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Sunday, 31 December 2023

गंगा जी के किनारे!अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'नदी साहित्य' में हरिद्वार यात्रा भाग 2 नीलम भागी

  

रिसेप्शन पर पहुंचते ही डॉक्टर सुनील  पाठक अध्यक्ष अखिल भारतीय साहित्य परिषद उत्तराखंड मिले। उन्होंने अपना परिचय दिया। उनकी तबीयत कुछ खराब लग रही थी लेकिन सबको बहुत अच्छे से अटेंड कर रहे थे। मुझे तुरंत मेरे रूम में भेजा। यहां चूरू से बहुत लंबा सफर करके  स्नेह लता, सुरेश शर्मा जी एडवोकेट , अनुसूया शर्मा, राजेंद्र शर्मा 'मुसाफिर' कुछ समय पहले ही पहुंचे थे। मेरे पहुंचते सुरेश जी और राजेंद्र जी दूसरे रूम में चले गए। स्नेहलता जी और अनुसूया जी के  साथ, मुझे रूम शेयर करना था। परिचय के बाद दोनों आपस में कहने लगी कि पानी का स्वाद मुंह में नहीं चढ़ रहा है। गर्मी थी जो वह पानी अपने घर से लाई थीं, वह बीकानेर तक खत्म हो गया था। मुझे सुनकर बड़ा अजीब लगा। बाद में पता चला कि वे बारिश का पानी स्टोर करते हैं, बड़े-बड़े टैंक बना रखे हैं और एक बूंद भी बरसात का पानी उनके घर का व्यर्थ नहीं जाता, सीधा टैंक में जाता है जो खराब नहीं होता है, पूरा साल चलता है। सुनकर बहुत अच्छा लगा। जितने भी मेरे दिमाग में इस सिलसिले में प्रश्न खड़े थे। सभी का जवाब बहुत संतोषजनक मिला। फिर हम लंच करने गए ।  बूंदा बांदी हो रही थी। हम बतियाने लगे। 4:00 बजे बारिश के रुकने के बाद हम गंगा जी से मिलने चल दिए। हरिद्वार मैं पहले भी बहुत आई हूं और इस बार मुझे ज्यादा घूमना नहीं था। अपनी चोटों से डरी हुई थी। अपने ब्लॉक के हरिद्वार यात्रा के लिंक लगाऊंगी। क्लिक करके आप पढ़ सकते हैं। 

https://neelambhagi.blogspot.com/2016/12/blog-post.html?m=1

https://neelambhagi.blogspot.com/2021/10/blog-post_8.html

https://neelambhagi.blogspot.com/2021/10/blog-post_7.html

 हम जैसे ही जम्मू यात्री निवास से बाहर रोड पर खड़े हुए, लगातार  20₹ सवारी शेयरिंग ऑटो आ रहे थे। हम पांच तो उसमें बैठे। उसने हमें हर की पैड़ी के पास जो फुटओवर ब्रिज है, वहां उतार दिया। लता जी और सुरेश जी आगे आगे चले गए। अनुसूया, राजेंद्र जी और मैं फोटो सेशन करने लगे। जब हम लता जी के पास पहुंचे तो वे गंगा जी में डुबकी लगा चुकी थीं। सब ने गंगा जी के पास जाकर अपने ऊपर गंगाजल छिड़का। धीरे-धीरे भीड़  बढ़ रही थी। हम भी खूब घूम कर 5:00 बजे धूप में ही खाली जगह देखकर बैठ गए। यहां बैठना ही अपने आप में दूर दूर से आए भारतवासियों की झलक और गंगा जी के प्रति उनका प्रेम दिखाता है। कोई पॉलिथिन बेच रहा है, जिसे ख़रीद कर लोग उस पर बैठ रहे थे। चाय बेचने वाले, सबसे  ज्यादा पूजा करवाने वाले पंडित जी, घूम रहे थे और लोग पूजा करवा रहे थे। जो गंगा के किनारे पूजा के लिए जाता उसे आने जाने की लोग तुरंत जगा देते । आरती से पहले के नजारे भी बहुत अच्छे लगते हैं। कुछ लड़के गंगा जी में गोते मार कर रेत की मुट्ठी भर के और उसमें से जो भी उन्हें मिलता है गंगा जी की तरफ से उसे पाकर  प्रसन्न होते हैं। आरती के लिए दान देने वालों की भी कमी नहीं थी, रसीद कटवा रहे थे। स्वयंसेवक व्यवस्था देख रहे थे। धीरे-धीरे अंधेरा होने लगा और आरती शुरू हुई। इस समय कोई आपस में बात नहीं कर रहा था। चारों ओर आरती का स्वर था और श्रद्धालुओं का भाव! हम आरती खत्म होने से थोड़ा पहले उठ गए, बाद में बहुत भीड़ हो जाती है और आरती का समापन हमारा गंगा जी के किनारे चलते हुए ही हुआ । गंगा जी से सबको कुछ न कुछ मिलता  है। किसी को मानसिक संतोष, कोई आरती करवा कर पुण्य प्राप्त कर रहा है तो कोई पानी में गोते लगाकर, रेत में कुछ पा रहा है। जय गंगा मैया। अब वही शेयरिंग ऑटो ढाई सौ रुपए में था।  जम्मू यात्री निवास में लौटे तो प्राची पाठक अपने सहयोगियों के साथ रजिस्ट्रेशन कर रही थीं।  हमने रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरा और डिनर के लिए गए। कुछ भी नया ट्राई करना, मेरी आदत में शामिल है यहां एक सब्जी थी, उसे खट्टा बोलते थे मोटे मोटे सीताफल के टुकड़े और जो ग्रेवी थी  वह बहुत ही लजीज खट्टी मीठी थी। रूम में लौटे, 

 लता जी  ने अपनी लिखी दो पुस्तकें  'दो दूनी चार  और स्वयंसिद्धा' दी। जो किताबें लिखते हैं, उनका मैं दिल से बहुत सम्मान करती हूं। दो दूनी चार तो मैंने वहीं पर पढ़ ली और लता जी से उस पर बात भी कर ली। क्रमशः 









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