Search This Blog

Tuesday, 26 September 2023

बच्चे को पढ़ने की आदत तो बाल साहित्य से ही मिलेगी! नीलम भागी Part 3


 जो बच्चा मुझे हिंदी पढ़ कर सुना देता था, उसे अब कहानी की किताब घर ले जाने को मिल जाती थी। क्योंकि अब उसे कक्षा अनुसार पाठ्यक्रम स्कूल में करना है। जो बच्चा कक्षा कार्य पहले कर लेता, वह बाकियों को डिस्टर्ब न करे। उसे स्कूल में पढ़ने को लोक कथाएँ देकर व्यस्त कर दिया जाता था। किताबें खरीदते समय मैं ध्यान रखती कि उसमें बच्चों के मन की बात, उनकी मूल प्रवृतियाँ, मनोरंजक ढंग से उनकी भाषा में लिखी हों। जिस किताब को उत्त्कर्षिनी पूरा पढ़ कर ही छोड़ती थी। मुझे वही किताब बच्चों के लिए उपयुक्त लगती थी। उत्त्कर्षिनी भी हमारे इस प्रयोगशाला स्कूल में पाँच साल पढ़ी थी। गर्मी की छुट्टियों में बचत के लिए ये प्रवासी बच्चों को गाँव भेज देते थे। इस समय मैं खाली रहती तो बाल साहित्य पर शोध उत्त्कर्षिनी पर करती। नये बस रहे नौएडा में जीविका के लिए लोग अपना काम भी कर रहे थे। अगर कहीं किराये पर किताब देने की दुकान खुलती  तो मैं उत्त्कर्षिनी को लेकर दुकानदार से बात करती कि मुझसे खाता नहीं खोला जायेगा। सब किताबों का किराया एडवांस में लो। ये किताबें पढ़ती जायेगी और बदलती जायेगी। बेटी भुक्खड़ों की तरह सब किताबें चाट जाती थी। जो किताबें उसे बहुत पसंद आतीं, उन्हें मैं बच्चों के लिए खरीद लेती। अब मैंने उसे डिक्शनरी देखना सिखा दिया। वह अखबार में बच्चों का कोना पढ़ने लगी। मैं समझ गई कि ये नदी की मछली नहीं है, इसे समुद्र चाहिए।

इसको दिल्ली में बी.सी.राय चिल्ड्रन लाइब्रेरी की मेम्बरशिप ले दी। मेरी मजबूरी को समझ कर ये किताबों की दुनिया में खो गई। सप्ताह की आठ किताबें पढ़ जाती थी।

बच्चे को पढ़ने की आदत तो बाल साहित्य से ही मिलेगी। मेरे घर के पास दिल्ली के स्कूल की ब्रांच खुली। मैंने तुरंत उत्त्कर्षिनी जो उस समय किताब पढ़ रही थी, उससे छीन कर रखी और तीसरी कक्षा में उसका एडमीशन करवाने पहुँच गई। क्योंकि यहाँ से वह अपने आप आ जा सकती थी। इसने टैस्ट में न बोला न लिखा। मैं समझ गई कि कहानी छिनने का गुस्सा है। प्रिंसिपल बोली कि इतनी बड़ी लड़की यह तो नर्सरी के लायक भी नहीं है। मैंने कहा,’’आप मुझसे एक साल की फीस एडवांस लीजिए। मुझसे लिखवा लीजिए। एक महीने बाद अगर ये कक्षा के लायक नहीं होगी। फीस रख कर इसे निकाल दीजिएगा। नया स्कूल था बच्चों की जरुरत थी शायद इसलिए एडमीशन हो गया। पढ़ने की स्पीड के कारण पहले महीने वह पहले तीन बच्चों में थी। क्रमशः



     

No comments: