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Saturday, 25 February 2023

गुब्बारा नृत्य #BalloonDance नीलम भागी

 



छोटी सी दित्या अभी ठीक तरह से बोलना जानती नहीं है। किसी बर्थडे पार्टी में सब इंजॉय कर रहे हैं। इसे किसी से मतलब नहीं है। एक गुब्बारे के साथ, म्यूजिक पर अपने आप नाच रही है, मेरी बच्ची। उत्कर्षिनी ने वीडियो भेजा है। मैं वीडियो से ही उसके बाल रस का आनंद लेती हूं।



Thursday, 23 February 2023

सरस आजीविका मेला नीलम भागी SARAS Aajeevika Mela 2023 Showcasing Crafts From Rural India Neelam Bhagi

 




देश की संस्कृति से रुबरु करवाता सरस आजीविका मेला 2023 नोएडा हाट सेक्टर 33ए में आयोजित किया  है। 17 फरवरी से 5 मार्च तक 11ः00 बजे से रात 9.30 बजे तक पर्यटन, परंपरा, कला एवं संस्कृति का  मनोरम माहौल थीम के साथ हम इसका आनन्द सपरिवार और मित्रों के साथ उठा सकते हैं।
इसमें मुख्य रुप से शिल्प कलाओं का प्रर्दशन है। 300 से अधिक महिला शिल्प कलाकारों की उपस्थिति है और उनके हुनर से बना उत्कृष्ट प्रर्दशन जो हैंडलूम, साड़ी और ड्रैस मैटीरियल में  विभिन्न राज्यों से हैं, वो इस प्रकार हैं-आंध्र प्रदेश से कलमकारी, ज्वेलरी, आसाम से मेखला चादर, बिहार से कॉटन और सिल्क, छत्तीसगढ़ से कोसा साड़ी, गुजरात से भारत गुंथन और पैच वर्क, झारखंड से तसर और कॉटन, सिल्वर ज्वेलरी, दुपट्टे, ड्रैस मैटीरियल, कर्नाटक से इकत, मध्य प्रदेश से चंदेरी और बाग प्रिंट, मेघालय से इरी प्रोडक्ट्स, ओडिसा से तासर और बांदा, तमिलनाडु की कांचीपुरम तो तेलंगाना की पोचमपल्ली, उत्तराखंड से पश्मिना, कांथा, बातिक प्रिंट, तात और बालुचरी पश्चिम बंगाल से। फुलकारी, बाग बूटी के लिए पंजाब नहीं जाना पड़ेगा। क्योंकि सरस आजीविका मेले में 27 राज्यों के 200 स्टाल में देश के ग्रामीण इलाकों की हुनरमंद महिलाओं के हुनर का प्रोडक्ट आया है। ये मेला उनके बनाए सामान को मार्केटिंग प्लेटफॉर्म देता है। सरस मेले से राष्ट्रीय आजीविका मिशन के अंर्तगत  ग्रामीण महिला अपने हुनर से सशक्त होती है क्योंकि उसका प्रोडक्ट शहरों के उपभोक्ताओं तक पहुंचता है। 
ये हुनरमंद सृजन करना जानते हैं पर उत्पादन का प्रचार करना नहीं जानते हैं। यहां इनके लिए वर्कशॉप लगी। जिसमें इन्हे सोशल मीडिया से उत्पादन का प्रचार करना, कुछ तो केवल अपने क्षेत्र की भाषा ही जानते हैं, उन्हें और बाकियों को भी कम्यूनिकेशन स्किल सिखाना, फोटोग्राफी आदि सिखाया जाता है।
इसके साथ ही 27 राज्यों के हैंडीक्राफ्ट, ज्वैलरी और होम डेकोर के प्रोडक्ट आदि भी एक ही स्थान पर ले सकते हैं। फूड प्राडक्ट के स्टाल, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ बच्चों के मनोरंजन का पुख्ता इंतजाम है।
मेले में प्रतिदिन लाजवाब सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन है। Free entry, Free Parking है ।
इस बार  इंडिया फूड कोर्ट में देशभर के 20 राज्यों की 80 महिला उद्यमी ग्रहणियों के समूह ने अपने प्रदेश के क्षेत्रीय व्यंजनों का स्टाल लगाया है, जिसमें उनके प्रदेश का ही स्वाद मिलेगा। मसलन बंगाल की फिशकरी, तेलंगाना का चिकन, बिहार की लिट्टी चोखा, पंजाब का सरसों का साग व मक्के की रोटी, प्राकृतिक खाद्य उत्पाद, हरियाणा के बाजरे व ज्वार के लड्डू बिस्कुट, कर्नाटक व जम्मू कश्मीर के ड्राई फ्रूट सहित पूरे भारत के पकवान मौजूद हैं। 01 मार्च से 05 मार्च तक मिलेट्स फीस्ट(Millet Feast) का भी आयोजन किया जाएगा।
हैंडलूम सरस आजीविका मेला 2023 में कुछ उत्कृष्ट प्रदर्शन जो हैंडलूम, साड़ी और ड्रेस मेटिरियल में विभिन्न राज्यों से हैं वो इस प्रकार हैं- टसर की साड़ियां, बाघ प्रिंट, गुजरात की पटोला साड़ियां, काथा की साड़ियां, राजस्थानी प्रिंट, चंदेरी साड़ियां। हिमाचल उत्तराखंड के ऊनी उत्पाद व हैंडलूम के विभिन्न उत्पाद,  झारखंड के पलाश उत्पाद व प्राकृतिक खाद्य सहित मेले में पूरे भारत की ग्रामीण संस्कृति के विविधता भरे उत्पाद प्रदर्शित हैं।
हैंडलूम, इसके साथ ही हैंडीक्राफ्ट, ज्वैलरी और होम डेकोर के प्रोडक्ट्स के रूप में आंध्र प्रदेश की पर्ल ज्वैलरी, वूडन उत्पाद, आसाम का वाटर हायजिनिथ हैंड बैग और योगामैट, बिहार से लाहकी चूड़ी( लहठी), मधुबनी पेंटिंग और सिक्की क्राफ्ट्स, छत्तीसगढ़ से बेलमेटल प्रोडक्ट्स, मडमिरर वर्क और डोरी वर्क गुजरात से, हरियाणा टेरा कोटा, झारखंड की ट्राइबल ज्वैलरी, कर्नाटक का चन्ननपटना खिलौना, सबाईग्रास प्रोडक्टस, पटचित्र आनपाल्मलीव ओडिशा, तेलंगाना से लेदर बैग, वाल हैंगिंग और लैंप सेड्स, उत्तर प्रदेश से होम डेकोर, और पश्चिम बंगाल से डोकरा क्राप्ट, सितल पट्टी और डायवर्सीफाइड प्रोडक्ट्स । साथ ही प्राकृतिक खाद्य पदार्थ भी फूड स्टाल पर मौजूद हैं। प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के रूप में अदरक, चाय, दाले, कॉफी, पापड़, एपल जैम और अचार आदि उपलब्ध हैं। साथ ही मेले में बच्चों के मनोरंजन का भी पुख्ता इंतजाम किया है। इसके साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी लोग भरपूर आनंद उठा रहें हैं।


