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Sunday, 8 August 2021

स्यापा नीलम भागी Siyapa Neelam Bhagi

 

राज ने मुझसे पूछा, "दीदी, ताई जी कहां है? कब तक आएंगी? " मुझे नहीं पता था। मैंने भी जवाब में प्रश्न ही किया, "क्यों कोई काम है?" वह बोली, "हां  मेरी जेठानी की मां मर गई है।  उसके सियापे में उन्हें ले जाना है। वे वाह वाह  रौनक लगाती है। देवरानी जेठानी बहने बहने ही होती हैं।  नहीं तो मेरी जेठानी कहेगी कि इसके मायके वालों को मेरी मां के मरने का दुख नहीं हुआ है। मैं सुनकर हैरान! मरने पर भी कोई  दुख का दिखावा करता है। शाम को जब मामी जी, जो  मेरे ननिहाल कपूरथला में सबकी ताई जी कहलाती थीं, जैसे ही घर आई तो मैंने उन्हें बताया कि राज ने आपको, उसकी जेठानी के मायके ले जाना है। उसकी मां मर गई है। यह सुनते ही मामी जी ने झोला पटका और मुझे को साथ लेकर राज के घर चली गई और उससे कहां कि तू तो हमारी बेटी है, जरा फिकर मत कर। कितने बजे और कब जाना है? बताओ हम तैयार रहेंगे। यह सुनकर राज के चेहरे पर बड़ी तसल्ली आई। हम घर आ गए। अब मामी जी को जैसे बहुत बड़ा इवेंट मिल गया हो। यह मेरी अनपढ़ बड़ी मामी  घरेलू मामलों में पीएचडी थी। हर मौके पर कैसा व्यवहार करना है उसमें ये निपुण थी और बीएचयू में  पढ़े, मेरे बड़े मामा से ब्याही थी। मामा का गवर्नमेंट जॉब था। वे पढ़ने के शौकीन और मामी जी,आस पड़ोस की जानकारी रखने की शौकीन। वे उन्हें  किस्से सुनाती, मामा किताब में आंखें गड़ाए, हां हूं करते रहते थे। हमेशा यह ट्रांसफर के कारण, परिवार से बाहर रहे। मामा की रिटायरमेंट के बाद वे ननिहाल के सामने दूसरे अपने मकान में रहने आ गई। इकलौते बेटे की शादी करने के बाद, मामा उन्हें लेकर हरिद्वार रहने चले गए। अचानक मामा जी  स्वर्ग चले गए । मामी फिर कपूरथला आ गई। अब वे सामाजिक कामों में यानि मोहल्लेदारी में व्यस्त रहती थी। मसलन खुशी के मौके पर परिवार की सभी बहुओं को भेजती और दुख के या बीमारी के समय हालचाल पूछने खुद जाती थीं । उत्कर्षिनी के जन्म से पहले कपूरथला में मैं छोटे मामा श्री निरंजन दास जोशी के पास रह रही थी। सुषमा भाभी मुझसे काम नहीं कराती थी। रात को मैं पढ़ती। पर दिन भर मेरा बड़ी मामी की शागिर्दी में कटता था। यानि इधर उधर बतियाना  और हाथ से बुनाई करन। मामी मुझे तरह-तरह के स्वेटर बुनने सिखाती और मोहल्ला पंचायत में मुझे साथ लेकर बैठती। ज्यादातर वे सुबह अपने मायके करतारपुर बस पकड़ कर  जाती और शाम को लौट आती। मेरे ममेरे भाई हरीश ने मजाक में  कहा," ताई जी अमुक दुकानदार मुझसे पूछ रहा था कि तेरी ताई कहीं नौकरी करती है? सुबह जाती है और शाम को लौट आती है।" अब मामी जी ने जाना कम कर दिया सिर्फ़ हफ्ते में दो बार ही जाती। मैं स्यापा वगैरा जानती नहीं थी। मेरे लिए यह बहुत उत्सुकता का विषय था, राज से पता चला कि इसमें  मेरी मामी पारंगत थी। 8 महिलाओं ने जाना था जिसमें 4 राज के परिवार की थीं। मामी ने मुझे कहा,"  राज हमारी बेटी की तरह है। तेरे मामा के स्कूल में पढ़ाती है। उसकी जेठानी के मायके में ऐसी  छाप छोड़ कर आएंगे कि वे याद केरेंगे कि कपूरथलेवालियों जैसा स्यापा (शोक में रोना पीटना)कोई नहीं कर सकता। अचानक उन्हें याद आया कि सुल्तानपुर से उर्मिल को भी बुलवा लेती हूं। मैंने पूछा," मामी जी वे  क्या करेगी?" मामी बोली,"  वो ऐसे बैन डालती है कि दीवारें भी रो पड़े और स्यापे में, मेरा साथ अच्छे तरीके से देती है।" मैंने पूछा मामी जी बैन क्या होते हैं? उन्होंने मुझे  घुड़कते हुए कहा," कॉलेज जाती थी तुझको यह भी नहीं पता बैन क्या होते हैं?" मैंने कहा," मम्मी जी मेरे कॉलेज में बॉटनी, जूलॉजी, केमिस्ट्री पढ़ाई जाती थी,  बैन नहीं पढ़ाए जाते थे।" ये सुनकर वे चुप हो गई, अब मुझे समझाने लगी कि मृतक के बारे में एक महिला रोते हुए  उसके बारे में बताती है कि अब उसके बिना कैसे होगा !! बाकि रो रो के दोहराती हैं।  मैंने पूछा कि जेठानी की मां को तो कोई नहीं जानता तो उसके बारे में आप कैसे बोलोगे? मामी बोली," मां के बारे में तो कोई भी बोल सकता है क्योंकि मां तो सबकी  एक सी होती है। मैंने कहा," मैं भी जाऊंगी?"  मम्मी बोली नहीं, तूं प्रेगनेंट है, ऐसे मौके पर शोक ग्रस्त परिवार में नहीं जाते। अब मैं भला कहां मानने वाली!! जिस कार्यक्रम की इतनी देर से तैयारी हो रही हो। बाहर से भी भाभी को बुलाया जा रहा हो। मैं भी स्यापा देखूंगी क्योंकि मैंने पहले कभी यह सब स्यापा देखा ही नहीं था। मैंने तो दुख में आंखों से चुपचाप से आंसू निकलते देखें है।  मामी ने कहा कि तूं गाड़ी में बैठी रहना। उनके घर नहीं जाना। मैं इतने में ही खुश हो गई। उन दिनों फोन की सुविधा नहीं थी। सुलतानपुर लोधी जाने वाली बस में हरीश भाई ने किसी सवारी से संदेश भेज दिया और उर्मिल भाभी भी  स्यापे में जाने के लिए आ गई। अगले दिन राज गाड़ी में अपनी मां बहन और भाभी को लेकर आ गई। हम भी उसमें बैठ गए। ड्राइवर उनके मोहल्ले का ही कोई लड़का था जो अपनी गाड़ी चलाता था। चलते ही हंसी मजाक करते हुए संतरे, मूंगफली खाते खाते हम शेखुपुरा पहुंच गए। मामी ने ड्राइवर से कहा कि काके उनके घर से चार घर पहले गाड़ी लगा देना। वहीं से स्यापा करते जाएंगे ताकि पड़ोसियों को पता चले की देवरानी के मायके वाले आए हैं। काका और भी समझदार! उसने गाड़ी साइड में लगाई है और वहां किसी से पूछा कि यहां जो बूढ़ी मरी थी, उनका घर कहां पर है और पूरा जुगराफिया समझ कर आया।  जब हम पहुंचे तो जिठानी के परिवार ने बाहर ही धूप में मातमपुर्सी के लिए दरिया  बिछाई हुई थी। हमारी महिलाओं ने दूर से दुखी मुंह बनाया। सफेद कपड़ों में सामने बैठी महिलाएं गाड़ी की ओर देखने लगी। हमारी गाड़ी से जो जो महिला उतरती जाती वह नाक तक पल्लू करती जाती। इतने में मेरी मामी ने बड़ी ऊंची हूंक  लगाकर कर रोने की आवाज निकाली। सारी महिलाओं ने भी उसी स्वर में रोने की आवाज निकाली और उस घर की ओर  घूंघट निकालें झुंड में चल दी और वहां पर गोल घेरे में खड़ी हो गई। दो हाथ गालों पर, फिर सीने पर उसके बाद जांघों पर 1,2,3, की गिनती पर सबके हाथ एक साथ चल रहे थे और एक ताल में थप थप की आवाज़ आ रही थी।  मामी और उर्मिल भाभी को सब कॉपी कर रही थी। एक स्यानी महिला ने मामी का हाथ पकड़ा फिर सबके हाथ रुक गए। इसके बाद बैठकर फिर एक दूसरे के गले लग कर ऊं ऊं ऊं ऊं करके रोने लगीं। एक स्वर मेरी मामी निकालती, हाय वे! मांवा ठंडिया छावा, ऊं ऊं ऊं,...  मां नहीं मिलती। बाकि बोली, नहीं मिलेगी कर रही थी। एक महिला ने राज और उसकी जेठानी को अलग किया। अब सभी ने नाक और आंखें पोछी और घुंघट थोड़ा ऊंचा उठाके आंखों तक करके बैठ गई और बतियाने लगी।


