नेपाल में खतरनाक रास्ते से मुक्तिनाथ जो 3800 मीटर की ऊँचाई पर है, जा रही थी। बाजू में काली गंडकी नदी बह रही थी। उसके पत्थर शालिग्राम हैं।
मैं अखिल भारतीय साहित्य परिषद के 15वें अधिवेशन में जबलपुर गई थी। सांस्कृतिक कार्यक्रम में डिंडोरी से आये आदिवासियों ने जो भी प्रस्तुति दी, उनके लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश सब कुछ माँ नर्मदा थी। नदी में तो इतनी शक्ति हैं वह पत्थर को भी भगवान बना देती है। तभी तो कहते हैं
नर्मदा के कंकर, सब शिव शंकर।
नदियों के किनारे प्राचीन नगर, महानगर या तीर्थस्थल हैं। र्तीथस्थल हमारी आस्था के केन्द्र हैं। यहाँ जाकर मानसिक संतोष मिलता है। देश के कोने कोने से तीर्थयात्री आते हैं। एक ही स्थान पर समय बिताते हैं। अपने प्रदेश की बाते करते हैं और दूसरे की सुनते हैं। कुछ हद तक देश को जान जाते हैं। उनमें सहभागिता आती है। अपने परिवेश से नये परिवेश में थोड़ा समय बिताते हैं। कुछ एक दूसरे से सीख कर जाते हैं, कुछ सीखा जाते हैं। मानसिक सुख भी प्राप्त करते हैं। धर्म लाभ तो होता ही है।
हर नदी वहाँ के स्थानीय लोगो के लिये पवित्र है और उनकी संस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी है। हमारे अवतारों की जन्मभूमि भी नदियों वाले शहरों में है। उनका जन्मदिन उत्सव है। इसलिए हमारे उत्सव में नदी में स्नान करना शामिल है। हमारे यहाँ नदियों को माँ कहा जाता है। जैसे माँ निस्वार्थ संतान का पोषण करती है। वैसे ही नदी हमें देती ही देती है। जीवनदायनी नदियों को लोग पूजते हैं, मन्नत मानते हैं।
हमारे यहाँ नदियों की दंत कथाएं हैं, कविताएं, चालीसा, आरती और गीत हैं। पद्मश्री विलक्षण लोकगायिका, मलिका ए नौटंकी गुलाब बाई का एक बहुत मशहूर गाना ’’नदी नारे न जाओ, श्याम पैंया पढ़ूँ! उनका गाना फिल्म में ले लिया पर उनको क्रैडिट भी नहीं दिया। एस.डी.बर्मन के नदी गीत बहुत मशहूर हैं।
साबरमती के संत गांधी जी का जन्मदिन 2 अक्तूबर ’विश्व अहिंसा दिवस’ के रुप में मनाया जाता है।
15 अक्तूबर से नवरात्र शुरु हैं, 20 अक्तूबर से दुर्गा पूजा है। यह भारतीय उपमहाद्वीप व दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला सामाजिक-सांस्कृतिक धार्मिक वार्षिक हिन्दू पर्व है। पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा और त्रिपुरा में सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। नेपाल और बंगलादेश में भी बड़े त्यौहार के रुप में मनाया जाता है। दुर्गा पूजा पश्चिमी भारत के अतिरिक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। हिन्दू सुधारकों ने ब्रिटिश राज में इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। दिसम्बर 2021 में कोलकता की दुर्गापूजा को यूनेस्को की अगोचर सांस्कृतिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य की महिलाएं बड़े उत्साह से पूरे नौ दिन बतुकम्मा महोत्सव मनातीं हैं। ये शेष भारत के शरद नवरात्रि से मेल खाता है। प्रत्येक दिन बतुकम्मा उत्सव को अलग नाम से पुकारा जाता है। जंगलों से ढेर सारे फूल लाते हैं। फूलों की सात पर्तों से गोपुरम मंदिर की आकृति बनाकर बतुुकम्मा अर्थात देवियों की माँ पार्वती महागौरी के रूप में पूजा जाता है। लोगों का मानना है कि बतुकम्मा त्यौहार पर देवी जीवित अवस्था में रहती हैं और श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करतीं हैं। त्योहार के पहले दिन सार्वजनिक अवकाश होता है। नौ दिनों तक अलग अलग क्षेत्रिय पकवानों से गोपुरम को भोग लगाया जाता है। और इस फूलों के उत्सव का आनन्द उठाया जाता है। नवरात्रि की अष्टमी को यह त्यौहार दशहरे से दो दिन पहले समाप्त है।