सरस मेलों के माध्यम से ग्रामीण स्वयं सहायता समूहों की महिलाएं न केवल आजीविका के अवसर सृजन कर रही हैं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बेहतरीन उदाहरण देश के सामने पेश कर रही हैं। यह निश्चित रूप से आजीविका यात्रा में एक मील का पत्थर है।
वहीं, मेले में  सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गए हैं। साथ ही जगह जगह सेनिटाइजेशन का भी इंतजाम किया गया है। लेडीज टॉयलेट एकदम साफ-सुथरे हैं और लगातार सफाई की जाती है। मेले में भी सफाई व्यवस्था उत्तम है। बीच-बीच में बैठने की भी व्यवस्था है।
सरकार ने हुनरमंद महिलाओं को एक मंच देकर स्वाबलंबी बनाया है, यही महिला सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण है।












मेले की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है     पर मेले से बाहर आते ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था उचित नहीं है। चौड़ा मोड, 12, 22 से मेले में आना तो बहुत आसान है पर लौटते समय यहां पहुंचना उतना आसान नहीं है।

Monday, 20 February 2023

नृत्य स्वरुपम द्वारा आयोजित एक नई पहल नीलम भागी, Ek Naye Pahal Neelam Bhagi

11 फरवरी को नृत्य, संगीत और कला के लिए प्रसिद्व नृत्य स्वरुपम विद्यालय नौएडा के छात्र छात्राओं ने वार्षिक उत्सव ’नई पहल धूमधाम’ से मनाया। समाजसेवी श्री अशोक श्रीवास्तव(अध्यक्ष नवरत्न फाउण्डेशन), भारतीय संगीत और नृत्यकला को बढ़ावा देने के लिए समर्पित श्री आर.एन.श्रीवास्तव(इशान म्यूजिक कॉलिज़) ने द्वीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का आरम्भ किया।


