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Sunday, 1 March 2020

महिलायें कुछ भी बर्बाद नहीं करतीं , यात्रा में समय भी!! नीलम भागी Mahilai Kutch Bhi Barbad nahi Kertee Yatra Mein Samay Bhi Neelam Bhagi

मैं डी.टी.सी. की ए.सी.बस में चढ़ी। खाली सीट देख कर उस पर बैठने लगी तो क्या देखतीं हूं कि उस सीट की सवारी ने अधलेटी पोजीशन में अपनी मां की गोद में सिर रक्खा हुआ है और मां उसके सिर से जुएं बिन रही है। मैं ये देखने के लिए खड़ी हो गई कि वह जुएं निकाल कर फैंक तो नहीं रही। अगर फेंक रही होगी तो मुझ पर, उसे उपदेश देने का दोरा पड़ जायेगा क्यूंकि उसकी फैंकी जूं, दूसरी सवारी पर चढ़ेगी| न न न वो भली औरत जुएं दोनों अंगूठों के नाखूनों में दबा कर मारती जा रही थी। इसलिए सवारियों पर जुएं चढ़ने का सवाल ही नहीं पैदा होता। पता नहीं क्यों? मुझे ये सीन बहुत अच्छा लगा। मैंने जुओं की शिकारी महिला को पट पट जुएं मारते देख कर कहा कि इसके बालों में जुएं कैसे पड़ी हैं? उसने मेरी तरफ देखे बिना जुएं चुगते हुए जवाब दिया,’’स्कूल से दीदी, मैं तो इसकी जुएं दो दिन में साफ कर दूं। घर पे येे निकलवाती न। बच्चों में खेलने भाग जाये। जब से लेडीज़ का टिकट फ्री हुआ है। इसकी छुट्टी के दिन इसे कहीं न कहीं ले जाउं औेर रास्ते में इसकी जूं बिनती रहूं। बस से ये कहां खेलने जायेंगी बताओ भला!! और टाइम भी पास हो जावे।’’
 बस सर्विस अच्छी है। सीट आराम से मिल जाती है। इसलिए महिलाएं अब बस में स्वेटर बुनती, क्रोशिया बुनती और पढ़ती  नज़र आती हैं। 
बस में कोई महिलाओं के साथ छेड़छाड़ नहीं है क्योंकि बस में मार्शल है। वो बस भरी होने पर महिला को अपनी सीट भी दे देते हैं। सर्दी में मंगते मंगतियां ए.सी बस में चढ़ जाते हैं। मांगने का काम वे अपने इलाके में ही करते हैं। बस में उनके बच्चे खेल लेते हैं।
 ए. सी. बस उनके लिए रजाई कंबल का काम करती है। कथड़ी वो लपेट कर सामान रखने की जगह पर रख कर बेफिक्र आराम से बैठे रहते हैं। उनकी कथड़ी तो कोई ले जायेगा ही नहीं। 
कभी कभी चलती बस में वो एकदम चिल्लायेंगी,’’अरे रोको रोको।’’बस में तुरंत ब्रेक लगता है और सवारियों को झटका। चालक और कण्डक्टर एकदम पूछेंगे,’’क्या हुआ!! इतने में उल्टी हो जायेगी या उनका जी मचल रहा होगा। वो कहेंगे उतर के नीचे कर लो, बस गंदी मत करो तो उतरेंगीे नहीं। कहेंगी अब ठीक हो गया। मैंने कण्डक्टर से पूछा कि ये ऐसे ही करतीं हैं। उसने कहा कि ठंड के कारण साधारण बस में ये बैठती नहीें हैं। खुले में ये रहती हैं न| ए.सी. बस बंद होती है। इन्हें बचैनी होने लगती है। ये पलटी(vomating) कर देती हैं। धीरे धीरे इन्हें ए.सी बस की आदत हो जायेगी। 




Wednesday, 30 October 2019

फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन Fokatka Chandan Ghis Mere Nandan Neelam Bhagi नीलम भागी


फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन
नीलम भागी
आज डी. टी. सी की बस में टिकट लेने लगी तो कण्डक्टर ने गुलाबी टिकट दी। मैंने पूछा,’’कितने की?’’ उसने कहा कि आज से महिलायें मुफ्त यात्रा करेंगी। अब मैं सीट के लिए देखने लगी तो कोई सीट खाली नहीं थी। लगभग सभी सीटो पर महिलायें और छोटे बच्चे थे और कुछ महिलायें बच्चों के साथ खड़ीं भीं थी। मुझे महिलायें चहकती हुई नज़र आ रहीं थीं। लेकिन बच्चे फुदक रहे थे। बस के अंदर अजीब सा शोर था। जोर जोर से वे बतिया रहीं थीं। बीच बीच में शोर के कारण वे बच्चों को चीख कर कहतीं,’’नीचे मत उतर जाना, बस के अंदर ही रहना’’ फिर बातों में मशगूल हो जातीं। किसी स्टैण्ड पर एक दो पुरुष सवारी उतरती, साथ ही तीन चार महिलायें चढ़ जातीं। कुछ शैतान लड़के आपस में बोलते,’’स्टाफ बहुत बढ़ गया है।’’ मुझे याद आया कि जब कोई सवारी टिकट नहीं लेती तो कनडक्टर उसे टिकट लेने को कहता तो वो एक शब्द में जवाब देता ’स्टाफ’ फिर कण्डक्टर कुछ नहीं कहता। सवारियां समझ जातीं कि फ्री का सवार स्टाफ है। मैं बीच में खड़ी महिलाओं की बातों का आनन्द ले रही थी। अब उनकी सारी प्लानिंग इधर से उधर और उधर से इधर जाने के बारे में थी। अचानक एक अधेड़ महिला अपनी सखियों से बोली,’’अगर सरकार कुम्भ के मेले में रेल की टिकट हमारे लिए मुफ्त कर देती तो हम भी कुम्भ नहा आतीं।’’ अब सब ऐसे दुखी हो गईं जैसे उनसे कुछ छीन लिया गया हो। मैं भी सोचने लगी कि अगर सरकार कुम्भ के मेले में महिलाओं के लिए यात्रा मुफ्त कर देती तो देश की लगभग सारी महिलायें तीर्थयात्री हो जातीं। अचानक देखा, मेरा स्टॉपेज़ कब का पीछे छूट गया था!! कोई परवाह नहीं। कौन सा मेरी जेब से पैसा लगा है? अगले स्टॉप पर उतर कर दूसरी बस से वापिस आ जाउंगी। फोकट का चंदन घिस मेरे नंदन।