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Wednesday, 5 March 2025

उत्सवों के रंग पर्यावरण के संग !!


कृष्ण भगवान अति व्यस्त होने के कारण कई दिनों तक वे राधा जी से मिलने नहीं पहुँचे तो राधा जी बहुत उदास हो गईं। जिसका असर प्रकृति पर भी पड़ने लगा। हरियाली मुरझाने लगी। यह देख कृष्ण राधा से मिलने पहुँच गए। उन्हें देख राधा जी बहुत खुश हुई और गोपियाँ भी चहकने लगीं और प्रकृति भी खिल उठी। कृष्ण नेे राधा को छेड़ते हुए एक फूल तोड़ कर मारा। बदले में राधा जी ने भी फूल मारा। अब दोनों ओर से फूल एक दूसरे को मारे जाने लगे। इस खेल में ग्वाल गोपियाँ भी फूल खेलों प्रतियोगिता में शामिल हो गए। उस दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि थी। तब से इस दिन को फुलैरा दूज(1 मार्च) के रूप में मनाया जाता है। मंदिरों को फूलों से सजाते हैं। इस दिन बिना महूर्त के शुभ काम किए जाते हैं। इसी दिन श्रीरामकृष्ण की 190वीं जयंती बेलूर मठ में मनाई जायेगी।      

चायचार कुट 7 मार्च मिजोरम का फसल कटाई के अंत का उत्सव है। युवा आग के चारों ओर नृत्य करते हैं। यह कठोर सर्दियों की बिदाई और बसत ऋतु की शुरूआत का भी संकेत देता है। यहाँ का चाय नृत्य मुख्य आर्कषण है। संास्कृतिक प्रर्दशन और व्यंजन पर्यटकों को इस उत्सव में शामिल होने के लिए आकर्षित करते हैं। 

अरट्टू महोत्सव 7 से 9 मार्च केरल के अमबालापुझा के कृष्ण मंदिर में यह दस दिनों तक चलता हैं। मंदिर के आसपास मेले की तरह दुकाने सजती हैं और अंदर समारोह आयोजित होते हैं। जुलूस इस उत्सव के मुख्य आर्कषण हैं। पल्लीवेट्टू के दिन विशाल भोज आयोजित होता है जिसका मुख्य व्यंजन पायसम होता है।  

विरूपाक्ष कार महोत्सव हम्पी स्मारक समूह के द्वारा विरूपाक्ष मंदिर का वार्षिक रथ उत्सव है। 7, 13, 21, और 28 मार्च को देवता को सजा कर जलूस निकाला जाता है। यह त्यौहार देवताओं का दिव्य विवाह समारोह भी है। 

अर्न्तराष्ट्रीय योग महोत्सव( 9 से 15 मार्च )परमार्थ निकेतन आश्रम ऋषिकेश में कई अर्न्तराष्ट्रीय और स्थानीय योग उत्साही लोगों को आकर्षित करता है। जहाँ योग कार्यशालाएँ, स्वस्थ खाना पकाने की कक्षाएँ, शास्त्रीय नृत्य प्रदर्शन, आध्यात्मिक आचार्यों के व्याख्यान आदि का आयोजन होता है।

आमलकी एकादशी व्रत 10 मार्च को भगवान विष्णु के साथ आंवले के वृक्ष की भी पूजा की जाती है। क्योंकि आंवला विष्णु जी को बहुत पसंद है। इस लिए इसे आंवला एकादशी कहते हैं। काशी में इसे रंगभरी एकादशी भी कहते हैं। कहते हैं कि इस दिन पहली बार शिवजी माँ पार्वती को लेकर काशी पहुँचे थे। इसी कारण इस दिन महाकाल और पार्वती जी की यात्रा निकाली जाती है और रंग खेला जाता है।

