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Monday, 4 April 2022

हिन्दू नवसंवत्सर महानगर वाले, मुम्बई में सब गांव वाले! उत्सव मंथन नीलम भागी

मुम्बई में कोई मुझसे पूछता?’’आप किस गांव से ? मैं तपाक से उन्हें सुधारने के लहजे़ में जवाब देती,’’मैं दिल्ली से हूं।’’फिर वो बाकियों से परिचय करवाते हुए कहतीं, इनका गांव बैंगलोर, इनका गांव कोलकता है यानि हमारे देश के महानगरों वाले, मुम्बई में सब गांव वाले हैं। बाद में मुझे भी आदत हो गई थी। जब दिल्ली से लौटती तो कोई पूछता,’’दिखी नहीं!!’’मेरा जवाब होता,’’गाँव गई थी।’’वो बताती मैं भी आज ही गांव से लौटी हूं।’’मैं पूछती,’’तुम्हारा गांव का नाम? वो जवाब देती,’’चेन्नई।’’लेकिन त्यौहार में सारे गांव एक देश में तब्दील हो जाते हैं।

  चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा हिन्दू नवसंवत्सर से चैत्र नवरात्र शुरु होते हैं देश भर में अलग अलग नाम से उत्सव मनाने में प्रकृति का भी सहयोग होता है। पेड़ पौधे नई नई कोंपले और फूलों से लदे होते हैं। गुड़ी पड़वा उत्सव महाराष्ट्रीयन और कोंकणी मनाते हैं। पूरनपोली, श्रीखंड, घी शक्कर खाने खिलाने का रिवाज़ है। गुड़ी का अर्थ है विजय पताका। जिसके प्रतीक स्वरुप एक बांस पर बर्तन को उल्टा रखकर उस पर नया कपड़ा लपेट कर पताका की तरह ऊंचाई रखा जाता है। जो दूर से देखने में ध्वज की तरह लगता है। मुख्यद्वार पर अल्पना और आम के पत्तों का तोरण तो सभी हिन्दू घरों में दिखता है। कहीं आम के पत्ते घट स्थापना में होते हैं। दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में उगादी का पर्व मनाते हैं और सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा जी की पूजा करते हैं। मंदिर जाते हैं और एक विशेष भोजन पचड़ी(नीम की कोंपले फूल, आम, हरी मिर्च, नमक, इमली और गुड़) बनाया ताजा है जो सभी स्वादों को जोड़ती है। यानि मीठा, खट्टा, नमकीन, कडवा, कसैला और तीखा। तेलगु और कन्नड़ हिन्दु परंपराओं में पचड़ी प्रतीकात्मक है कि आने वाले वर्ष में हमें सभी अनुभवों की अपेक्षा करनी चाहिए और उनका लाभ उठाना चाहिए। गुड़ी पड़वा से अगले दिन चेटी चंड सिंधी हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। जिसे सिंधी झूलेलाल के जन्मदिन के रुप में मनाते हैं। 

        दुर्गा अष्टमी और नवमी को नवरात्र के व्रत, व्रतियों ने कन्या पूजन से सम्पन्न(पारण) किए। यानि हमारी एक ही संस्कृति हमें जोड़ती है। ये देखकर ही तो कहते हैं कि भारत सभ्यताओं का नहीं, संस्कृति का राष्ट्र है। सभ्यताओं में संघर्ष हो सकता है पर संस्कृति हमें जोड़ती है। बड़े दुलार से घरों में नौ देवियों के स्वरुप में नौ कन्याओं का पूजन होता है। सबके साथ हमारी गीता भी पर्स लटका कर जाती, पैर धुलवाती, कलावा बंधवाती और तिलक लगवाती। वो सबसे छोटी थी जो दस वर्ष तक की अलग अलग प्रदेशों की कन्या दीदियां कहतीं, वो करती यानि खा भी लेती। अपने गिफ्ट से उसे कोई मतलब नहीं, पर अपनी दक्षिणा तुरंत पर्स में रख लेती, जबकि पैसे गिनने उसे नहीं आते थे क्योंकि कन्या दीदियां ऐसा करतीं हैं। अगर कोई गोदी की कन्या है तो वे उसे भी उठा ले जातीं। उस दिन कन्याएं पर्स टांग कर बहुत गुमान में रहती हैं और यहीं से इनकी आपस में दोस्ती शुरु हो जाती है। अमेरिका जाने पर नवमीं के दिन उत्कर्षिणी राजीव,  गीता और उसकी सहेलियों को कन्या पूजन में बुलाते हैं। वो बड़ी खुशी से अपना पूजन करवाती हैं। उन्हें हमेशा इस दिन का इंतजार रहता है। भारत आने पर श्वेता अंकूर उसे घाघरा चोली चुनरी देते हैं। जिसे वह कन्या पूजन नवमीं पर पहनती है। इस बार उसने अपनी यूक्रेनियन सहेली को भी कन्यापूजन पर बुलाया। उत्कर्षिणी राजीव ने उसके माता पिता को भी पूजा में आमन्त्रित किया। सहेली को गीता ने बड़े प्यार से अपना लंहगा चोली चुनरी पहनवाई क्योंकि गीता हमेशा त्यौहारों पर भारतीय पोशाक पहनती है। यूक्रेनियन सहेली ने लहंगा पहली बार पहना था इसलिए वह कभी कभी उसे शॉट की तरह कर लेती थी। दोनों का कन्या पूजन किया। उसके माता पिता बहुत खुशी से इसमें शामिल हुए। पूजन के बाद  सबसे पहले मातारानी का प्रशाद हलुआ, छोले और पूरी को खाया फिर जो मरजी साथ में खाओ। हम भारतीय जहां भी जायेंगे अपनी परंपरा तो निभायेंगे। 