बतुकम्मा से मिलता जुलता, तेलंगाना में कुवांरी लड़कियों द्वारा बोडेम्मा पर्व मनाया जाता है। जो सात दिनों तक चलने वाला गौरी पूजा का पर्व है। महाअष्टमी और महानवमी को नौ बाल कन्याओं की पूजा की जाती है जो देवी नवदुर्गा के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करतीं हैं। हम भारतीय कन्या पूजन विदेश में रह कर भी करते हैं।
15 से 23 अक्तूबर तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया जा रहा है किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा ने सबसे पहले तिरूमाला में ब्रह्मोत्सव मनाया था। तिरूमाला में तो हर दिन एक त्यौहार है और धन के भगवान श्री वेंकटेश्वर साल में 450 उत्सवों का आनन्द लेते हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मोत्सव है। जिसका शाब्दिक अर्थ है ’ब्रह्मा का उत्सव’ जिसमें हजारो श्रद्धालू इस राजसी उत्सव को देखने जाते हैं।
दशहरे की छुट्टियों में जगह जगह रात को रामलीला मंचन मंच पर होता है। जिसे बच्चे बहुत ध्यान से देखते हैं। लौटते हुए रामलीला के मेले से गत्ते, बांस, चमकीले कागजों से बने चमचमाते धनुष बाण, तलवार और गदा आदि शस्त्र खरीद कर लाते और वे दिन में पार्कों में रामलीला का मंचन करते हैं। जिसमें सभी बच्चे कलाकार होते। उन्हें दर्शकों की जरुरत ही नहीं होती। इन दिनों सारा शहर ही राममय हो जाता।
बहू मेला जम्मू और कश्मीर, जम्मू में आयोजित होने वाले सबसे बड़े हिंदू त्योहारों में से एक है। यह जम्मू के बहू किले में साल में दो बार नवरात्रों के दौरान मनाया जाता है। इस दौरान पर्यटक और स्थानीय लोग रंगीन पोशाकें पहनते हैं और मेले में खरीदारी करते हैं और खाने के स्टॉल में वहाँ के पारम्परिक खानों का स्वाद लेते हैं।
शरदोत्सव दुर्गोत्सव एक वार्षिक हिन्दू पर्व है। जिसमें प्रांतों में अलग अलग पद्धति से देवी पूजन, क्न्या पूजन है। गुजरात का नवरात्र में किया जाने वाला गरबा, डांडिया नृत्य तो पूरे देश का हो गया है। जो नहीं करते, वे देखने जाते हैं।
तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक में दशहरे से पहले नौ दिनों को तीन देवियों की समान पूजा के लिए तीन तीन दिनों में बांट दिया है। पहले तीन दिन धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं। अगले तीन दिन शिक्षा और कला की देवी सरस्वती को समर्पित है और माँ शक्ति दुर्गा को समर्पित हैं और विजयदशमी का दिन बहुत शुभ माना जाता है। बच्चों के लिए विद्या आरंभ के साथ कला में अपनी अपनी शिक्षा शुरु करने के लिए इस दिन सरस्वती पूजन किया जाता है।
कावेरी संकरमना 18 अक्तूबर हमारे देश की पाँच पवित्र नदियों में शुमार दक्षिण की गंगा, कावेरी का उदगम स्थल, ताल कावेरी है, ब्रहमगिरि की पहाड़ियों में भागमंडला मंदिर है। यहाँ से आठ किलामीटर की दूरी पर तालकावेरी है, कावेरी का उद्गम स्थल, मंदिर के प्रांगण में ब्रह्मकुण्डिका है, जहाँ श्रद्धालु स्नान करते हैं। 17 अक्टूबर को कावेरी संक्रमणा का त्यौहार है। जीवनदायिनी माता कावेरी ने दूर दूर तक कैसा अतुलनीय प्राकृतिक सौंदर्य और प्राकृतिक संपदा बिखेरी है।