दुनिया का सबसे बड़ा ’आट्टुकल पोंगाला’(13 र्माच)महिला उत्सव!! अट्टुकल भवानी मंदिर तिरुअनंतपुरम केरल में मनाया जाता है। इन्हीं दिनों मलयालम महिना पंचाग के अनुसार तिथि निकलने पर दस दिन का केरल और तमिलनाडु का उत्सव आट्टुकल पोंगाला अपना नाम दुनिया में महिलाओं का सबसे बड़ा जमावड़ा होने के कारण 2009 में गिन्नी बुक ऑफ वर्ड रिकार्ड में दर्ज करवा चुका है। जिसमें 25 लाख महिलाओं ने गुड़, नारियल, केले से पायसम बनाया। इसमें पुरुषों का प्रवेश मना है। कहते हैं ये 1000 साल पहले से मनाया जा रहा है। तमिल महाकाव्य ’सिलप्पथी कारम’ की मुख्य पात्र कन्नकी का यहां अवतार हुआ था। मुख्यदेवी कन्नकी को भद्रकाली के रुप में जाना जाता है। इनका एक नाम ंअटुकलाम्मा है। ऐसी मान्यता है दस दिवसीय उत्सव में देवी अटुकल मंदिर में रहती हैं। इनका जन्म भगवान शिव के तीसरे नेत्र से हुआ है। राजा पांडया पर कन्नकी की जीत का जश्न पोंगाला उत्सव है। इन दिनो तिरुवनंतपुरम उत्सव के रंग में रंग जाता है। श्रद्धा से देवी को आट्टुकाल अम्मा कहते हैं। महिलाएं वहीं पर उनको खीर बना कर अर्पित करती हैं। मंदिर के चारों ओर चूल्हे बने होते हैं। पुजारी मंदिर के गर्भग्रह से पवित्र अग्नि देता है। एक से दूसरा चूल्हा जलता है और वह सब पर फूल और पवित्र जल छिड़क कर आर्शीवाद देता है। यह फसल का पर्व है और इस दस दिवसीय उत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते हैं। जिसमें बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं।    

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिप्रदा से शुरू होने वाली विश्व प्रसिद्ध 84 कोसी(252किमी)  नैमिषारण्य परिक्रमा चक्रतीर्थ या गोमती नदी में स्नान करके, गजानन को लडडू का भोग लगा कर यात्रा शुरु करते हैं। रोज आठ कोस पैदल चलते हैं। 15 दिन तक ये यात्रा चलती है। महर्षि दधीचि ने अपनी अस्थियां दान देने से पहले तीर्थो का दर्शन करने की इच्छा प्रकट की थी। इंद्र ने सभी तीर्थों को नैमिषारण्य में 5 कोस की परिधी में आमंत्रित कर स्थापित किया। महर्षि दधीचि ने सबके दर्शन करके शरीर का त्याग किया था। दूर दूर से श्रद्धालू परिक्रमा करने आते हैं। यात्रा में लोगों का प्यार और सहयोग बहुत मिलता है। भंडारा, चाय और पीने के पानी की व्यवस्था रहती है। बागों में रुकते हैं। कुछ यात्री अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। परिक्रमा में वे पेड़ पौधों को नुकसान नहीं पहुंचाते, न लड़ते झगड़ते, न ही किसी की निंदा करते हैं। भजन कीर्तन चलता रहता है। मैं जब नैमिषारण्य गई तो कड़ाके की सर्दी थी। मंदिरों में दर्शन करते हुए जरा थकान होने लगती तो मुझे कल्पना में 84 कोसी नैमिषारण्य परिक्रमा करते श्रद्धालु दिखते और मेरी थकान उतर जाती। रामचरितमानस में भी लिखा है

तीरथ वर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिद्धि दाता। 

फाल्गुन मास की पूर्णिमा को यात्रा सम्पन्न होती है। और....



बैर उत्पीड़न की प्रतीक होलिका मुहूर्त पर जलाई जाती है और प्रहलाद यानि आनन्द बचता है जिसे बहुत हर्षोलास से शिव के गण बने, एक दूसरे को शिव के बराती बनाते हैं। शिव की बारात(होली का जुलूस) निकालने के बाद सब नए कपड़े पहन कर एक दूसरे के घर होली मिलने जाते हैं। जिसके लिए महिलाएं तीन चार दिन पहले से मीठे, नमकीन बनाकर तैयारी करती हैं। मुंबई से लेकर कई राज्यों की होली देखी पर नौएडा में मनाई पहली होली 1983 ने तो भारत एक जगह कर दिया था।  

नौकरी के कारण अलग अलग राज्यों से आए नगरवासियों ने एक ही पार्क में बरसाने की लठ्मार होली, कुमांऊ की बैठकी, हरियाणा की धुलैंडी जिसमें देवर भाभी को सताता है और भाभी धुलाई करती है। बंगाल में चैतन्य महाप्रभु का जन्मदिन जुलूस निकाल कर मनाते हैं इस्कॉन मंदिरों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वह भी मनाया। फिल्म के गीत और लोकगीत, रसिया और जोगीरा सारा.. रा.. रा.. के सवाल जवाब से तो सांझी होली ने जीवन में रंग भर दिए। दक्षिण भारतीयों ने होलिका दहन की राख माथे पर लगाई तो सबने उन्हें सूखे रंगो से रंग दिया। नार्थ ईस्ट में मणिपुर की दंत कथा के अनुसार रुक्मणी को भगवान कृष्ण, आम भाषा में कहते हैं भगाकर ले गए थे। ज्यादातर इसी से संबंधित लोकगीत होते हैं और जहां कन्हैया हों वहां होली न हो ऐसा हो नहीं सकता!! वहां छ दिन पारंपरिक नृत्य लोक कथाओं पर चलते हैं। मणिपुरी नृत्य का कॉस्ट्यूम विश्व प्रसिद्ध है। इसलिए नार्थइस्ट वाले तालियों से साथ दे रहे थे।

