मधुबनी शब्द सुनने में बोलने में बहुत मधुर लगता है और वैसा ही हरियाली से भरा, अच्छी सड़क का रास्ता मन मोह रहा था। कहते हैं यहाँ के वनों में शहद यानि मधु बहुत मिलता है। इसलिये इसका नाम मधुबनी पड़ा। महिलाएं घर सजाने के लिये जो रंगोली फर्श पर बनाती थीं, वह दीवार, कागज और कपड़े पर आ गई और दरभंगा, से नेपाल तक पहुंची। यहाँ की मधुबनी कला आज विश्वविख्यात हो गई है।
घरेलू मधुबनी चित्रकला आज इस शहर के स्टेशन पर यहाँ के कलाप्रेमियों द्वारा 10,000 स्क्वायर फीट में श्रमदान के फलस्वरूप यहाँ की शोभा बढ़ा रही है। स्वादिष्ट व्यंजनों के लिए और मखानों के उत्पादन में तो यह प्रसिद्ध है ही। स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी के खादी यज्ञ में भी यहाँ के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहाँ के निवासी बड़ी संख्या में स्वतंत्रता सेनानी बन गये। आजादी के बाद 1972 में यह दरभंगा से अलग जिला बना। इसलिये दोनों की संस्कृति में समानता है।
श्री रामचरितमानस के अनुसार माँ सुनयना ने स्वयंबर से पहले जानकी को गिरिजा देवी के पूजन के लिए यहाँ भेजा था। फुलहर राजा जनक की पुष्पवाटिका थी जिसके पास ही राजा जनक की कुलदेवी गिरिजा देवी का मंदिर है।
वहाँ श्री राम और लक्ष्मण भी अपने गुरु विश्वामित्र के लिए कुछ फूल लेने आए थे। भगवान राम और सीता जी ने पहली बार यहाँ एक दूसरे को देखा था। यह प्राचीन गिरिजा स्थान को 2020 में बिहार सरकार द्वारा हिंदू तीर्थयात्रियों के पर्यटन केंद्र के रूप में मान्यता दी गई है। यहीं राष्ट्रीय राजमार्ग 104 बिहार नेपाल के बॉर्डर के पास मधुबनी के हरलाखी प्रखंड के मुख्यालय से 12 किमी. दूर बसा छोटा सा गांव फुलहर है। यहाँ दो सरोवर हैं। एक प्राचीन सरोवर है जिसको बाग तराग कहा जाता है। इस सरोवर के संबंध में रामचरितमानस के बालकांड में ज़िक्र हैं
मंदिर परिसर बहुत बड़ा है। बाहर खाने पीने की और पूजा के सामान की दुकाने हैं। सामने एक त्रिशूल गड़ा है। देवी दर्शन से पहले सब उसकी पूजा करते हैं। गर्भ गृह में बहुत भीड़ है। फाल्गुन के महीने में तो बहुत ज्यादा भीड़ होती है। मंदिर के पीछे प्राचीन तालाब है। सीढ़िया बनी हुई हैं। यहाँ एक पेड़ है उसका तना बड़ा कलात्मक सा है। दर्शन करके साफ़ सुथरे मंदिर परिसर से बाहर आते हैं। सामने का तालाब उपेक्षित सा है। जिसके आसपास के लोगों ने कचरा भी फेंका है। पर उसमें कहीं कहीं कमल भी खिले हैं।
भुवनेश सिंघल जी कमल तोड़ने के लिए बिना पानी में जाए कोशिश कर रहे थे। तीन बच्चियाँ पास खड़ी देख रहीं थीं। उनमें से एक ने सबके मना करने के बावजूद, पलक झपकते ही एक कमल तोड़ कर दे दिया। उसे भुवनेश जी ने और तोड़ने से मना किया। वो इकलौता कमल का फूल लगभग सबके हाथों में घूमा।
यहाँ मैंने एक बात और देखी। जिससे भी बात करो, वह शहद की तरह मीठा बोल रहा था, शायद यह मधुबनी नाम का असर था। तालाब के किनारे अरबी के पौधे देख कर मैंने उन बच्चियों से पूछा,’’अरबी को किसने बोया है?’’उसने जवाब दिया अपने आप उग आती है।’’ मैंने जानना चाहा कि सार्वजनिक तालाब, अपने आप उगी ऑर्गेनिक अरबी को कौन खाता होगा? बच्ची का जबाब था जिसको पतोड़े बनाने होते हैं वह पत्ते तोड़ लेता है और जो अरबी चाहता है वो खोद लेता है। फिर बड़े भोलेपन से मुझसे पूछती है आपके लिए निकाल दूं। मैंने न करते हुए उसकी पीठ थपथपा दी। बांस के झुरमुट हैं।
जरा सी बच्ची अपने जितना घास का गट्ठर उठाए चल रही है।
बच्चों के पैरों में चप्पल नहीं दिखी पर बहन भाइयों के संख्या में कमी नहीं है।
साइकिल पर इतना सामान लादने का कौशल!
बांस के झुरमुट
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