दुकानदारी तो आज थी नहीं। लोग भला उत्सव मनाएंगें या खरीदारी करेंगे! न न न... यशपाल तो भण्डारा वितरण में लगे थे। अनिल मेरे लिए भण्डारे से चाय ले आया और मेरे पास बैठ गया। मैंने पूछा,’’अरे! मार्किट वालों ने तो भण्डारा बनाने को बहुत कारीगर लगा रखें हैं! अनिल ने जवाब दिया,’’छिन्दा लाज़वाब हलवाई है ये सूजी को बादामी भूनता है, हलवे में कोई कलर नहीं डालता है। उसकी टीम लगाई है। जो इनके यार दोस्त मिलने आ रहें हैं, वे भी इस समय रामयज्ञ में सहयोग कर रहें हैं। तभी तो किसी को जरा भी इंतज़ार नहीं करना पड़ रहा है।’’मुसलमान नाई के सैलून पर रामध्वज लहराता, मैं हैरानी से देखने लगी। मेरे पूछने से पहले ही अनिल बताने लगा कि नरेश पंवार ने मुफ्त सौ झण्डे बांटे, ये लेने गया तो खत्म हो गए। इसने खरीद कर लगाया है। इतने साल हमें मार्किट में बैठे हो गए, ऐसा उल्लास हमने कभी नहीं देखा। मैं केशव संवाद में उत्सव मंथन लिखने से पहले, दक्षिण में मित्रों से जानकारी लेती थी तो उनका कहना था कि हमारे यहाँ राम नवमीं धूमधाम से मनाई जाती है। सीताराम कल्याण का आयोजन होता है। एक पक्ष सीता जी की मूर्ति लाता है दूसरा रामजी की फिर विशाल शोभा यात्रा निकलती है। जिसका समापन रात को होता है। उत्तर भारत में यहाँ से बहुत अधिक राम मंदिर हैं। हमारे यहाँ उनके सेवक हनुमान जी के अधिक हैं। गुजराती और मारवाड़ी यहाँ रामकथा का आयोजन करते हैं तो खूब सब सुनने जाते हैं। आज मैंने रामलला प्राण प्रतिष्ठा के बारे में, वहाँ का माहौल जानने के लिए सुदेन्द्र कुलकर्णी को फोन से पूछा तो वे बताने लगे कि हैदराबाद से 21 जनवरी तक अयोध्या में चाय का अनवरत लंगर चलाया। दक्षिण में मैं मेरे सगे संबंधी मित्र ,जिसके यहाँ भी रामलला प्राण प्रतिष्ठा के पूजित अक्षत और निमंत्रण देने गए। उनका स्वागत हल्दी, चंदन और कुमकुम से किया गया और अगर साथ में महिला है तो उसे ब्लाउज का ही कपड़ा दे दिया। आज तो स्कूलों में गलियों में सीताराम कल्याण और भण्डारे का आयोजन है।
एक ही आवाज सुनाई दे रही है राम आ गए, राम आ गए...। यानि भारत राममय हो गया है। अब मैं दूसरे रास्ते से पैदल घर की ओर जा रही हूँ। वही दृश्य है। कानों में आवाज़ आ रही है ’हम राम जी के राम जी हमारे हैं’ और दिमाग में मेरे विचार चल रहें हैं। राम शब्द कहते ही वाल्मीकि के ’राम’, तुलसी के ’मर्यादा पुरुषोत्तम राम’ आते हैं। लेकिन आज तो मेरे मन में जन जन के राम का रूप उभर कर आ रहा है।
गंगा तो राम जी की गाय है। हमारे घर में पलने वाली गाय का नाम नदियों पर होता और यमुना, गोमती, कमला, गोदावरी आदि सभी भली गाय राम जी की गाय कहलातीं थीं। एक माथे पर तिलक वाली काली गाय का नाम कृष्णा रखा गया, मारने के कारण बाद में वह ’लड़ाकी कृष्णा’ कहलाई। उसे कभी किसी ने रामजी की गाय नहीं कहा। क्रमशः