याओसांग मणिपुर के मेइती लोगों द्वारा मनाया जाने वाला एक जीवंत उत्सव है। यह एकता और सदभाव का प्रतीक है। बसंत के आगमन का स्वागत रंगीन पारंपरिक कपड़े पहनकर और नाच गा कर मनाते हैं। 

केरल में होली को मंजल कुली कहते हैं जिसका मतलब हल्दी स्नान है। 

डोलयात्रा 14 मार्च सिक्किम का होली से मिलता जुलता उत्सव है और उसी दिन मनाया जाता है। यह राधा कृष्ण के प्रेम के जश्न के रूप में मनाया जाता है। राधा कृष्ण की मूर्तियों को जुलूस में ले जाया जाता है। लोग गुलाल उड़ाते हुए नाचते हैं। महिलाएं गाते हुए चलती हैं। पुरूष सभी पर रंग डालते हैं। 

होयसल महोत्सव कर्नाटक के अन्य स्थानो और प्राचीन मंदिरों में मनाया जाने वाला नृत्य और संगीत का उत्सव है। मंदिरों को मिट्टी के दियों से सजाया जाता है। पूरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इस त्यौहार में अपनी पारंपरिक कला रूपों का जश्न मनाना है। 

होला मोहल्ला 15 मार्च को विशेषकर आनंदपुर साहब में सिक्खों द्वारा मार्शल आर्ट एवं बहादुरी का प्रर्दशन है। होलगढ़ किले में रंग बिरंगे मुकाबले होते हैं। 

गणगौर राजस्थान और आसपास के राज्यों में मनाया जाने वाला 15 दिवसीय (15 मार्च से 31 मार्च) उत्सव है। पति की लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए देवी पार्वती को समर्पित विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला यह उत्सव है। अविवाहित लड़कियाँ सुयोग्य पति की कामना के लिए प्रार्थना करतीं हैं। उत्सव का अंतिम दिन बहुत आर्कषक होता है। नृत्य संगीत के साथ मूर्तियों को विसर्जन के लिए ले जाया जाता है। 

होली के पांचवें दिन महाराष्ट्र में मछुआरा समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन नृत्य गायन के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। इस जश्न को शिमगो के नाम से जाना जाता है। देश के कई हिस्सों में होली का उत्सव फाल्गुन पूर्णिमा को शुरू होकर रंग पंचमी को समाप्त होता है। जिस उत्साह से हम उत्सव मनाते हैं, उसी तरह 20 मार्च विश्व गौरैया दिवस को आंगन में फुदकने वाली गौरैया को बचाने के लिए, महानगरों में रहने वाले आर्टीफिशियल घोंसला लगाते हैं। 

मायोको त्योहार 21 मार्च अरूणाचल प्रदेश के अपतानी, डिबो हिजा, हरिबुला आदिवासियों द्वारा मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार है। दोस्ती और सद्भावना के इस उत्सव में आसपास के सभी गाँव इक्ट्ठे होते हैं। 10 दिनों तक चलने वाले इस फसल उत्सव में यदि बारिश आ जाये तो और शुभ माना जाता है। त्यौहार के दिनों में लोग अपने घर के दरवाजे खुले रखते हैं। यह उत्सव प्रकृति पूजा है।     

22 मार्च विश्व जल दिवस पर प्रण करना होगा ’न जल बरबाद करेंगे और न करने देंगे।’ शीतला अष्टमी को मौसम बदलने के कारण  इसमें ताजा प्रशाद नहीं बनता एक दिन पहले बनता है उसे बसोड़ा कहते हैं। वही देवी को भोग लगता है और दिनभर खाया जाता है। देवी से प्रार्थना की जाती है कि चेचक, खसरा आदि से बचाये। 