 विशिष्ट अतिथि श्री गजानन माली(10 News), नीलम भागी
अर्चना प्रभाकर, 


अंजना भागी 


ने बच्चों की प्रस्तुतियों को सराहा। रितु कुमारी(The Founder President of Nritya Swarupam ) ने सभी अतिथियों का हार्दिक धन्यवाद किया जिन्होंने ने इस लाजवाब समारोह में आकर तालियों से बच्चों का उत्साह बढ़ाया। 
















Sunday, 19 February 2023

खुशी उन्नति केंद्र द्वारा आयोजित सम्मान समारोह नीलम भागी Neelam Bhagi

 

खुशी उन्नति केंद्र ने सामाजिक और अन्य क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले, नोएडा के  गणमान्य व्यक्तियों को मुख्य अतिथि रीता यादव ( क्राइम ब्रांच पुलिस अध्यक्ष)  एवम् पूनम सिंह ( सोशल एक्टिविस्ट, पॉलीटिशियन) ने सम्मानित किया। 5 फरवरी को सनातन धर्म मंदिर हाल, सैक्टर 19 नोएडा में आयोजित कार्यक्रम के दौरान नीलम भागी, प्रीति गुप्ता, राजेश्वरी त्याग राजन, डिंपल आनंद, अंजना भागी, इंदिरा चौधरी, अलका भारद्वाज, अल्पना तोमर, अंजलि, इन्द्राणी मुखर्जी, सुनीता खटाना, सुधा दत्त कविता सिंह, ममता शर्मा, ममता तिवारी, निशा सिंह, मंजू पाल, वीना चौहान, आयुषी राणा, पुष्पा रावत, रानी यादव, रितु सिन्हा, संगीता सिंह, सीमा वशिष्ठ, श्वेता गुप्ता, सुनीता पवार, सुनीता रावत, उपमा, उषा, कीर्ति वैभव, ज्योत्सना चंद, दीपा तिवारी, सुनीता गुप्ता, मेघु, सुषमा श्रीवास्तव,  कुम्मू जोशी, कनिका पोखरियाल, मीनाक्षी त्यागी, रिया शर्मा, विद्या रावत, दीपा देवी, छवि पवार, अनीता गुप्ता, विनीता भट्ट, निशु मिश्रा, स्वाति सैनी, प्रधान विमलेश, श्वेता त्यागी, अंशिका चौहान, ऋतु सिन्हा, शिल्पी सिंह और अन्य शामिल रहे। इस लाजवाब आयोजन के लिए KUk NGO head incharge सरिता चंद, अध्यक्ष गीता चौहान की मेहनत सराहनीय है।















Friday, 17 February 2023

सामाजिक कुरीति और उन्मूलन नीलम भागी Neelam Bhagi

’’मैंने जात नहीं पानी मांगा था।’’ये साबरमती आश्रम की पेंटिंग गैलरी में आठ अनोखी पेंटिंग में से एक पर लिखा था।


 ये पढ़ते ही मेरे ज़हन में आने लगा कि जातिगत भेदभाव उस समय की कितनी बड़ी सामाजिक कुरीति थी जो आज भी है पर पहले से कुछ कम और अलग है। शहरों में भी विवाह के समय जाति महत्वपूर्ण सी होने लगती है। वैवाहिक विज्ञापनों में जाति लिखी होती है या जातिबंधन नहीं। यानि जाति शब्द का इस्तेमाल जरुर किया जाता है। कोई सिर्फ धर्म लिख कर विज्ञापन नहीं देता मसलन हिन्दु युवक या युवती। कर्म और व्यवसाय पर आधारित वर्ण व्यवस्था चार भागों में बांटी गई थी। कालान्तर में यह जाति व्यवस्था कहलाने लगी। बच्चे के जन्म लेते ही उसे जाति मिल जाती है। भेदभाव तो विदेशों में भी देखने को मिलता है मसलन रंग भेद श्वेत अश्वेत। लेकिन भारत में ही जाति व्यवस्था की उत्पत्ति क्यों हुई? शायद जिसका कारण जातीय दंभ और आर्थिक रहा होगा। इस व्यवस्था के कारण समाज के एक बहुत बडे़ भाग को विकास के अवसर नहीं दिए गए। समाज में अस्पृश्यता और शोषण का जन्म हुआ  और लोगों की सामुदायिक भावनाएं संकुचित हो गईं, जिससे राष्ट्रीय एकता की राह में बाधाएं उत्पन्न हुईं। बापू जानते थे कि इसे दूर करना बहुत जरुरी है और उन्होंने शुरुवात की।

 


