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Wednesday 7 September 2022

बासुकीनाथ की ओर बैजनाथ यात्रा भाग 11 नीलम भागी Towards Basukinath Baidhnath Yatra Part 11 Neelam Bhagi




कई वैरायटी की मिठाई खाकर, बाजारों में घूमते हुए हम खूब दूर तक आ गए। वहाँ से डॉ. शोभा ने मंदिर का रास्ता पूछा क्योंकि हमें तो होटल का नाम भी नहीं पता है। सुबह गुप्ता जी ने याद करवा दिया था कि मंदिर के पूर्वी द्वार के पास होटल है। हम बाबा की नगरी का परिचय करते हुए अब मंदिर की ओर जा रहें हैं। यहाँ खरीदारी हो रही है। अगर मैं यहाँ से आचार के आम काटने के लिए गंडासा खरीदना चाहूं तो वो भी खरीद सकती हूँ यानि सब कुछ मिलता है। देश के हर कोने का व्यक्ति यहाँ दिख रहा है। कुछ दुकानों पर तो साफ सुथरे काउंटर के पास ही बहुत स्वच्छता से सामने पेड़े बन रहे हैं। खोया पता नहीं कहाँ भूना जा रहा होगा? चलते चलते हम मंदिर पहुंच गए। मैंने तो जूते पहने हुए हैं। इतनी भीड़ में यहां तो जूते चप्पल की व्यवस्था हो ही नहीं सकती। मैं जहाँ भी गई हूँ, वहाँ संध्या आरती में ज़रुर शामिल होती हूँ। श्रावणी मेले की भीड़ में यहाँ की आरती में शामिल होने की मैं हिम्मत नहीं कर पाउंगी! खैर हम पूर्वी दरवाजा पूछते हुए वहाँ गए और वहाँ से होटल पहुंच गए। कुछ देर रैस्ट किया। पास में ही मंदिर होने से आरती की आवाज़ आ रही है। 

  रात बहुत अच्छी नींद आई। 9 बजे हमें बासुकीनाथ के लिए निकलना है। सुबह तैयार होकर पैकिंग की फिर ब्रेकफास्ट करके मैं चाय वाले की बैंच पर बैठी तीर्थ यात्रियों को देखती रही। हमें आगे चौराहे पर पहुंचना है। वहाँ बासुकीनाथ ले जाने के लिए हमारी दो मिनी बस खड़ीं हैं। सब वहाँ तक पैदल चल पड़े। पतले रास्ते, खूब कावड़िये और रास्ते में शॉपिंग  भी तो करनी है। अनिल कुमार अग्रवाल ने एक ई रिक्शा ले ली। आयुष ने मेरा लगेज़ उस पर रख दिया। मैं खाली हाथ बतियाती सबके साथ चल दी। ताजे फल टोकरियों में महिलाएं बेच रहीं हैं। अमरुद, अनानास मसाला लगा कर बेच रहें हैं। हम खा रहें हैं। जब शॅापिंग के लिए रुकते, मैं किसी दुकान के आगे पड़ी बैंच पर बैठ जाती हूँ। एक आदमी मेरे पास आकर पूछने लगा,’’आपने चश्मा नज़र का लगाया है।’’ मैंने कहा,’’हाँ।’’सुनते ही वो बोला,’’ मैं कोई दवा नहीं बेच रहा हूँ। पर जो बताउंगा उससे आपका चश्मा उतर जायेगा। आप घर जाकर अमुक कंपनी का शहद लेकर उसकी एक बूंद सुबह, एक बूंद शाम को आँखों में डालना। चश्मा उतर जायेगा।’’ मैंने जवाब दिया,’’श्रीमान जी मैं वही करती हूं जो मेरा आँखों का डॉक्टर कहता है।’’जवाब सुनते ही पता नहीं क्यों वे गुस्से में पैर पटकते चल गए! हम पैदल मिनी बस पर पहुँच भी गए।




कांवड़ियों के कारण ई रिक्शा बहुत देर में आई। सब के आते ही अब हम बासुकीनाथ की ओर चल दिए। हरियाली से भरा बढ़िया सड़क वाला यह रास्ता है। इस ड्राइवर का नाम सुरेन्द्र है। यहाँ कुछ गाड़ियों में फट्टे लगा कर डबल डैकर बना कर कावड़ियों की संख्या दुगुनी बिठा रखी है। रास्ते में कावड़ियों के विश्राम के लिए हॉल यानि कांवड़िया धर्मशालाएं भी बनी हैं। पर पैदल कांवड़िये बहुत कम दिखे। सुरेंद्र ने बताया कि यहाँ पैदल काँवड़ भादों में ज्यादा आती है। कुछ दूरी पर चौड़ी सड़क के दोनो ओर जबरदस्त पेड़ा मार्किट है। 45 किमी का रास्ता पार करके दुमका पहुँचे। यहाँ रेलवे स्टेशन भी है। हमें बस अड़डा न0 2 पर पार्किंग करने को कहा। क्रमशः          