  बातें करने लगी कि मां कैसे मरी? सब ध्यान से सुन रही थी। बीच में किसी ने पूछा," गाड़ी में कौन बैठी है?" उन्होंने बताया कि ड्राइवर की बहन है रास्ते में इसका घर पड़ता था। उसको भी ले आया कि वो 4 दिन मायके रह जाएगी, पेट से है। जेठानी बोली," उसे भी  बुला लो।  घर के अंदर नहीं जाते। हम तो बाहर ही बैठे हैं धूप में ,यह भी बैठ जायेगी। मैं भी जाकर बैठ गई। मामी मुझे बहुत प्यार करती थी मेरे बालों में टपकता हुआ तेल डालकर काली परांदे से कसके मेरी चोटी बांध देती थी और मैं सचमुच उस समय काके की बहन लग रही थी ।
अब मरने वाले की बातें छोड़कर, इधर उधर की बातें शुरू हो गई। उन्होंने चाय नाश्ता कराया, खाना खिलाया। फिर से सबने जेठानी के पीठ पर प्यार से हाथ फेरा और जल्दी से गाड़ी में बैठ गए।
गाड़ी स्टार्ट होते ही राज ने मुझसे पूछा,"चंगी रौनक लगाई न!"  मेरे मुंह से निकल गया  पड़ोस के  लोग भी आ गए थे तमाशा देखने के लिए। मैंने सोचा कि तमाशा सुन कर इनको बुरा लगेगा। पर ये तो  बहुत खुश हुई कि उनका शो हिट गया।

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