रामनवमीं को भगवान श्रीराम का जन्म सबने मनाया।

वैसाखी उत्सव फसल कटाई समय को दर्शाता है और ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी वैसाखी को धरती पर अवतरित हुई थी इसलिए इस दिन गंगा स्नान का महत्व है जो नहीं पहुंच सकते वे अपने आस पास बहने वाली नदी पर जाते हैं। पंजाब में वैसाखी के दिन नदियों के पास ही मेले लगते हैं। सुबह सपरिवार जो भी पास में नदी या बही होती है, वहाँ स्नान करते हैं। लौटते हुए जलेबी और अंदरसे खाते हैं। लोटे में नदी का जल, गेहूँ की पाँच छिंटा(बालियों वाली डंडियां) घर लाकर उस पर कलेवा बांध कर मुख्य द्वार से लटका दिया जाता है और नदी के जल को पूजा की जगह रख दिया जाता है। स्कूलों में भी बाडियां( गेहूं की कटाई) की छुट्टियां हो जाती हैं। फिर सपरिवार कटाई में लग जाते हैं। इन दिनों जो नौकरी पेशा सदस्य दूसरे शहरों में रहते हैं। वे भी पैतृक घरों में जाकर बाडियां में मदद करते हैं। बर्जुग परिवार को चेतावनी देते हुए कवित्त करते हैं

 ’पक्की ख्ेाती जान कर, न कर तूं अभिमान, 

 मींह(वर्षा) नेरी(आंधी) देख के, घर आई ते जान। 

 यानि लहलहाती फसल को देख कर कभी अभिमान मत करना। मौसम का कुछ नहीं पता। जब फसल खेत से खलिहान में आ जाती है। तब बैसाखी में लाये उस नदी के जल को खाली खेत में छिड़क दिया जाता है।

पूर्वोतर भारत का मुख्य रोजगार चाय बगान है। किसी के पास कोई भी हुनर नहीं है तो भी उसके लिए रोजगार है चाय की पत्ती तोडने का। हथकरघे का काम तो प्रत्येक घर में होता है। लोग बहुत र्कमठ हैं। महिलाएं कुछ ज्यादा ही मेहनती हैं, खेती के साथ कपड़ा भी बुनती हैं। इतनी मेहनत के बाद, त्यौहारों को बहुत उत्साह से मनाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बैसाख याानि 13, 14 अप्रैल में मनाया जाने बिहु उत्सव है। इस समय बसन्त के कारण प्राकृतिक सौन्दर्य चारों ओर होता है। इसे रोंगाली बिहु या बोहाग बिहू भी कहते हैं। एक महीना रात भर किसी न किसी के घर बीहू नृत्य गाना होता है। जो अपने घर करवाता है। वह सबका खाना पीना बकरी ,सूअर का मांस पकाता है और हाज (चावल की बीयर) आदि का बन्दोबस्त करता है। इसे सम्मान सेवा कहते हैं। मूंगा सिल्क जिसे दुनिया में गोल्डन सिल्क ऑफ आसाम कहते हैं, विश्व में और कहीं और नहीं होता। पुरूष गमझा गले में डालते है। मेखला चादर तो बहुत ही खूबसूरत पोशाक है उसे नृत्य के समय पहनते हैं, सब रेशम का होता है। बिहु की विशेषता है इसे सब मनाते हैं कोई जाति, वर्ग, धनी निर्धन का भेद भाव नहीं होता। उत्तराखण्ड में बिखोती उत्सव मनाया जाता है जिसमें पवित्र नदी में स्नान करके राक्षस को पत्थर मारने की प्रथा है। 13 अप्रैल 1699 को श्री केसरगढ़ साहिब आनन्दपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी इसलिए सभी गुरुद्वारों में समारोह किया जाता है। मुख्य समारोह आनन्दपुर साहिब में होता है।

