भुवनेश सिंघल ने गूगल सर्च से बताया कि पुण्डरीक क्षेत्र, पुनौरा धाम के पास है। हमने ऑटो तय किया पुण्डरीक क्षेत्र के लिए तो वो बोला उसे नहीं पता। धर्मेन्द्र पाण्डे ने कहा कि पुनौरा धाम के पास है तब वह चल पड़ा और हमें पुनौराधाम पर पहुँचा दिया। आगे वह जा नहीं सकता था क्योंकि विवाह पंचमी की तैयारियों के कारण टैंट लगे हुए थे। पहले हम जानकी मंदिर गए। वहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ थी। मैं इन दोनों के मुकाबले धीरे चलती हूँ। ये तो दर्शनों के लिए चले गए और मैं भीड़ देखकर इनकी चप्पलों के पास खड़ी हो गई। जब ये दर्शन करके आए तो मंदिर बंद हो गया। अब हमारा पूछताछ करते हुए चलना शुरु हुआ। अगर मैं किसी से पूछती कि ’ब्रह्मर्षि पुण्डरीक पुण्यारण्य पुण्डरीक क्षेत्र’ कितनी दूर है तो वो मेरा मुँह ताकने लग जाता। अब मैंने अपनी अक्ल लगानी बंद कर दी। और तेज तेज चलने की कोशिश करती ताकि दोनों को बार बार मेरे लिए रुकना न पड़े। हम पुण्डरी ग्राम जो कालान्तर में पुनारा कहलाने लगा और अब पुनौराधाम है, वहाँ से अब हम पुनौरा गाँव में चल रहे थे। यहाँ घर, खेत, बाजार से गुजरते हुए कहीं कहीं पानी का निकास न होने से गंदगी भी थी। उपले यहाँ दो शेप में थे जो दीवार पर थे, वे गोल आकार में थे और जो जमींन पर बनाए थे, वे इस आकार के थे कि चूल्हे में लकड़ी की तरह जलाए जाएं।
एक पेड़ को नारियल का समझ कर मैंने भुवनेश को आवाज़ लगाई,’’देखो कोस्टल एरिया में उगने वाला नारियल का पेड़ यहाँ उगा है।’’उन्होंने तो सुना नहीं, पास से गुजरने वाले एक राहगीर ने बताया कि ये नारियल नहीं, ताड़ी का पेड़ है। ठेले पर छोटा सा लड़का फटाफट सधे हुए हाथों से लिट्टी बना रहा था।
फल सब्जियों के बीज की दुकानें थीं। जिसे देख कर मैं खुश हो गई मैंने सोच लिया था कि लौटते समय बीज खरीदूंगी क्योंकि हमारे यहाँ तो बीजों की दुकान बहुत दूर है। ऑन लाइन मंगाओ पर दोनों जगह खूबसूरत पैकिंग में गिनती के बीज मिलते हैं रेट पचास रू। यहाँ तो किलो में रखे थे। पैकिट कहीं नहीं दिख रहे थे। छोटे छोटे बाजारों से गुजरते हुए। हम पुण्डरीक ऋषि की तपस्थली के आस पास पहुँच गए। अब पूछना शुरु किया तो वो रहा, वो रहा बताते। और काफी दूर चलने पर हम पहुँच गए। इन दोनों को तो अर्जुन की तरह अपना लक्ष्य नज़र आ रहा था, ये उसकी ओर बढ़ रहे थे यानि इस तपस्थली के जानकार के पास जाकर यहाँ के बारे में जानना। https://youtu.be/tcU9mpAsxFEअब मैं स्लोमोशन में उस परिवेश से परिचय करने लगी। और आस पास बतियाने लगी। ये सारा एरिया स्क्वायर में था पुण्डरीक सरोवर के चारों ओर पक्की सड़क, पैदल पथ बना हुआ है। किसी भी जगह से आप दूर तक चारों ओर देख सकते हैं। यह प्राचीन तालाब पुण्डरीक ऋषि के तपस्थली क्षेत्र में स्थित है और इससे लोक आस्थाएँ जुड़ी हुई हैं। इसके पूर्व में सूर्य मंदिर है, पश्चिम में शिव मंदिर और दक्षिण में माँ काली का मंदिर है। जल के साथ दूर दूर तक फैली हरियाली बहुत अच्छी लग रही है। इतना पैदल चली हूँ पर यहाँ पहुँचते ही अच्छा लग रहा है। अगर मैं यहाँ न आती तो बहुत पछताती। जल हरियाली के साथ खिलखिलाकर बतियाते लोग, पुण्डरीक क्षेत्र की मुझे विशेषता लगी। क्रमशः
क्रमशः
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