भंडारा महोत्सव 30 मार्च को खंडोबा मंदिर जेजुरी में मनाया जाने वाला, यह उत्सव मेला देश के शीषर््ा मेले त्यौहारों में है। जहाँ मंदिर से नदी तक देवता की शोभायात्रा निकाली जाती है। श्ऱद्धालुओं पर ढेरो हल्दी पाउडर डाला जाता है। इस रंगीन उत्सव को देखना बहुत भाता है। इसलिए इसे प्रसि़द्ध हल्दी उत्सव भी कहते हैं। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नवसंवत्सर से चैत्र नवरात्र शुरु होते हैं। देश भर में अलग अलग नाम से उत्सव मनाने में प्रकृति का भी सहयोग होता है। पेड़ पौधे नई नई कोंपले और फूलों से लदे होते हैं। गुड़ी पड़वा उत्सव महाराष्ट्रीयन और कोंकणी मनाते हैं। पूरनपोली, श्रीखंड, घी शक्कर खाने खिलाने का रिवाज़ है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। जिसके प्रतीक स्वरुप एक बांस पर बर्तन को उल्टा रखकर उस पर नया कपड़ा लपेट कर पताका की तरह ऊंचाई पर रखा जाता है। जो दूर से देखने में ध्वज की तरह लगता है। मुख्यद्वार पर अल्पना और आम के पत्तों का तोरण तो सभी हिन्दू घरों में दिखता है। कहीं आम के पत्ते घट स्थापना में होते हैं। दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी का पर्व मनाते हैं और सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी की पूजा करते हैं। मंदिर जाते हैं और एक विशेष भोजन पचड़ी(नीम की कोंपले फूल, आम, हरी मिर्च, नमक, इमली और गुड़) बनाया ताजा है जो सभी स्वादों को जोड़ती है। यानि मीठा, खट्टा, नमकीन, कडवा, कसैला और तीखा। तेलगु और कन्नड़ हिन्दु परंपराओं में पचड़ी प्रतीकात्मक है कि आने वाले वर्ष में हमें सभी अनुभवों की अपेक्षा करनी चाहिए और उनका लाभ उठाना चाहिए। गुड़ी पड़वा से अगले दिन चेटी चंड सिंधी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। जिसे सिंधी झूलेलाल के जन्मदिन के रुप में मनाते हैं।

मत्सय जयंती 31 मार्च चैत्र नवरात्र के समय और गणगौर के साथ मेल खाता है। यह भगवान विष्णु के मत्सय अवतार की वर्षगांठ है इस उत्सव पर विशेष पूजा, अर्चना और अभिषेक कर मत्सय पुराण, विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है। आन्ध्र प्रदेश के नागालपुरम में सोलहवीं शताबदी में विजयनगर साम्राज्य के शासक श्री कृष्णदेव राय द्वारा निर्मित श्री वेदनारायण स्वामी मंदिर भगवान मत्सय को समर्पित है। इस पावन अवसर पर यहाँ भव्य आयोजन किया जाता है। 

 जल बचाएं, गौरेया बचाएं क्योंकि उत्सवों के रंग तो पर्यावरण और लोककथाओं के संग ही हैं।

नीलम भागी(लेखिका, पत्रकार, ब्लॉगर, ट्रैवलर)

यह लेख प्रेरणा शोध  संस्थान नोएडा से प्रकाशित प्रेरणा विचार पत्रिका के मार्च अंक में प्रकाशित हुआ है।












 

Friday, 21 February 2025

सरस आजीविका मेला 2025 का शुभारंभ:

 


31 राज्यों के उत्पादों की बिक्री के साथ शुरू हुआ मेला** 

*20 राज्यों के प्रसिद्ध क्षेत्रीय व्यंजनों का लुत्फ उठा रहे लोग*  

*देशभर से 400 से अधिक लखपति दीदियां बनीं मेले की खास मेहमान* 

*सरस आजीविका मेला 2025 में पहले दिन हिमाचली एवं ग्रुप डांस की प्रस्तुति पर झूमे नोएडावासी*

 नोएडा में पांचवीं बार परंपरा, कला एवं संस्कृति का मनोरम माहौल और लखपति स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) दीदियों की निर्यात क्षमता के विकास की थीम के साथ सरस आजीविका मेला 2025 का शुभारंभ 21 फरवरी, शुक्रवार से हुआ। यह मेला 10 मार्च 2025 तक नोएडा के सेक्टर-33ए स्थित नोएडा हाट में आयोजित किया जाएगा। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा आयोजित और राष्ट्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) के समर्थन से आयोजित इस मेले में ग्रामीण भारत की शिल्प कलाओं का मुख्य रूप से प्रदर्शन किया जा रहा है।  

21 फरवरी से 10 मार्च 2025 तक चलने वाले इस उत्सव में नोएडा हाट में 400 से अधिक महिला शिल्प कलाकार शामिल हैं, जो परंपरागत हस्तकला, ग्रामीण संस्कृति और स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं। इसके साथ ही मेले में 85 से अधिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।  

*इंडिया फूड कोर्ट: 20 राज्यों के क्षेत्रीय व्यंजनों का स्वाद*

इस बार सरस आजीविका मेले में इंडिया फूड कोर्ट एक प्रमुख आकर्षण है। इसमें देशभर के 20 राज्यों की 80 उद्यमी गृहणियों ने अपने-अपने प्रदेश के प्रसिद्ध क्षेत्रीय व्यंजनों के स्टॉल लगाए हैं। इन स्टॉल्स पर हर प्रदेश के व्यंजनों का अनोखा स्वाद लोगों को आनंदित कर रहा है। इसके अलावा, देशभर से 400 से अधिक लखपति दीदियां इस मेले की खास मेहमान बनी हुई हैं।  

