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Friday, 8 September 2023

जन्माष्टमी पर मथुरा के पेड़े नीलम भागी

 


मैं मुंबई जाते समय मथुरा के पेड़े लेकर जाती थी। मथुरा का स्टेशन आने से पहले अटेंडेंट से कह देती थी कि मुझे 2 किलो पेड़े चाहिए। स्टेशन पर बृजवासी की पेड़ों की दुकान है। मेरा डब्बा पता नहीं कहां लगे? इसलिए मैं उन्हें कहती और वह हमेशा मंगा देते। गीता को  मथुरा के पेड़े बहुत पसंद हैं । उसका स्वाद बना रहे इसलिए मैं उसे एक सुबह और एक शाम को देती। अब अमेरिका में रहने से वह मथुरा के पेड़े का स्वाद नहीं भूली है। उत्कर्षिनी खूब अच्छे से खोया बना कर, भूनती  है और वही रंग देती है। गीता  मां की मदद करते हुए पेड़े बनाती है। और जन्माष्टमी पर बने पेड़े आप देखिए। पेड़ों की शेप मथुरा जैसी नहीं है पर स्वाद में मथुरा से कम नहीं होंगे। क्योंकि उत्कर्षनी लाजवाब कुक है। हर त्यौहार पर बनने वाली मिठाई, वह स्वयं बनाती है। गीता दित्या अपने त्योहारों का खूब इंतजार करती हैं। उत्कर्षिनी भारतीय त्योहारों को बहुत श्रद्धा से मनाती है। अपनी व्यस्तता में भी मिठाई बनाती है और बेटियों को त्यौहार की कहानी सुनाती है।






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