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Monday, 20 January 2025

यानि भारत राममय हो गया ! नीलम भागी Lokjeevan Mein Ram Part 2 Neelam Bhagi

 



दुकानदारी तो आज थी नहीं। लोग भला उत्सव मनाएंगें या खरीदारी करेंगे! न न न... यशपाल तो भण्डारा वितरण में लगे थे। अनिल मेरे लिए भण्डारे से चाय ले आया और मेरे पास बैठ गया। मैंने पूछा,’’अरे! मार्किट वालों ने तो भण्डारा बनाने को बहुत कारीगर लगा रखें हैं! अनिल ने जवाब दिया,’’छिन्दा लाज़वाब हलवाई है ये सूजी को बादामी भूनता है, हलवे में कोई कलर नहीं डालता है। उसकी टीम लगाई है। जो इनके यार दोस्त मिलने आ रहें हैं, वे भी इस समय रामयज्ञ में सहयोग कर रहें हैं। तभी तो किसी को जरा भी इंतज़ार नहीं करना पड़ रहा है।’’मुसलमान नाई के सैलून पर रामध्वज लहराता, मैं हैरानी से देखने लगी। मेरे पूछने से पहले ही अनिल बताने लगा कि नरेश पंवार ने मुफ्त सौ झण्डे बांटे, ये लेने गया तो खत्म हो गए। इसने खरीद कर लगाया है। इतने साल हमें मार्किट में बैठे हो गए, ऐसा उल्लास हमने कभी नहीं देखा। मैं केशव संवाद में उत्सव मंथन लिखने से पहले, दक्षिण में मित्रों से जानकारी लेती थी तो उनका कहना था कि हमारे यहाँ राम नवमीं धूमधाम से मनाई जाती है। सीताराम कल्याण का आयोजन होता है। एक पक्ष सीता जी की मूर्ति लाता है दूसरा रामजी की फिर विशाल शोभा यात्रा निकलती है। जिसका समापन रात को होता है। उत्तर भारत में यहाँ से बहुत अधिक राम मंदिर हैं। हमारे यहाँ उनके सेवक हनुमान जी के अधिक हैं। गुजराती और मारवाड़ी यहाँ रामकथा का आयोजन करते हैं तो खूब सब सुनने जाते हैं। आज मैंने रामलला प्राण प्रतिष्ठा के बारे में, वहाँ का माहौल जानने के लिए सुदेन्द्र कुलकर्णी को फोन से पूछा तो वे बताने लगे कि हैदराबाद से 21 जनवरी तक अयोध्या में चाय का अनवरत लंगर चलाया। दक्षिण में मैं मेरे सगे संबंधी मित्र ,जिसके यहाँ भी रामलला प्राण प्रतिष्ठा के पूजित अक्षत और निमंत्रण देने गए। उनका स्वागत हल्दी, चंदन और कुमकुम से किया गया और अगर साथ में महिला है तो उसे ब्लाउज का ही कपड़ा दे दिया। आज तो स्कूलों में गलियों में सीताराम कल्याण और भण्डारे का आयोजन है। 


एक ही आवाज सुनाई दे रही है राम आ गए, राम आ गए...। यानि भारत राममय हो गया है। अब मैं दूसरे रास्ते से पैदल घर की ओर जा रही हूँ। वही दृश्य है। कानों में आवाज़ आ रही है ’हम राम जी के राम जी हमारे हैं’ और दिमाग में मेरे विचार चल रहें हैं। राम शब्द कहते ही वाल्मीकि के ’राम’, तुलसी के ’मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ आते हैं। लेकिन आज तो मेरे मन में जन जन के राम का रूप उभर कर आ रहा है।                  

