मैं डी.टी.सी. की ए.सी.बस में चढ़ी। खाली सीट देख कर उस पर बैठने लगी तो क्या देखतीं हूं कि उस सीट की सवारी ने अधलेटी पोजीशन में अपनी मां की गोद में सिर रक्खा हुआ है और मां उसके सिर से जुएं बिन रही है। मैं ये देखने के लिए खड़ी हो गई कि वह जुएं निकाल कर फैंक तो नहीं रही। अगर फेंक रही होगी तो मुझ पर, उसे उपदेश देने का दोरा पड़ जायेगा क्यूंकि उसकी फैंकी जूं, दूसरी सवारी पर चढ़ेगी| न न न वो भली औरत जुएं दोनों अंगूठों के नाखूनों में दबा कर मारती जा रही थी। इसलिए सवारियों पर जुएं चढ़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता। पता नहीं क्यों? मुझे ये सीन बहुत अच्छा लगा। मैंने जुओं की शिकारी महिला को पट पट जुएं मारते देख कर कहा कि इसके बालों में जुएं कैसे पड़ी हैं? उसने मेरी तरफ देखे बिना जुएं चुगते हुए जवाब दिया,’’स्कूल से दीदी, मैं तो इसकी जुएं दो दिन में साफ कर दूं। घर पे येे निकलवाती न। बच्चों में खेलने भाग जाये। जब से लेडीज़ का टिकट फ्री हुआ है। इसकी छुट्टी के दिन इसे कहीं न कहीं ले जाउं औेर रास्ते में इसकी जूं बिनती रहूं। बस से ये कहां खेलने जायेंगी बताओ भला!! और टाइम भी पास हो जावे।’’
बस सर्विस अच्छी है। सीट आराम से मिल जाती है। इसलिए महिलाएं अब बस में स्वेटर बुनती, क्रोशिया बुनती और पढ़ती नज़र आती हैं।
बस में कोई महिलाओं के साथ छेड़छाड़ नहीं है क्योंकि बस में मार्शल है। वो बस भरी होने पर महिला को अपनी सीट भी दे देते हैं। सर्दी में मंगते मंगतियां ए.सी बस में चढ़ जाते हैं। मांगने का काम वे अपने इलाके में ही करते हैं। बस में उनके बच्चे खेल लेते हैं।
ए. सी. बस उनके लिए रजाई कंबल का काम करती है। कथड़ी वो लपेट कर सामान रखने की जगह पर रख कर बेफिक्र आराम से बैठे रहते हैं। उनकी कथड़ी तो कोई ले जायेगा ही नहीं।
कभी कभी चलती बस में वो एकदम चिल्लायेंगी,’’अरे रोको रोको।’’बस में तुरंत ब्रेक लगता है और सवारियों को झटका। चालक और कण्डक्टर एकदम पूछेंगे,’’क्या हुआ!! इतने में उल्टी हो जायेगी या उनका जी मचल रहा होगा। वो कहेंगे उतर के नीचे कर लो, बस गंदी मत करो तो उतरेंगीे नहीं। कहेंगी अब ठीक हो गया। मैंने कण्डक्टर से पूछा कि ये ऐसे ही करतीं हैं। उसने कहा कि ठंड के कारण साधारण बस में ये बैठती नहीें हैं। खुले में ये रहती हैं न| ए.सी. बस बंद होती है। इन्हें बचैनी होने लगती है। ये पलटी(vomating) कर देती हैं। धीरे धीरे इन्हें ए.सी बस की आदत हो जायेगी।