     यूनेस्को द्वारा 2016 में मानवता की सांस्कृतिक विरासत के रुप में दर्ज, पाहेला वैशाख बंगाल, त्रिपुरा, बांगलादेश में उत्सव मंगल शोभा जात्रा का आयोजन होता है। जुरशीतल भारत और नेपाल क्षेत्र में मैथिलों द्वारा मनाया जाता है। बिहार सरकार ने इस दिन को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया है। मैथिल नववर्ष को जुरशीतल के उत्सव 14 अप्रैल को मिथिला दिवस का अवकाश रहता है। मैथिल इस दिन भात और बारी(बेसन की सरसों के तेल में छनी) और गुड़ वाली पूरी बनाते हैं। पाना संक्राति, महा बिशुबा संक्राति, उड़िया नुआ बरसा, उड़िया नया साल का सामाजिक, सांस्कृतिक धार्मिक उत्सव है। इस समारोह का मुख्य आर्कषण मेरु जात्रा, झामु जात्रा और चाडक पर्व है। ये भी 13 या 14 अप्रैल को पड़ता है। कहीं कहीं पर शिवजी संबंधित छाऊ नृत्य, लोक शास्त्रीय नृत्य समारोह होता है। अंगारों पर भी चलते हैं। तमिल नववर्ष को पुथांडु उत्सव कहते हैं। तमिल महीने चितराई के पहले दिन पुथांडु, तमिल नाडु, पांडीचेरी, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, मारीशियस में और विश्व में जहां भी तमिलियन हैं मनाया जाता है। यह आमतौर पर 14 अप्रैल को पड़ता है। इस दिन को तमिल नववर्ष या पुथुवरुशम के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार परिवार के सभी लोग एकसाथ मिलकर मनाते हैं। घर की सफाई, फूलों और लाइटों से सजावट करके, नहा कर नये कपड़े पहन कर मंदिर जाते हैं। घरों में शाकाहारी भोजन वडा, पायसम, खासतौर पर ’मैंगो पचड़ी’ बनाया जाता है।  यह भी कहा जाता है कि इस दिन देवी मीनाक्षी ने भगवान सुन्दरेश्वर से विवाह किया था।      

क्ेरल का नववर्ष मलियाली महीने मेदान के पहले दिन विशु मनाया जाता है। आसपास के राज्यों के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है। 14 या 15 अप्रैल को परिवार के साथ मनाते हैं। यह पर्व भगवान विष्णु और उनके अवतार कृष्ण को समर्पित हे। इस दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। पिछली फसल के लिए भगवान का धन्यवाद किया जाता है और धान की बुआई की जाती है। परिवार के बुजुर्ग विशुकानी(विष्णु की झांकी) सजाते हैं। सुबह बच्चों की आंखो को ढक कर परिवार का बड़ा, बच्चे को विशुकानी के सामने लाकर आंखों सेे हाथ हटा लेता है। अर्थात सुबह सबसे पहले भगवान के दर्शन करते हैं। बुजुर्ग बच्चों को विषुक्कणी(भेंट या रूपए) देते हैं। मंदिर जाते हैं। विषु भोजन करते हैं जिसमें 26 प्रकार का शाकाहारी भोजन होता है। इतने प्यारे फसलों के त्यौहार जिसमें सुस्वादु भोजन बनते हैं, नौकरी के कारण परिवार से दूूर गए सदस्यों को भी अति व्यस्त होने पर भी, कुटुंब में आने को मजबूर करते हैं।

  भारतीय संविधान के पिता, भारत के महान व्यक्तित्व बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का जन्मदिन 14 अप्रैल को धूमधाम से मनाया जाता है। 22 अप्रैल को पर्यावरण सुरक्षा के सर्मथन में विश्व पृथ्वी मनाते हैं। फसल उत्सव, प्रेरणास्रोत महापुरुषों का जन्मदिन और पर्यावरण संरक्षण को विशेष दिनों में मनाना हमारे जीवन को खुशहाल बनाता है।   

केशव संवाद के अप्रैल अंक में प्रकाशित है यह लेख