       गंगा तो राम जी की गाय है। हमारे घर में पलने वाली गाय का नाम नदियों पर होता और यमुना, गोमती, कमला, गोदावरी आदि सभी भली गाय राम जी की गाय कहलातीं थीं। एक माथे पर तिलक वाली काली गाय का नाम कृष्णा रखा गया, मारने के कारण बाद में वह ’लड़ाकी कृष्णा’ कहलाई। उसे कभी किसी ने रामजी की गाय नहीं कहा। क्रमशः 






लोक जीवन में राम भाग 1 Lokjeevan mein Ram Part 1 Neelam Bhagi

 


कहते हैं कि भावना से उमंग पैदा होती है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का दिन 22 जनवरी 2024 करीब आता जा रहा था। जन जन में उमंग बढ़ती जा रही थी। जगह जगह से शोभा यात्रा में शामिल होने का आमंत्रण था। मंदिरों में बैठकें चल रहीं थी कि अयोध्या जी से लाइव प्रसारण देखने के लिए बड़ी स्क्रीन कहाँ लगाई जाए? पण्डाल कितने बड़े हों? सर्दी में श्रद्धालुओं को चाय लगातार मिले। प्राण प्रतिष्ठा के बाद भोजन प्रसाद में कौन कौन से व्यंजन होने चाहिए। मार्किटों में दुकाने बढ़ाने के बाद बैठक होती कि सजावट कैसी हो? भण्डारे में क्या दें कि सबसे ज्यादा हमारी मार्किट में खाने आएं। दिवाली पर सजावट करवाई जाती है जो खर्चा आता है, सब दुकानदार बांट लेते हैं। अब ऐसा नहीं था सब राममय हैं। जिसे जो देना है दे, कोई मांगेगा नहीं। कुछ बोलते,’’जो कम पड़ेगा हम देंगे।’’ऐसा पहली बार हो रहा था। हलवाई कारीगरों की मांग बढ़ गई थी। वे टोकन मनी पकड़ने से पहले नहीं पूछ रहे थे कि कितने लोगों का खाना बनेगा या भण्डारा कब तक चलेगा? 21 जनवरी तक जगह जगह शोभा यात्रा निकाली गईं। जो सीनियर सीटीजन आम दिनों में मिलने पर हाय मेरे घुटनें और कमर दर्द का रोना लेकर बैठ जाते थे, वे शोभा यात्रा के बैण्ड बाजों की धुन पर ’मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जायेंगे, राम आयेंगे’ गाते हुए ताली बजा बजा कर थिरक रहे थे। शोभा यात्राएं जहां से भी गुजरतीं राह चलते लोग उसे मोबाइल में कैद करते। जगह जगह उनका स्वागत किया जाता। हमारे सेक्टरवासियों की विशेषता है कि उनकी उपस्थिति किसी भी कार्यक्रम में बहुत कम रहती है पर 21 जनवरी को निकलने वाली हमारे सेक्टर की शोभा यात्रा में शायद ही कोई घर में रुका होगा! 22 जनवरी को 11 बजे तक सभी मंदिर पहुंच गए। जिनके छोटे बच्चे थे। वे उन्हें भगवान राम के बालरूप में तैयार करके लाए थे। शायद हर्षोल्लास का माहौल था इसलिए पीले कपड़ों में बालरूप राम फूदकते फिर रहे थे। दूसरी, तीसरी में पढ़ने वाले बच्चे, जिन्हें एक दो लाइन का हिंदी पाठ्यक्रम का प्रश्न उत्तर याद नहीं होता है, वे रामस्तुति हाथ जोड़ कर, आँखे बंद करके सुना रहे थे। मैंने सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है। मंदिर में भोजन प्रसाद खाने के बाद, मैंने भाई को फोन पर पूछा,’’तुम्हारी मार्किट का भण्डारा वितरण हो चुका?’’उसने जवाब दिया,’’सुबह से चल रहा है। आगे राम जी की मर्जी। अब मैं पैदल चल दी। हर गाड़ी पर, ई रिकशा आदि पर राम जी का झंडा लगा था। कोई बाइक से गुजरता हुआ जोर से बोलता,’’जय श्री राम।’’जवाब कई दिशाओं से मिलता ’जय श्री राम’। एक किमी की दूरी तक रास्ते में मेन रोड पर ही सात भण्डारे चल रहे थे। आयोजक हाथ जोड़ कर आग्रहपूर्वक खिला रहे थे और राम धुन सुनाई दे रही थी। खाओ और घरवालों के लिए ले जाओ। दुकान पर जाकर मैं कुर्सी बाहर रख कर बैठ गई। आज सजे धजे लोगों को देखना ही बहुत अच्छा लग रहा था।