*हस्तशिल्प और हथकरघा उत्पादों की भरमार : चिरंजी कटारिया*

पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) के चिरंजी कटारिया ने बताया कि सरस आजीविका मेला 2025 में हथकरघा, साड़ी और ड्रेस मटेरियल से जुड़े कुछ उत्कृष्ट प्रदर्शन शामिल हैं। इनमें आंध्र प्रदेश की कलमकारी, असम का मेखला चादर, बिहार की कॉटन और सिल्क साड़ी, छत्तीसगढ़ की कोसा साड़ी, गुजरात का भारत गुंथन और पैचवर्क, झारखंड की तसर सिल्क और कॉटन साड़ी, मध्य प्रदेश के चंदेरी और बाग प्रिंट, मेघालय के इरी उत्पाद, ओडिशा की तसर और बांधा साड़ी, तमिलनाडु की कांचीपुरम साड़ी, तेलंगाना की पोचमपुरी साड़ी, उत्तराखंड की पश्मीना, कथा, बाटिक प्रिंट, तांत और बालुचरी तथा पश्चिम बंगाल के विभिन्न उत्पाद शामिल हैं।  

*हस्तशिल्प, ज्वेलरी और होम डेकोर उत्पाद* 

मेले में हस्तशिल्प, ज्वेलरी और होम डेकोर उत्पादों की भी भरमार है। इनमें आंध्र प्रदेश की पर्ल ज्वेलरी, असम के वाटर हायसिंथ हैंडबैग और योगा मैट, बिहार की लाह की चूड़ियां, मधुबनी पेंटिंग और सिक्की क्राफ्ट, छत्तीसगढ़ के बेल मेटल उत्पाद, गुजरात के मिरर वर्क और डोरी वर्क, हरियाणा के टेराकोटा उत्पाद, झारखंड की ट्राइबल ज्वेलरी, कर्नाटक के चन्नापटना खिलौने, ओडिशा के सबाई ग्रास उत्पाद और पटचित्र, तेलंगाना के लेदर बैग, वॉल हैंगिंग और लैंप शेड्स, उत्तर प्रदेश के होम डेकोर उत्पाद और पश्चिम बंगाल के डोकरा क्राफ्ट, सितल पट्टी और विविध उत्पाद शामिल हैं।  

*प्राकृतिक खाद्य पदार्थों की उपलब्धता*

मेले में प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के स्टॉल भी लगाए गए हैं। इनमें अदरक की चाय, दाल कॉफी, पापड़, एपल जैम और अचार जैसे उत्पाद उपलब्ध हैं। साथ ही, बच्चों के मनोरंजन के लिए भी विशेष इंतजाम किए गए हैं।  

### **सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद**  

मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी भरपूर आनंद उठाया जा सकता है। पहले दिन अंशु आर्ट्स के हिमाचली नृत्य और सत्यम इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन के ग्रुप डांस की प्रस्तुति पर नोएडावासी झूम उठे।  

## **ग्रामीण विकास मंत्रालय की पहल**  

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने यह मेला एक विशेष मुहिम के तहत आयोजित किया है, जिसका उद्देश्य हस्तशिल्पियों और हस्तकारों को रोजगार के अवसर प्रदान करना है। मेले के दौरान देशभर के 31 राज्यों के हजारों उत्पादों की प्रदर्शनी और बिक्री की जा रही है। 

 इस अवसर पर पंचायती राज संस्थान (एनआईआरडीपीआर) के सुधीर कुमार सिंह और सुरेश प्रसाद सहित अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों ने मेले की व्यवस्थाओं में पूर्ण सहयोग दिया।














Wednesday, 19 February 2025

लोकगीत! लोक के गीत हैं नीलम भागी

 


लोकगीत प्रकृति और मन के उद्गार हैं। लोक के गीत  हैं। जनसामान्य की कला है। जो किसी एक व्यक्ति का नहीं है, इसे समाज अपनाता है। लोक रचित लोकगीतों में कोई नियम कायदे नहीं होते। ऐसा सुनने में आता है कि  जिस समाज में लोक गीत नहीं होते। वहाँ पागलों की संख्या अधिक होती है। जब भी इसे गाया जाता है, श्रोता और गायक ताज़गी से भर जाता है।#Folksong,#लोकगीत,#अखिलभारतीयसाहित्यपरिषद,#नोएडाहाट,#ChawkiHaweli,