कोंगाली बिहु(18 अक्टूबर) इस समय धान की फसल लहलहा रही होती है। लेकिन किसानों के खलिहान खाली होते हैं। इसमें खेत में या तुलसी के नीचे दिया जला कर अच्छी फसल की कामना करते हैं यानि यह प्रार्थना उत्सव है। भेंट में एक दूसरे को गमुशा, हेंगडांग(तलवार) देते हैं। कोंगाली बिहू से ये भी युवाओं को समझ आ जाता है कि मितव्यवता से भी उत्सव मनाया जाता है।
महाभारत के रचियता वेदव्यास महाभारत के बाद मानसिक उलझनों में उलझे थे, तब शांति के लिये वे तीर्थाटन पर चल दिए। दंडकारण्य(बासर का प्राचीन नाम) तेलंगाना में, गोदावरी के तट के सौन्दर्य ने उन्हें कुछ समय के लिए रोक लिया था।
यहीं ऋषि वाल्मिकी ने रामायण लेखन से पहले, माँ सरस्वती को स्थापित किया और उनका आर्शीवाद प्राप्त किया था। मंदिर के निकट वाल्मीकि जी की संगमरमर की समाधि है। बासर गाँव में आठ तालाब हैं। जिसमें वाल्मीकि तीर्थ है। पास में ही वेदव्यास गुफा है। लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा की मूर्तियाँ हैं। पास ही महाकाली का विशाल मंदिर है। नवरात्र में बड़ी धूमधाम रहती है। आज उस माँ शारदे निवास को ’श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर’ कहते हैं। हिंदुओं का महत्वपूर्ण संस्कार ’अक्षर ज्ञान’ विजयदशमी को मंदिर में मनाया जाता है जो बच्चे के जीवन में औपचारिक शिक्षा को दर्शाता है। बासर में गोदावरी तट पर स्थित इस मंदिर में बच्चों को अक्षर ज्ञान से पहले अक्षराभिषेक के लिए लाया जाता है और प्रसाद में हल्दी का लेप खाने को दिया जाता है।
विजयदशमी को देश में कहीें महिषासुर मर्दिनी को सिंदूर खेला के बाद नदी में विसर्जित किया जाता है। नदी किनारे मेले का दृश्य होता है। तो कहीं श्री राम की रावण पर विजय पर रावण, मेघनाथ, कुंभकरण के पुतले दहन किए जाते हैं। सबसे अनूठा 75 दिन तक मनाया जाने वाला बस्तर के दशहरे का रामायण से कोई संबंध नहीं है। अपितु बस्तर की आराध्या देवी माँ दन्तेश्वरी और देवी देवताओं की पूजा हैं।
मैसूर का दस दिवसीय दशहरा का मुख्य आर्कषण शाम 7 बजे से रात 10 बजे तक मैसूर पैलेस की रोशनी, सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम और विजयदशमी पर दशहरा जुलूस और प्रदर्शनी है।
आज हर रामकथा के मूल में भगवान बाल्मीकि की रामायण है।
पहले महाकाव्य ’रामायण’ के रचयिता महाकवि महर्षि वाल्मिकी जयंती अश्विन महीने की पूर्णिमा(28 अक्तूबर) शरद पूर्णिमा को मनाई जाती है। जगह जगह जुलूस और शोेभायात्रा निकाली जाती है। लोगों में बहुत उत्साह होता है।
कहीं कहीं अविवाहित लड़कियाँ सुबह नदी स्नान करने जाती हैं कहते हैं कि ऐसा करने से उन्हें अच्छा वर मिलता है। और अगले दिन से कार्तिक स्नान, तुलसी पूजन शुरु हो जाता है।
इन सभी उत्सवों में प्रकृति वनस्पति और नदियाँ(जल)है। यानि हमारी एक ही संस्कृति, हमें जोड़ती है।
नीलम भागी( लेखिका, जर्नलिस्ट, ब्लॉगर, ट्रेवलर)
प्रेरणा शोध संस्थान से प्रकाशित पत्रिका "प्रेरणा विचार" के अक्टूबर अंक में प्रकाशित हुआ है यह लेख