क्रमशः 





Monday, 4 March 2024

अयोध्या कैंट स्टेशन, श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र, अयोध्या धाम की यात्रा भाग 10 नीलम भागी

 


  15 मिनट चाय पीते हुए इंतजार किया। फिर  5.20 पर मैं अकेले ही स्टेशन के लिए निकल गई। दो ऑटो वालों में मेरे लिए बहस होने लगी। एक ₹400 मांग रहा था। दूसरा 350₹ मांग रहा था। पहला  कह रहा था। मैंने  इनकी अटैची को पहले पकड़ा था। पर अब अटैची मेरे हाथ में थी। एक तीसरा ऑटो सवारी लेकर आया, सवारी उतरी। यह दोनों बहस में लगे थे। उसने मुझसे पूछा," स्टेशन जाना है। मैंने कहा," हां, कितने पैसे में।" वह बोला," ₹200।" मैं झट से बैठ गई। उन्होंने बहस में मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। ये  चल पड़ा। स्टेशन से कुछ पहले, हमारे पहुंचते ही फाटक बंद हो गया। इस ऑटो वाले ने कहा," सामने स्टेशन है, मैं आपका लगेज उठा लेता हूं। आपको प्लेटफार्म पर पहुंचा देता हूं। मैंने कहा ,"फाटक खुलेगा तब जाऊंगी।" काफी देर बाद एक गाड़ी निकली। फाटक नहीं खुला। उसने कहा," मैं दूसरे रास्ते से जाऊंगा तो बहुत लंबा चक्कर है और मेरी पर्ची कटेगी ₹100 देना पड़ेगा।"  बेचारे का नुकसान ना हो, मैं ऑटो से उतरी। उसने पास में ज़मीन पर बैठी  महिला से मूंगफली खरीदी और उसे कहा,"बहिन गाड़ी का ध्यान रखना, मैं मां को छोड़कर आता हूं।" उस बेटे ने मेरा लगेज उठाया, मैं उसके पीछे चल दी। पाइप के नीचे से झुक कर, मैं भी बड़ी मुश्किल निकली।  वह मुझे दो लाइनों से क्रॉस करवा के तीसरी पर ले गया। साइड में मिट्टी थी। कोई पटरी नहीं थी, जिस पर मैं चल नहीं सकती थी। अब एक ही रास्ता था, कूद कूद के जो लकड़ी के फट्टे दोनों पट्रियों को जोड़ते हैं , उन पर पैर रखकर चलने का, चलने लगी। अब मैंने पूछा," बेटा गाड़ी आ गई तो!" उसने जवाब दिया,"इस लाइन पर गाड़ी नहीं आएगी, वह देखो सामने लाइन पर वेल्डिंग हो रही है न, वर्ना मैं आपको नहीं लाता।" अब मैं गिर ना जाऊं, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। जो स्टेशन पास लग रहा था। कठिन डगर पर  चलने से, काफी दूर लग रहा था। पत्थर पर चलने से पैर मुड़ने का डर था। यह तो अच्छा हुआ, मैंने जूते पहने हुए थे। भगवान से प्रार्थना कर रही थी कि आगे से ऐसी बेवकूफी कभी नहीं करूंगी, बस इस बार ठीक से पहुंच जाऊं। मेरे बच्चे  पढ़ेंगे तो मुझ पर गुस्सा करेंगे। फिर भी लिख इसलिए रही हूं ताकि और कोई ऐसी नेकी न करें। जब मेरे बाजू से दूसरी ट्रेन निकली तो