Tuesday, 18 February 2025

ए जी, ओ जी, सुनो जी, मैंने कहा जी, सुनते हो जी!! नीलम भागी

प्रो. नीलम राठी, प्रो. रजनी मान और मेरा सूरत में डिनर के बाद चाय पीने का मन था। हमने   श्री मेराभाई जामोद से चाय का पूछा तो वे  हमें मुन्ना भाई चाय स्टाल पर ले गए। वह बंद हो गया था। फिर वह हमें खेतला आपा चाय स्टाल ले गए। रास्ते में मेरे दिमाग में एक प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि मेरा भाई जी की पत्नी उन्हें क्या कह कर पुकारती होगी! क्योंकि हमने आज तक किसी का नाम 'मेराभाई' नहीं सुना था। मैंने उनसे प्रश्न पूछ  ही लिया,"मेराभाई जी, आपकी पत्नी आपको क्या कह कर बुलाती हैं? उन्होंने जवाब दिया,"कृषा के पापा।"मैंने अगला प्रश्न दागा,"बच्चे के जन्म से पहले?" उन्होंने उत्तर दिया,"ए जी, ओ जी, सुनो जी, मैंने कहा जी, सुनते हो जी आदि।" फिर हमने उनसे इस विशेष नामकरण की  कहानी सुनी जो लाजवाब चाय की तरह  थी।

https://www.instagram.com/reel/DGNhSOwPX73/?igsh=OHdpczBkYzh2M2Q3






Sunday, 16 February 2025

"राजयोग द्वारा डर पर विजय" पर आयोजित कार्यक्रम🙏

 ब्रह्माकुमारीज़ सेक्टर 46, 51 और 15 नोएडा ने आज [16.2.2025] – गार्डेनिया ग्लोरी, सेक्टर 46 में शिव जयंती के अवसर पर एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का विषय था "राजयोग द्वारा डर पर विजय" और इसमें सैकड़ों लोग उपस्थित हुए।

ध्यान और राजयोग का महत्व

कार्यक्रम की शुरुआत ब्रह्माकुमारी आँचल दीदी और ब्रह्माकुमारी लीना दीदी द्वारा निर्देशित ध्यान सत्र से हुई। लीना दीदी ने कहा कि भगवान शिव का एक नाम 'भूतनाथ' है, जो डर के भूत को नष्ट करने का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि राजयोग ध्यान के माध्यम से हम परमात्मा को अपना साथी बना सकते हैं और डर से मुक्ति पा सकते हैं। राजयोग ध्यान एक सरल और प्रभावशाली विधि है, जिसे कोई भी व्यक्ति कहीं भी, कभी भी कर सकता है। यह विधि आत्मा की शुद्धि करती है और मानसिक तनाव को कम करती है, जिससे व्यक्ति को आंतरिक शांति और शक्ति मिलती है।डर पर विजय पाने के लिए, राजयोग ध्यान आंतरिक शक्ति और स्पष्टता को बढ़ाता है। यह मन को नियंत्रित करने में मदद करता है, जो डर को दूर करने के लिए आवश्यक है। राजयोग के नियमित अभ्यास से व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक पहचान को पहचान सकता है, जिससे निराशा में भी आशा मिलती है।

आध्यात्मिक पहचान और आत्म-विश्वास का जागरण

ब्राह्माकुमारी पारुल ने एक वीडियो के माध्यम से बताया कि डर हमारे विश्वासों और शरीर के प्रति आसक्ति का परिणाम होता है। यदि हम अपने आप को सिर्फ शरीर न मानकर आत्मा समझें, तो हम अपने डर को भी समाप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा, "मन के जीते जीत है, मन के हारे हार है," और श्रोताओं को अपने डर पर विजय प्राप्त करने के लिए जागरूक और तैयार रहने के लिए प्रेरित किया। उपनिषद को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा, "मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥" अर्थात मन ही सभी मनुष्यों के बंधन एवं मोक्ष का प्रमुख कारण है। विषयों में आसक्त मन बंधन का और कामना-संकल्प से रहित मन ही मोक्ष (मुक्ति) का कारण कहा गया है।

