आज पत्रकार मिलन बैठक में हमने पहले कागज के गिलास में पानी पिया और डस्टबिन में फेंक दिया। फिर कागज के कप में चाय ली। मनोज शर्मा 'मन' ने अपने बैग में से स्टील का कप निका ला। पहले उसमें पानी पिया फिर उसमें चाय ली। अपने इस छोटे से प्रयास से प्रदूषण सुधार में योगदान दिया। मेरे जैसे और लोग भी यह देखकर प्रभावित हुए होंगे।
मैंने उनका पर्यावरण पर एक लेख पढ़ा था। जैसा लिखा है, उसे व्यवहार में भी अपनाया है। आप भी उनका लिखा पढ़ें :
आज अशोक जी का प्रवास विश्वकर्मा शाखा पर रहा उन्होंने पर्यावरण विषय लिया और चर्चा की हमें दो पौधे अवश्य लगाने चाहिए चर्चा मे बात आई की हम प्रकृति का मोल नहीं समझते है पर इसी ऑक्सीजन के लिए कोरोना काल मे मारामारी मच गई थी, ऐसे ही हम धूप का सेवन नहीं करते तो विटामिन डी की कमी को पूरा करने के लिए हजारों रुपये के इंजेक्शन लेने पड़ते है | ऐसे ही चर्चा मे आया की पेड़ो से हमें ऑक्सीजेन मिलती है छाया मिलती है फल मिलते है लक़डी मिलती है ऑक्सीजेन मिलती है औषधिया मिलती है |
पर शहरों की इस भागदौड़ मे पेड़ो ने गमलो मे पौधों की जगह ले ली है बढ़ते घरो ने बाग़, जंगल उजाड़ दिए है विकास की आंधी वनो को खत्म कर रही है बढ़ती जनसंख्या जगह को ही खत्म करती जा रही है ऐसे मे हम स्वयंसेवक क्या कर सकते है पर्यावरण के लिए |
हम पहले के समय मे घर से थैला लेकर जाया करते थें क्योंकि आप देखेंगे आज हर घर मे प्रतिदिन चार से पांच थैली कभी दूध के साथ कभी सब्जी के साथ कभी फल के साथ और अन्य सामान के साथ घर मे प्रवेश करती है इस हिसाब से महीने मे 150 और वर्ष मे 1800 पननीया तो हम प्रयोग कर रहे है एक घर मे, तो मै स्वयं ये सोचु की मै थैला एक साथ मे, या बाइक की डिक्की मे या गाड़ी मे अवश्य रखूँगा और कोई क्या करता है ये न सोच मे इन 1800 पन्नीयो मे कमीना लाऊंगा तो मैंने ये योगदान दिया तो पेड़ लगाने का जितना पर्यावरण मे योगदान है उससे ज्यादा उसे नुकसान नहीं करूंगा तो ये ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि मुझसे शुरू होगा ये कार्य तो फिर और भी मुझे देख कर जागरूक होंगे |
ऐसे ही एक व्यक्ति ने कहा की वहाँ प्रसाद पिन्नी के पैकेट मे मिलता है तो उससे पुछा क्या करें तो उसने कहा की कागज के लिफाफे बन सकते है तो फिर उससे कहा की कागज के लिए फिर पेड़ कटेंगे तो फिर सुझाव आया की ऐसे ही हाथ मे दे दे या फिर पत्तल दोने का प्रयोग करें तो ये सुझाव अच्छा रहा |
मतलब छोटे छोटे प्रयोग हम सोचे तो प्लास्टिक के प्रयोग से बचा जा सकता है और जो शुद्ध पर्यावरण हमारे बुजुर्ग हमें दे गए थें इन प्रयोगो द्वारा, ये ही हम अपने बच्चो को दे जाये तो अच्छा रहेगा |
और मैंने अपने बेग मे एक स्टील का कप भी रख लिया है और छोटी पानी की बोतल भी, जिससे कही चाय पीनी पड़ जाये तो फिर वो पेपर गिलास जिसमे प्लास्टिक के हजारों कण मिल जाते है उससे बचा जा सकता है | हमारे बुजुर्ग यही किया करते थें अपना खाना अपने बर्तन, जहाँ हुई जरूरत प्रयोग कर लिए, साफ सुथरा भोजन और पैसी की बचत भी और पर्यावरण भी सुरक्षित |
मनोज शर्मा "मन" उपाध्यक्ष अखिल भारतीय साहित्य परिषद दिल्ली प्रांत #अखिलभारतीयसाहित्यपरिषद, #akhilBhartyeSahityaParishad