  साबरमती आश्रम में घूमते हुए, वहाँ लिखा पढ़ते हुए जाना कि उस समय बापू ने अपने लेखन और कर्म में जाति, और श्रम जैसे विषयों पर बेबाक टिप्पणियां लिखीं। उन्होंने अपने विचारों से और कार्यों द्वारा सामाजिक समरसता के लिये प्रयास किया। वे धर्मशास्त्रीय आधारों पर भी छुआछूत और जाति व्यवस्था को अस्वीकार करते थे। बापू को तो समानता के सिद्धांत पर महान प्रयोग करना था जो साबरमती में सम्भव  था। चालीस लोगों के साथ सामुदायिक जीवन को विकसित करने के लिये बापू ने 1917 में यह प्रयोगशाला शुरू की यानि साबरमती आश्रम। यहाँ के प्रयोग से विभिन्न जातियों में एकता स्थापित करना, चरखा, खादी ग्रामोद्योग द्वारा सबकी की आर्थिक स्थिति सुधारना और श्रमशील समाज को सम्मान देना था। यहाँ रहने वाले सभी जाति के देशवासी बिना छूआछूत के रहते थे। छूआछूत को सफाई पेशा से जोड़ कर देखा जाता है। महात्मा गांधी इस अति आवश्यक कार्य को निम्न समझे जाने वाले काम कोे और इसे करने वाले समाज को सम्मान प्रदान करते थे। इस सम्मान का उद्देश्य श्रमशील समाज का सम्मान था। वे सभी को सफाई कार्य में अनिवार्य रूप से भागीदार बनाकर, श्रमशील समाज के प्रति संवेदनशील बनाना चाहते थे।  

   नागपुर के हरिजनों ने बापू के विरूद्ध सत्याग्रह किया। उनका तर्क था कि मंत्रीमंडल में एक भी हरिजन मंत्री नहीं था। साबरमती आश्रम वह प्रतिदिन पाँच के जत्थे में आते, चौबीस घंटे बापू की कुटिया के सामने बैठ कर उपवास करते, बापू उनका सत्कार करते थे। उन्होंने बैठने के लिये बा का कमरा चुना, बा ने निसंकोच दे दिया, उनके पानी आदि का भी प्रबंध करतीं क्योंकि वह पूरी तरह बापूमय हो गईं थीं। किसी भी कुरीति को जड़ से खत्म करना बहुत मुश्किल है। लेकिन असंभव नहीं है। बापू समाज में समरसता लाने के लिये शारीरिक और मानसिक श्रम के बीच की खाई को समाप्त करने की बात कहते रहे। इसके लिये साबरमती में, उद्योग भवन को उद्योग मंदिर कहना उचित है! वहाँ जाने पर, देखने और मनन करने पर पता चलेगा, वहाँ जाकर एक अलग भाव पैदा होता है। समाज में फैली व्याप्त कुरितियाँ, जिन्हें दूर करने का प्रयास किया गया है। वह आज भी कहीं न कहीं विद्यमान है।      

  शादी के लिये वैवाहिक विज्ञापन में अपने स्टेटस के साथ लिखा हिन्दू ,जातिबंधन नहीं। बेटी वाले भी जात, गोत्र, जन्मपत्री सब छोड़ कर बस वर के पद को देखते हुए रिश्ते की बात चलातें हैं। अब हमारे सामने पाँचवा वर्ण आ गया है, जिसे अभिजात वर्ण या धनिक वर्ण कहा जा सकता है। जिसे समय ने लाभ या जरुरत के आधार पर बनाया है और इस वर्ण में स्टेटस देखा जाता है। जबकि वेदों में कर्म के आधार पर वर्ण व्यवस्था थी जिसमें समय के साथ कुरीतियां और विकृतियां आ गईं। कुप्रथाओं में जातिगत भेदभाव, छुआछूत आदि की प्रवृति बढ़ती गई। समान वर्ण में आगे जाकर उच्च वर्ग और निम्नवर्ग में भेदभाव शुरू हो गया। उच्च वर्ग तो निम्न वर्ग को हेय दृष्टि से देखता है। इलीट वर्ग में आते ही, वर सम्पन्न और अपने से दो पायदान ऊंचे वर्ण का दामाद बन जाता है। और लाभ के आधार पर बना पांचवा वर्ण जिसमें जातियों और उपजातियों की बातें करना पिछड़ापन समझा जाता है। वर वधू का रिश्ता देखते समय अपने से नीची जात के लखपति करोड़पति या उच्च पद को प्राथमिकता दी जाती है, न कि ऊँची जाति के कौढ़ीपति को। जाति व्यवस्था विवाह के क्षेत्र को सीमित करती है। जाति से बाहर विवाह नहीं कर पाने से बाल विवाह, बेमेल विवाह, कुलीन विवाह एव ंदहेज प्रथा की समस्या पैदा होती है। अस्पृश्यता के कारण कई हिंदु धर्म परिवर्तन कर लेते हैं। 

 जब जनकल्याण की भावना से कोई रीति उपजी थी, तब उसमें न नयापन था न पुराना। बाद में उपयोगिता के आधार या लाभ देखते हुए, आने वाले  समय में वह कुरीति, प्रथा या परंपरा में बदलने लगी।  रीति और कुरीति का पालन करना हमारे ऊपर है, जिसका सुविधा और उपयोगिता के अनुसार, हम इसमें से चुनाव करते हैं। लेकिन व्यर्थ खत्म होना ही चाहिए, जो हुआ भी है जैसे सति प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल विवाह, देवदासी आदि। पुरानी कुरीति में नयापन भी तो हुआ है विधवा विवाह को समाज ने स्वीकारा है। 

     जाति भेद के दोष से अलगाव, समरसता का अभाव उत्पन्न होता है। देश के विकास के लिए सामाजिक समरसता की जरूरत होती है। हमारा देश विविधताओं का देश है। भाषा, खानपान, देवी देवता, पंथ संप्रदाय न जाने क्या क्या है? और तो और जाति व्यवस्था में भी विविधता है। आज एक ही वर्ण से सम्बंधित विभिन्न जातियाँ राजनीतिक स्वार्थों के लिए संगठित होकर प्रजातंत्र के स्वस्थ विकास में बाधा पैदा कर रहीं हैं। जिसका राजनीतिक पार्टियाँ अपने फायदे के लिए हमारे बीच वैमनस्यता को बढ़ातीं हैं। हमारी एकता में भी दरार पैदा करने का काम करतीं हैं। राजनीतिज्ञों के कारण सामाजिक कटुता जो समाज में दीमक की तरह लग गई है। इस पर विवाद नहीं, विचार ज्यादा करना है। और आधुनिक विमर्शों को स्वीकार करना है। नवीनता को स्वीकारना, आत्मसात करना हमारे समाज के हित में है। 

 किसी भी पंथ, संप्रदाय, समाज सुधारकों और संतों ने मनुष्यों के बीच भेदभाव का सर्मथन नहीं किया। इसलिये धर्मगुरूओं के अनुयायी सभी जातियों के होते हैं। वे कभी अपने गुरू की जाति नहीं जानना चाहते, वेे गुरूमुख, गुरूबहन, गुरूभाई होते हैं। 

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।

मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

यानि योग्यता के आधार पर विवाह करना चाहिए न कि जाति के आधार पर। इसके उन्मूलन के लिए अर्न्तजातीय विवाह को खुले मन से स्वीकारना होगा। इसमें महिलाओं को अपनी सोच बदलनी होगी क्योंकि वे परिवार की दूरी हैं। विवाह के बाद दूसरी जाति की लड़की आपके परिवार में आती है या आपकी बेटी जाती है तो हर लड़की अपनी जाति में होने वाले रिवाज़ बचपन से देखती मनाती और जानती है। वो आपके घर में तो नहीं पली न। ये मान कर चलो कि जो लड़की शिक्षित, आत्मनिर्भर है वो कुछ समय में सब जान जायेगी। हर जाति कि कुछ न कुछ विशेषता होती है। हमें उसे भी लेना है। अपना लादना नहीं है। कुछ शिक्षित महिलाएं तो इतनी ज्ञानी हैं कि वे अपनी बहू की जाति पूछने पर बंगालन, मद्रासन, पंजाबन, भइयन, बिहारन आदि बताती हैं। लेकिन बात बात पर कान्यकुब्ज ब्राह्मणी, अपनी बंगाली ब्राह्मण बहू को ताना मारने से बाज नहीं आती। अगर जाति भी अलग होगी तो हम सोच ही सकते हैं। फिर इन लक्षणों से तो मनमुटाव ही पैदा होगा और बाद में दोष जाति को दिया जाता है। अर्न्तजातिय विवाह करने वालों को सोचना होगा कि अपनी जाति में भी तो परिवार में ऐसा होता है। बस कहा ये जाता है ’’तुम्हारे यहाँ ऐसा होता है! हमारे यहाँ तो नहीं।’’ सैंकड़ों साल से चलने वाली किसी परंपरा को कम समय में दूर कर लेना भी आसान नहीं है। लेकिन जातिविहीन समाज का बीज बोया जा चुका है। 

प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित केशव संवाद के फरवरी अंक में यह लेख प्रकाशित हुआ है।