मनोबल और सकारात्मक दृष्टिकोण पर विचार

इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की प्रोफ़ेसर डॉ. नीतू जैन ने अपने प्रेरणादायक भाषण में कहा कि "कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।" उन्होंने बताया कि डर पर विजय प्राप्त करना एक यात्रा है और इसकी शुरुआत छोटे कदमों से होती है। ईश्वर का सहारा लेने की बात करते हुए उन्होंने श्रोताओं को सोच और दृष्टिकोण बदलने के लिए प्रेरित किया।उन्होंने कहा, "जो तूने रब से लौ लगायी तो दिल में ख़ौफ़ ये जवाल कैसा, कि जिसकी कश्ती को थाम ले वो तो डूबने का सवाल कैसा। ये तेरी शोहरत ये कामयाबी तो इसमें तेरा कमाल कैसा, जो जीत उसके करम से है तो हारने का मलाल कैसा।" उन्होंने आगे कहा, "सोच बदलें तो सितारे बदल जाते हैं, नज़र बदलें तो नज़ारे बदल जाते हैं; कश्ती बदलने से कुछ नहीं होगा, दिशा बदलें  तो किनारे बदल जाते हैं।" उन्होंने श्रोताओं को स्वयं को बदलने के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया और कहा, "उम्र भर यही भूल करता रहा, धूल चेहरे पर थी और आईना साफ़ करता रहा।" एक बेहद ऊर्जावान और प्रेरणादायक भाषण के द्वारा उन्होंने लोगों को अपने डर के ऊपर जीत प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया।

स्वयं पर विश्वास और मानसिक शांति

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि, मनोवैज्ञानिक प्रिया भार्गव ने भी श्रोताओं से आत्म-संदेह पर विजय प्राप्त करने की बात की। उन्होंने कहा, "अपने डर के विचारों को लिखें और उन्हें वर्गीकृत करें – जिनका समाधान हम नियंत्रित कर सकते हैं, जिनका आंशिक समाधान है और जो हम नहीं बदल सकते, उन्हें अनदेखा करें।और विकृतियाँ जो गलत आत्म-निर्णय के कारण होती हैं, जिन्हें कमजोर करने के लिए सबूतों की खोज करके दूर किया जाना चाहिए" .यह विधि व्यक्ति को अपने डर से निपटने और मानसिक शांति प्राप्त करने में मदद करती है।

अतिथियों का मार्गदर्शन

कार्यक्रम में 500 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें वरिष्ठ अधिकारी और समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग शामिल थे। कार्यक्रम में श्री आरके सिंह (सेवानिवृत्त आईएएस), श्री अरुण कुंद्रा (आयकर वकील), श्री रवींद्र जैन (वरिष्ठ वैज्ञानिक) और श्री पंकज माथुर (पूर्व निदेशक, आईओसी जेवी) भी उपस्थित थे।नृत्य और एक लघु नाटिका के माध्यम से कार्यक्रम में भय पर विजय का विषय भी प्रस्तुत किया गया।

निष्कर्ष

यह कार्यक्रम ब्रह्माकुमारीज़ के तत्वावधान में आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य लोगों को राजयोग ध्यान के माध्यम से डर पर विजय प्राप्त करने और एक संतुष्ट जीवन जीने के लिए प्रेरित करना था। कार्यक्रम ने यह साबित किया कि आत्मविश्वास, सकारात्मक सोच और राजयोग ध्यान के माध्यम से हम किसी भी डर को परास्त कर सकते हैं और जीवन को खुशहाल बना सकते हैं।

सम्पर्क जानकारी:

ब्रह्माकुमारीज़, सेक्टर 46

फोन: [7986519538]








Saturday, 15 February 2025

काले भैंसे वाला और फालतू कुत्ते!😃 नीलम भागी

  

अम्मा का 96वाँ जन्मदिन है।  मैंने जन्मदिन की बधाई दी। अम्मा हाथ जोड़कर बोली," प्रार्थना करो, बस भगवान मुझे अपनी शरण में ले ले।" 31 जनवरी के बाद से जब भी कुत्ता भोंकता है तो अम्मा गंभीर हो जाती हैं और कहती हैं," इसको काले भैंसे वाला दिखाई दे रहा है। यह भौंक  देता है । वे चले जाते हैं। अब मैं प्रभु की शरण में कैसे जाऊंगी!!" जब भी ऐसी बात करती हैं तो मैं उन्हें भजन लगा देती हूं। वह साथ में गाती हैं और उसमें खो जाती हैं।  शाम तक अपनी पसंद की अखबार खत्म कर लेती हैं।







