाते हैं । पिछला आंगन उनका जन्म स्थान हैं। जब वे बहुत छोटे थे तब मैं वहां जब भी किसी काम से जाती तो उस समय अगर समझदार बिल्ली आती तो सबसे पहले वह दोनों बादामी अपनी मां को चिपक जाते हैं, कालू चुपचाप दूर खड़ा देखता। वे मां को खूब लाड करते लेकिन मां तो मां ही होती है। कुछ देर बाद मां उन्हें एक घुड़की देती तो दोनों भाग कर अलमारी के पीछे चुप खड़े हो जाते और वहां से झांकते।
अब कालू मां से लाड लड़ाता था। मां भी उसे खूब प्यार करती जब वह पेट भर के दूध पी लेता और खुद हटता था तब मां उन दोनों बादामियों को आने देती। यह सिलसिला देखने में मुझे बहुत मजा आता। जब ये हमारा घर छोड़कर जाते हैं, तो कभी यहां विजिट करने आते हैं तब मैं सब काम छोड़ कर इनकी हरकतें देखती हूं। मां पानी से भरी कटोरी में इन्हें पानी नहीं पीने देती, पंजे से गिराती है, जो पानी बिखर जाता है उसे इन्हें जमीन से चाटना सिखाती।
दोनों बादामी कुर्सी पर बैठ जाते हैं। उनमें से भी, जो तगड़ा है, वह लेट भी जाता है और फैल कर सो जाता है और दूसरा बादामी चुपचाप बैठ कर उसे देखता है। पर कालू को कुर्सी पर बैठने की परमिशन नहीं देते हैं। वह कुर्सी के नीचे ही बैठता है।
पहली बारिश आने पर वह डर के कपड़ों के बीच में कुर्सी पर छुप जाते हैं पर कालू नीचे पहली बरसात को देखते हुए कांपता है।
लेकिन मां शायद जानती है कि दोनों बादामी इसको इग्नोर करते हैं तभी तो वह कालू को ट्रेनिंग देती है कि अगर बाहर कुत्ता आ जाए तो गेट के जंगले में से कैसे अंदर आना है! बदामी खड़े देखते हैं पर सिखाने का सब काम मां कालू को ही करती है। यह सब देख कर मेरे दिमाग में आता है कि जानवरों में भी रंगभेद होता है!
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