बस मेरी जान नहीं निकली! सिर्फ दूर लाइन पर काम करने वालों को देखकर मेरे अंदर हिम्मत थी कि इस लाइन पर गाड़ी नहीं आएगी। अब मेरे इस बेटे ने मुझे प्लेटफार्म पर एक बेंच पर पहले बिठाया और  टी टी से पूछा, "गाड़ी कौन से प्लेटफार्म पर आएगी"। टी टी ने कहा," एक नंबर पर , लेकिन अनाउंसमेंट ध्यान से सुनना, 20 मिनट पहले ठीक पता चलेगा।" इस बेटे ने कहा कि अंडरग्राउंड से प्लेटफार्म दो पर जाया जा सकता है। अगर बदला तो सीढ़ी से मत जाना। मैंने उसे भाड़ा दिया। वह बेटा खुशी खुशी चला गया। मैं स्टेशन पर ध्यान देने लगी, बहुत ही साफ स्टेशन बहुतायत में बैंच लगे थे। पोचे ऐसे लग रहे थे, जैसे स्टेशन न होकर प्राइवेट नर्सिंग होम हो। खूब बंदर थे पर किसी को कुछ नहीं कह रहे थे। लोग उनको खाने को देकर पुण्य कमा रहे थे। वे बिस्कुटों से अघाये हुए थे। फिर भी बिस्कुट का पैकेट खोल कर फैला देते थे। कुछ लोग जो बिना नीचे देख चलते हैं उनके पैरों के नीचे से बिस्किट्टों का पाउडर बन जाता तो कुछ ही देर में वह साफ हो जाता।  इतनी यात्रा की हैं पर मैंने ऐसी सफाई कहीं नहीं देखी! लोकनायक एक्सप्रेस गाड़ी आधा घंटा लेट थी और प्लेटफार्म भी बदल गया। अब मैं अंडरग्राउंड से दूसरे प्लेटफार्म पर आ गई। यहां भी वैसे ही प्लेटफार्म का सीन था। आधा घंटा करते-करते हमारी गाड़ी दो घंटा लेट हो गई। अचानक कुछ देर पहले स्टेशन पर हलचल मच गई। पुलिस वालों ने बड़ी नम्रता से सबको थोड़ा पीछे किया और हाथों में टॉर्च पकड़े,  रोशनी वाले प्लेटफार्म पर भी, पुलिस ने टॉर्च दिखानी शुरू कर दी। ऐसा क्या हो गया! मन में प्रश्न उठा, पता चला कि आस्था गाड़ी गुजरेगी। आस्था गाड़ी  इस स्टेशन पर नहीं रुकी। आस्था गाड़ी के ठंड की वजह से खिड़कियां दरवाजे सब बंद थे। पर जो भी दो , चार खिड़कियां खुली थी, वहां पर सवारियां एक सी  डिस्पोजल प्लेट में खाती हुई दिखाई दीं। अंदर से महिलाओं ने जोर से नारा लगाया, "जय श्री राम"  गाड़ियों के इंतजार में खड़ी सवारियों ने भी उसी जोश से जवाब दिया  "जय श्री राम।" आस्था के जाते ही, अब रुकी हुई दो गाड़ियां 20 ,20 मिनट के अंतर पर  आई। ऐसा सीन मैंने कभी नहीं देखा। मेरे सामने जो डिब्बा था। उसके दरवाजे बिल्कुल नहीं खुले। अंदर बैठी सवारियां खिड़की से समोसे आदि खरीद रही थीं। दरवाजा न खुलने से सावरियां आगे चलती। बाजू के डिब्बे में दरवाजा खुला था और इतनी सवारियां थी बड़ी मुश्किल से चढ़ रही थी। पुलिस भी मदद कर रही थी पर बड़ा मुश्किल था, डिब्बे में