Wednesday, 12 February 2025

भैंसे वाला!! नीलम भागी


95 वर्षीय अम्मा 31 जनवरी को मेरे बाजू में लेटी भजन गाती हुई, एकदम बोली," मेरे पास 5 मिनट हैं। जल्दी से सबको बुलाओ  और मुझे दूसरे कमरे में ले जा।" घर में आवाज लगाते हुए, मैं  ले गई।  मैं सोफे पर बिठाने लगी तो बोली,"यहां नहीं दरवाजे के सामने दरी बिछा, उस पर लेट्यूंगी।"मैंने उनकी बात नहीं सुनी, फटाफट कुर्सी रखकर उस पर बिठाकर, उनके पीछे हीटर लगा दिया ताकि ठंड न लग जाए। उनके बताएं निर्देश के अनुसार दरवाजे के सामने गद्दा बिछाया। उन्होंने कहा,"इस दरवाजे की सब कुंडिया खोल दो, आगे से पर्दा हटा दो पर मैंने दरवाजा नहीं खोला ठंडी हवा के कारण, साथ ही सबको खबर कर दी। आधा घंटा पहले ही उनके पास 2 घंटे बैठकर अनिल दुकान पर गया था। अब सब आने लगे और अम्मा अपने अंतिम समय में करने वाले दिया बत्ती का मुझे निर्देश देती रही, गंगाजल का घूंट भरकर, मुंह में तुलसी दल  रखा और प्रभु से विनती करती रही, हे प्रभु मुझे अपने चरणों में शरण दो। ऐसा सीन बन गया था कि लग रहा था हम अम्मा को जाते हुए देखेंगे और अम्मा हाथ जोड़े प्रार्थना कर रही थी। फिर धीरे-धीरे सब अम्मा से बतियाने  लगे और उनका ध्यान बट गया। 11:15 बजे  मैंने सबसे कहा कि आप लोग भी जाओ, आराम करो। अम्मा को लेकर उनके कमरे में आ गई। मनु और शोभा काफी देर तक बैठे रहे। शोभा ने कहा कोई डर की बात नहीं है फिर वे चले गए। और रात भर अम्मा सोई नहीं, थोड़ी-थोड़ी देर बाद सामने घड़ी लगी होने पर भी समय पूछती रही और ना लाइट बंद करने दी। मैं बीच-बीच में सोती रही और उनको समय बताती रही। सुबह 5:45 पर मैंने कहा, "अम्मा सूरज निकल आया है इसलिए भैंसे वाला चला गया है।" अम्मा चुपचाप फिर अपने रोज के रूटीन में आ गई लेकिन हमेशा की तरह 2 घंटे पूजा पाठ नहीं किया। शायद रात भर जागने से दिन में हिम्मत ही नहीं बची थी। पर उस दिन से अम्मा जरा भी अकेले नहीं बैठती।



Friday, 7 February 2025

*आत्मबोध से विश्वबोध की यात्रा, भारतीय दर्शन की विशेषता है : भरत ठाकोर*

 





इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती द्वारा 07 फरवरी, 2025शुक्रवार को नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला में ‘आत्मबोध से विश्वबोध’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय, सूरत के प्राध्यापक डॉ. भरत ठाकोर ने मुख्य वक्ता के नाते कहा कि आत्मबोध से विश्वबोध की यात्रा, भारतीय दर्शन की विशेषता है।  व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि का विचार करके संपूर्ण विश्व का साक्षात्कार किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समस्याओं के आलोक में ‘स्व का जागरण’ आवश्यक है। ‘स्व’ से शुरू होकर ‘सर्व’ की ओर जाना, यह भारतीय आदर्श है।

 डॉ. हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर की प्राध्यापक डॉ. सुजाता मिश्र ने बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कहा कि आत्मबोध के बिना विश्वबोध संभव नहीं है। भारतीय साहित्य में आत्मबोध और विश्वबोध का सुंदर समन्वय प्रस्तुत हुआ है। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. विवेक शर्मा ने कहा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ में आत्मबोध से विश्वबोध का दर्शन समाहित है।

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री मनोज कुमार ने कहा कि सबसे पहले स्वयं को समझने की आवश्यकता है। अपने मन का विस्तार ही उदारता है, प्रेम है, यह सबको जोड़ता है। विस्तार न करें, तो संकुचन और सांप्रदायिक सोच को बढ़ावा मिलता है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. विनोद बब्बर ने कहा कि व्यक्ति से लेकर पूरे विश्व तक हमारी चेतना का विस्तार होना चाहिए। 

अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय मंत्री प्रवीण आर्य एवं प्रो. नीलम राठी की गरिमामयी उपस्थिति रही। 

कार्यक्रम का संचालन इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के संयुक्त महामंत्री संजीव सिन्हा ने किया एवं मंत्री सुनीता बुग्गा ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। 

इस अवसर पर इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती के उपाध्यक्ष मनोज कुमार, संयुक्त महामंत्री बृजेश गर्ग, कोषाध्यक्ष अक्षय अग्रवाल, मंत्री राकेश कुमार, नृत्य गोपाल, रजनी मान, जगदीश सिंह, नीलम भागी, जितेन्द्र कालरा, हरीश अरोड़ा, आचार्य अनमोल सहित बड़ी संख्या में लेखक, शोधार्थी एवं छात्र उपस्थित रहे।

संजीव सिन्हा( संयुक्त महामंत्री इंद्रप्रस्थ साहित्य भारती)