कहते हैं कि भावना से उमंग पैदा होती है। राम लला की प्राण प्रतिष्ठा का दिन 22 जनवरी 2024 करीब आता जा रहा था। जन जन में उमंग बढ़ती जा रही थी। जगह जगह से शोभा यात्रा में शामिल होने का आमंत्रण था। मंदिरों में बैठकें चल रहीं थी कि अयोध्या जी से लाइव प्रसारण देखने के लिए बड़ी स्क्रीन कहाँ लगाई जाए? पण्डाल कितने बड़े हों? सर्दी में श्रद्धालुओं को चाय लगातार मिले। प्राण प्रतिष्ठा के बाद भोजन प्रसाद में कौन कौन से व्यंजन होने चाहिए। मार्किटों में दुकाने बढ़ाने के बाद बैठक होती कि सजावट कैसी हो? भण्डारे में क्या दें कि सबसे ज्यादा हमारी मार्किट में खाने आएं। दिवाली पर सजावट करवाई जाती है जो खर्चा आता है, सब दुकानदार बांट लेते हैं। अब ऐसा नहीं था सब राममय हैं। जिसे जो देना है दे, कोई मांगेगा नहीं। कुछ बोलते,’’जो कम पड़ेगा हम देंगे।’’ऐसा पहली बार हो रहा था। हलवाई कारीगरों की मांग बढ़ गई थी। वे टोकन मनी पकड़ने से पहले नहीं पूछ रहे थे कि कितने लोगों का खाना बनेगा या भण्डारा कब तक चलेगा? 21 जनवरी तक जगह जगह शोभा यात्रा निकाली गईं। जो सीनियर सीटीजन आम दिनों में मिलने पर हाय मेरे घुटनें और कमर दर्द का रोना लेकर बैठ जाते थे, वे शोभा यात्रा के बैण्ड बाजों की धुन पर ’मेरी झोपड़ी के भाग आज खुल जायेंगे, राम आयेंगे’ गाते हुए ताली बजा बजा कर थिरक रहे थे। शोभा यात्राएं जहां से भी गुजरतीं राह चलते लोग उसे मोबाइल में कैद करते। जगह जगह उनका स्वागत किया जाता। हमारे सेक्टरवासियों की विशेषता है कि उनकी उपस्थिति किसी भी कार्यक्रम में बहुत कम रहती है पर 21 जनवरी को निकलने वाली हमारे सेक्टर की शोभा यात्रा में शायद ही कोई घर में रुका होगा! 22 जनवरी को 11 बजे तक सभी मंदिर पहुंच गए। जिनके छोटे बच्चे थे। वे उन्हें भगवान राम के बालरूप में तैयार करके लाए थे। शायद हर्षोल्लास का माहौल था इसलिए पीले कपड़ों में बालरूप राम फूदकते फिर रहे थे। दूसरी, तीसरी में पढ़ने वाले बच्चे, जिन्हें एक दो लाइन का हिंदी पाठ्यक्रम का प्रश्न उत्तर याद नहीं होता है, वे रामस्तुति हाथ जोड़ कर, आँखे बंद करके सुना रहे थे। मैंने सोशल मीडिया पर भी शेयर किया है। मंदिर में भोजन प्रसाद खाने के बाद, मैंने भाई को फोन पर पूछा,’’तुम्हारी मार्किट का भण्डारा वितरण हो चुका?’’उसने जवाब दिया,’’सुबह से चल रहा है। आगे राम जी की मर्जी। अब मैं पैदल चल दी। हर गाड़ी पर, ई रिकशा आदि पर राम जी का झंडा लगा था। कोई बाइक से गुजरता हुआ जोर से बोलता,’’जय श्री राम।’’जवाब कई दिशाओं से मिलता ’जय श्री राम’। एक किमी की दूरी तक रास्ते में मेन रोड पर ही सात भण्डारे चल रहे थे। आयोजक हाथ जोड़ कर आग्रहपूर्वक खिला रहे थे और राम धुन सुनाई दे रही थी। खाओ और घरवालों के लिए ले जाओ। दुकान पर जाकर मैं कुर्सी बाहर रख कर बैठ गई। आज सजे धजे लोगों को देखना ही बहुत अच्छा लग रहा था।
क्रमशः
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