प्रवेश करना था। इस गाड़ी के बाद शायद फरक्का एक्सप्रेस थी। उसमें भी चढ़ने का यही सीन था पर दो लड़के आए एक गाड़ी में चढ़ने की कोशिश कर रहा था। दूसरा एक डिब्बे में एक खिड़की में ग्रिल नहीं थी उसमें सामान फेकता जा रहा था। अंदर बैठी सवारियां शायद खुद ही अपना बचाव कर रही होंगी। मेरी तो सांसे अटक गई अगर यह चढ़ नहीं पाया तो इसके सामान का क्या होगा! पर गाड़ी के चलने के समय तक वह चढ़ गया। प्लेटफार्म पर बैठे  दर्शकों ने तालियां बजाईं। जिसने डब्बे में सामान भरा था। वह तो बहुत ही खुश था। अब हमारी गाड़ी के आने का समय हो गया और। देखा कि   बी 6 डिब्बा कहां खड़ा होगा? ताकि मैं वहां पहुंच जाऊं। अब ध्यान आया कि यहां तो किसी भी गाड़ी  के डिब्बे का डिस्प्ले ही नहीं किया, तभी तो सावरिया गाड़ी के साथ भागती थीं। अब बड़ी समस्या 🥺, 2 मिनट के लिए तो गाड़ी खड़ी होती है। स्टॉल वाले से पूछते कि बी 6 कहां खड़ा होगा? वह कहता कि उसे नहीं पता। फिर तो एकदम दौड़ना होगा।  यह थोड़ा सा समय सीनियर सिटीजन के लिए तो बहुत ही परेशानी वाला था। आप रात में पोचेे कम लगवा लो पर यह तो पता होना चाहिए कौन सा डिब्बा स्टेशन में कहां खड़ा होगा पर ऐसा नहीं हुआ। गाड़ी आई मैंने उस पर आंखें गड़ा रखी थीं ये सोच कर कि बी6 को देखकर  उसके साथ-साथ चलना शुरू कर दूंगी। गाड़ी आई रुक गई। बी डिब्बा शुरू ही नहीं हुआ, जहां मैं खड़ी थी। अब लगेज उठाया फटाफट पीछे की ओर दौड़ने लगी। बी 6 तक पहुंच कर लगेज अंदर किया और चढ़ी। अब बुरी तरह हाफ रही थी। कुछ देर सांस नॉर्मल होने पर मैं अपनी  सीट पर गई । वहां लेटी महिला को उठाया, उसने मेरी टिकट चेक की। तसल्ली होने पर मिडिल सीट पर जो पुरुष लेटा था। उसके सिर की तरफ टांगे करके लेट गई यानि एक सीट पर दो। अपनी लोअर सीट पर मिडिल सीट खुली होने के कारण, मैं बैठ तो सकती नहीं थी, लेट गई। उसकी जुराबों से इतनी दुर्गन्ध थी कि बड़ी मुश्किल से नींद आई। गाड़ी ने लेट होने पर भी समय पर गाजियाबाद प्लेटफार्म नंबर 3 पर उतारा। यह प्लेटफॉर्म भी बहुत साफ था। अंकुर मुझे लेने आ गया था और  बड़ी उत्सुकता से राम मंदिर, अयोध्या जी यात्रा के बारे में प्रश्न करता जा रहा था। अपने घर ले जाने लगा तो मैंने मना कर दिया। पहले अम्मा के पास जाना है। क्योंकि अम्मा को तीर्थ यात्रा से लौटने पर मेरा बहुत इंतजार रहता है। प्रसाद लेकर खुश होती है। अम्मा को दर्शनों के बाद जो मंदिर से प्रसाद मिला था, वह दिया। अम्मा ने जय सियाराम करके खाया। समाप्त