नौलखा मंदिर, बैजनाथ धाम यात्रा भाग 9 नीलम भागी Naulakha Mandir Baidhnath Dham Yatra Part 9 Neelam Bhagi


हम लोग हरिला जोड़ी से नौलखा मंदिर की ओर चले। कांग्रेस यादव से जो पूछो वो सब जानकारी दे रहा है। बाबा वैद्यनाथ धाम से मंदिर ज्यादा से ज्यादा दो किमी. की दूरी पर है। रिक्शा वहाँ से 30रु लेता है। बाबाधाम की नगरी में स्थित नौलखा मंदिर का दूसरा स्थान है जहाँ श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या दर्शन के लिए आती है। 12 से 2 बजे दोपहर में मंदिर का गेट बंद रहता है। हम गेट के बाजू की दुकान में चाय पीते रहे। गेट के बाहर लगी अस्थाई दुकानों में तीर्थयात्रियों की शॉपिंग चलती रही। गेट खुलते ही हरियाली से घिरे साफ सुथरे  मंदिर के विशाल परिसर में प्रवेश किया और आँखें मंदिर की खूबसूरती पर टिक गई। यह  कोलकता में स्थित बेलूर मठ की वास्तुकला से प्रेरित है। अनूठा नौलखा मंदिर देवघर के सबसे प्रसिद्ध धार्मिक एवं ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। नौलखा मंदिर के नाम की बहुत रोचक कथा है। कान्हा के बाल रुप को समर्पित यह मंदिर नौ लाख रुपये की लागत से बना है। इसलिये यह जनमानस में नौलखा के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। मंदिर की ऊँचाई 146 फीट है। झारखंड के देवघर शहर से यहाँ आने के लिए मैनुअल रिक्शा, ई रिक्शा और ऑटोरिक्शा खूब मिलते हैं। नौलखा मंदिर का निर्माण 1940 में पथुरिया घाट शाही परिवार की महारानी चारुशीला घोष के संरक्षण और निगरानी में किया गया है। वहाँ पुजारी जी ने बताया कि शाही परिवार की रानी चारुशीला दासी अपने बेटे और पति के असमय निधन के बाद, श्री श्री बालानन्द ब्रह्मचारी के चरणों के नीचे शांति ग्रहण करने आयीं और इनकी शिष्या बन गईं। उन्होंने अपने गुरु की प्रेरणा सें प्रख्यात नौलखा मंदिर का निर्माण करवाया। मंदिर का निर्माण 1936 में शुरु हुआ था। मंदिर के अंदर फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी करना सख्त मना है। जहां भी मनाही होती है, मैं वहाँ नियम का पालन करती हूँ। चप्पल उतार कर सीढ़ियाँ चढ़ते ही सामने सफेद मूर्ति देवी चारुशीला दासी की है।



जिसको प्रणाम करके सामने विशाल हॉल हैं, यहाँ दर्शनों के बाद बैठना बहुत अच्छा लगता है। ताज़ी ठंडी हवा का यहाँ ग़ज़ब का क्रास वेंटिलेशन है, बैठने के बाद उठने का मन नहीं करता है। यहाँ से बाहर आती हूँ देवी चारुशीला दासी जह़न में साथ ही आती हैं। नीचे कुछ अस्थाई दुकाने हैं जो गेट के अंदर हैं।



वहां ऐसे ऐसे दादी नानी की रसोई में उपयोग होने वाले औजार, बर्तन आदि, आधुनिक बर्तनों के साथ बिक रहे है। यानि हर पीढ़ी खरीदारी कर सकती है। यहाँ खूब समय बिताकर हम होटल की ओर चल पड़ते हैं। जैसे ही रिक्शा से उतरी, मैंने कांग्रेस यादव से पूछा,’’तुम्हारा कांग्रेस यादव नाम किसने और क्यों रखा है?’’ मेरा प्रश्न सुनकर पहले वह मुस्कुराया फिर जवाब दिया,’’हम बचपन में बहुत शैतान थे। सीधे सीधे चलते दूर तक निकल जाते थे। घर वाले पकड़ कर लाते तो बाबा बोलत ये कांग्रेस है फिर नाम कांग्रेस रख दिया।’’खैर अच्छा इंसान है। हमें एक प्वाइंट भी दिखाया और बाबा नगरी से परिचय भी करवाता जा रहा था। क्रमशः    






