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Sunday, 14 November 2021

ब्रह्मसरोवर, सन्निहित तीर्थ, श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर कुरूक्षेत्र 56वीं विशाल वैष्णों देवी यात्रा 2021 भाग 31 Vaishno Devi pilgrimage 2021 Neelam Bhagi

नारद पुराण के अनुसार सन्निहित सरोवर का निर्माण ब्रह्मा जी ने किया था। ग्रहण के समय यहां स्नान करने से सौ अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है और मनोकामना पूरी होती है। यहां पर श्री ध्रुव नारायण के मंदिर के मध्य में भगवान चतुर्भुज नारायण एवं ध्रुव की सुन्दर प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर के आगे टीन का विस्तृत छाया गृह बना हुआ है। जिसमें तीर्थ पर स्नान करने वाले यात्री विश्राम करते हैं। कुछ ऐसा हुआ कि मैं यहां जितनी देर रही वहां कोई न कोई अपने प्रिय स्वर्गवासी का कोई संस्कार करवा रहे थे। जिसमें फोल्डिंग पलंग पर इंसान की जरूरत का सब सामान था। महापंडित के निर्देश में वह सिर मुंडाय पलंग की परिक्रमा कर रहा था। उसके हटते ही दूसरा ही कोई दूसरा ऐसे ही सामान लिए आ गया। पूर्व भाग में तीर्थ की तरफ हनुमान जी की विशाल प्रतिमा और सिंहवाहिनी अष्टभुजी दुर्गा देवी जी की संगमरमर की प्रतिमाएं स्थापित हैं। इस स्थान पर वामन द्वादशी को भारी मेला लगता है। सरोवर के आस पास बहुत ही तीर्थ हैं। मैं सड़क पार करती हूं।




श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर

यह मंदिर सन्निहित सरोवर के पश्चिम में है। इसमें भगवान लक्ष्मी नारायण की बहुत सुन्दर प्रतिमा है। कहते हैं कि बाबा शिवगिरि जी जो कि एक सिद्ध फकीर थे उन्होंने यह मंदिर बनवाया था। यहां यात्रियों के ठहरने और साधुओं के सदाव्रत का प्रबंध होता है।


ब्रह्मसरोवर 

मैं तो पहले यहां आई हुई थी इसलिए जैसे ही हमारा ऑटो ब्रह्मसरोवर के आगे से गुजरा मैंने उसेे रुकने को कहा। उसने जवाब दिया,’’यहां तो सुबह आपने स्नान किया होगा न।’’ सारी सवारियां कोरस में बोलीं,’’हां जी किया था तो अब क्या देखना चलो।’’वो चलने लगा तो मैं उतर गई। उसे 120 रु जो तय थे दिए। उसने मुझे 20रु वापिस किए। मैंने पूछा,’’ये किस लिए?’’उसने जवाब दिया,’’ये सारी सवारियां 100रु में बैठीं हैं आपसे ज्यादा क्यों लूं!! पास में ही सारस्वत धर्मशाला है।’’ और ये जा वो जा। सुबह हमारी बस के साथी सब ब्रह्मसरोवर में नहाने गए थे। मैं नहीं गई, मुझे घूमना जो था इसलिए मैं जरा भी समय नहीं गवा रही थी। सड़क से ब्रह्मसरोवर के प्रवेश द्वार तक बिल्कुल साफ रास्ता था और कहीं कहीं तो फर्श पर धान भी सूख रहा था। अब मैं अकेली ब्रह्मसरोवर के किनारे धूप में खड़ी थी।   

इस प्राचीन विशाल सरोवर का कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड ने अति आधुनिक ढंग से नवनिर्माण किया है। आकार में पहले से छोटा होने पर भी भारत के विशाल सरोवरों में इसकी गणना की जाती है। इस सरोवर की लम्बाई 3600फुट और चौड़ाई 1200 फुट है। इसमें 15 फुट पानी हमेशा रहता है। यात्रियों के विश्राम के लिए चारों ओर बरामदे बने हैं। पक्के घाट और यात्रियों की सुरक्षा के लिए रेलिंग हैं। महिलाओं के स्नान के लिए अलग घाट हैं। सरोवर के बीच में सर्वेश्वर महादेव का मंदिर है। यहां ऐसी व्यवस्था की गई है कि सूर्य ग्रहण के समय यहां देश विदेश से आए 5 लाख यात्री एक समय में स्नान कर सकें। इसमें जल भाखड़ा नहर से आता है। बाहर आकर मैं धर्मशाला की ओर चल दी। सुबह स्नान के समय भी सबने कहा कि ब्रह्मसरोवर वो रहा बिल्कुल पास ही है। अब ऑटोवाला भी कह कर गया कि धर्मशाला पास ही है। सड़क पर आकर कुछ कदम चलने पर दो आदमी आपस में बात कर रहे थे। मैं बात बात पर गूगल मैप देखने वाली इस यात्रा में कुछ याद ही नहीं था। उन दोनों से पूछ बैठी,’’सारस्वत धर्मशाला किधर है?इतना तो पता है कि वो ब्रह्मसरोवर के पास है।’’ दोनों सोचने लगे फिर बोले कि आप आगे आ गई हो पीछे कट से दाएं जाकर एक किमी पर है। अब मैं थोड़ी परेशान हो गई। इतने में एक आदमी आया बोला,’’वो जरा सा आगे जाओ बाजू में है। मैं अंदर से सुनकर बाहर आया अब यहां खड़ा हूं जाइए।’’ मैं चल पड़ी और उसकी आवाज़ सुनाई दी वह उन्हें समझा रहा था कि अंदाज से रास्ता मत बताया करो। मैं धर्मशाला में पहुंच गई थी। क्रमशः