Saturday 3 September 2022

हरिला जोड़ी, यहां रावण ने विष्णुजी को कामना लिंग थमाया!! भाग 8 Towards Baidhnath Part 8 Neelam Bhagi

 




जब रावण शिवलिंग नहीं उठा सका तो वह उस दिव्य लिंग की सर्वप्रथम पूजा अर्चना करके, भगवान से उत्तम वर तो उसने पा ही लिए थे, वह लंका को चला गया। चरवाहे के भेष में विष्णु जी ने कामना लिंग को चिताभूमि जहां हृदयपीठ है, वहीं पर ही जाकर रखा था। उसी समय सभी देवताओं एवं ब्रह्मा, विष्णु आदि ने आकर रावण द्वारा लाये शिवलिंग की पूजा अर्चना की। उसकी प्रतिष्ठा कर उनका नाम वैद्यनाथ धाम रखा। इसे ’श्री श्री 1008 रावणेश्वर बाबा वैद्यनाथ धाम’ कहते हैं। हरियाली भरे रमणीक रास्ते से होते हुए हम हरिला जोड़ी पहुँचे। पहले यहाँ हर्रे के पेड़ थे। हर्रे को हरितकी भी कहा जाता है। हर्रे के दो विशाल पेड़ रह जाने के कारण इसे हरिला जोड़ी कहा जाने लगा है।


जहाँ बहुत पौराणिक कहानियां मिलती हैं। यहां भी पण्डित जी ने सुनाई।https://youtu.be/TA3BLdw3tzg

  बाबा मंदिर के उत्तर दिशा में हरिला जोड़ी में स्वयंभू शिव पार्वती, श्रीराम सीता, हनुमान जी अन्य देवी देवताओं की भी मूर्तियां हैं।https://youtu.be/DoIzVaQRJqg





यह शांत और मनोरम स्थान हैं और ये लंका जाने का मार्ग है। विष्णु जी जानते थे की रावण इस मार्ग से गुजरेगा। वह पहले ही इस मार्ग पर आकर चरवाहे के रुप में ताकने लगे। इसलिये इस मंदिर का नाम हरतकी हरितकी, हरि(विष्णु) है। रावण को लघुशंका के कारण उसके उदर में बहुत तेज दर्द उठा। इस स्थान पर रावण विमान से उतरे थे। पास में एक नदी भी है जिसे रावणजोर कहा जाता है। उसे रावण की पेशाब वाली घटना से भी जोड़ते हैं। शिव भक्त, विष्णु पद के दर्शन करने जाते हैं क्योंकि परम शिव भक्त रावण ने यहाँ चरवाहे को शिवलिंग थमाया था। यानि शिव का विष्णु जी से मिलन हुआ ’हरि हर मिलन’ और यह वह स्थान है, जहाँ शिवलिंग स्थापना की योजना रची गई थी। रावणेश्वर वैद्यनाथ धाम में देशभर से आए श्रद्धालुओं की भीड मिलती है। यहाँ पर घनी हरियाली से घिरे परिवेश में अद्भुत शांति है। पण्डित जी इस स्थान से संबंधित पौराणिक कथा सुनाते हैं। पेड़ों से घिरी पगडण्डी से ले जाकर वह स्थान दिखाते हैं, जहां लंकेश ने कामना लिंग चरवाहे को कुछ समय के लिए सौंपा।


उनका सुनाने का तरीका इतना रोचक है, जैसे मैं उस दृश्य को देख रही हूं। स्थानीय लोग यहाँ खूब आते हैं। यहाँ समय बिताना बहुत अच्छा लग रहा है। यहाँ के मंदिरों के दर्शन करके हम ई रिक्शा में बैठे। प्रवीण ने कांग्रेस यादव को सबसे आगे किया। 
https://youtu.be/JuEYltLXitw





अब हम नौलखा मंदिर की ओर जा रहें हैं। कांग्रेस यादव हमें देवघर के बारे में बताता जा रहा है। अब उसके साथी रिक्शा फिर उससे आगे निकल गए। पर उन्हें आगे निकलने का कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि 12 से 2 बजे तक मंदिर बंद रहता है और अभी 2 नहीं बजे थे। बाहर मेले जैसा माहौल था जहाँ देश भर से आए, श्रद्धालू खरीदारी करके समय बिता रहे थे। हम महिलाओं ने भी चाय वाले को चाय बनाने का बोल कर आपस में बतियाना शुरु कर दिया। तेज मीठे की स्वाद चाय के साथ इस बतरस में बहुत आनन्द आ रहा था। क्रमशः