नीलम भागी
गऊ माताएँ और साँड पिता झुंड में खड़े थे। एक गाड़ी उनके करीब आकर रुकी। पति-पत्नी उतरे गाड़ी की डिक्की खोल कर ढेर खाना , जो पॉलिथिन में बँधा था। उनके सिंगो के डर से दूर रक्खा और श्रद्धा से झुण्ड की दिशा में हाथ जोड़ कर , वे गाड़ी में बैठ कर चल दिये और पशु खाने की ओर दौड़े। किसी भी शुभ दिन या गोपाष्टमी के पर्व पर, ऐसा सीन कहीं भी देखने को मिल जाता है ।
एक नज़ारा आमतौर पर दिखाई देता है। कूड़ेदान के पास गाड़ी रुकती है, शीशा नीचे कर, महिला जोर से पॉलिथिन की थैली फेंकती है। कई बार थैली फट जाती है , तो देखकर हैरानी होती है। उसमें बचे हुए खाने के साथ, कई बार टूटे काँच के टुकड़े, ब्लेड आदि होते हैं। पशु पॉलिथिन नहीं खोल सकता इसलिये खाने के साथ साथ, ये चीजे़ उनकी जान ले लेती हैं। और यह देख कर..........
मुझे कावेरी की मौत याद आ जाती है। कृष्णा चार महीने की थी। कावेरी ने चारा खाना बंद कर दिया। हम उसकी पसन्द का गुड़ सौंफ डाल कर दलिया रखते पर वह नहीं खाती। वह हर तरह के खाने को टुकुर-टुकुर देखती और आँखों से आँसू बहाती रहती। वह कितने कष्ट में थी! ये वो जानती थी, या उसे पालने, प्यार करने वाला हमारा परिवार। कावेरी की हालत देख कर हमने पशु चिकित्सक भइया को सूचित किया। सूचना मिलते ही भइया इज्ज़तनगर से आये। घर का डॉक्टर है, खूब कावेरी का दूध पिया है। अब हमें पूरी उम्मीद थी कि कावेरी भइया के इलाज से ठीक होकर चारा खायेगी, कृष्णा को चाट-चाट कर , पहले की तरह दूध पिलायेगी। लेकिन भइया ने जाँच करके ,बताया कि कावेरी नहीं बचेगी। सबके मुहँ से एक साथ निकला,"" आखिर क्यों?"
भइया बोले,’’ कावेरी पॉलिथिन खा गई है। पॉलिथिन इस तरह खाने की नली में अटक जाती है कि पशु जुगाली नहीं कर पाता। खाना बंद कर देता है। ’’ इसी घर में जन्मी कावेरी को हमने तिल तिल कर मरते हुए देखा था। हम तो उसके चारा पानी का खूब ख्याल रखते , पर वह जानलेवा पॉलिथिन कैसें खा गई!!
राजू ग्वाला सब घरों की गाय, सुबह 10 बजे से लेकर 3 बजे तक चरवाने लेकर जाता था। इस आउटिंग को सभी की गायें , बहुत एन्जॉय करतीं। घर से चारा खाकर जातीं , आते ही नाँद में चारा तैयार मिलता। बस घूमने के लिए 10 बजे से बाहर देखना शुरु कर देती। शायद वहीं रास्ते में खाने की पॉलिथिन में ब्लेड, काँच निगल गई। और धीरे धीरे कावेरी मर गई। हमने सबको पॉलिथिन का नुकसान बताया। बिन माँ की कृष्णा को खूब लाड प्यार से पाला। उसने गोमती( हमारे घर में बछिया का नाम नदियों पर रखते हैं) को जन्म दिया।
कृष्णा, गोमती और उसके बछड़ों के साथ हम मेरठ से नौएडा शिफ्ट हुए। किसी को शिकायत का मौका नहीं मिला। जर्सी और साहिवाल नस्ल की कृष्णा, गोमती दिन के उजाले में चोरी हो गई। इस चोरी के बाद से हमने गाय पालना बंद कर दिया।
पॉलिथिन में खाना ,दो दिन रखने से वैसे ही वह प्रदूषित हो जाता है। जिसे खाकर जानवर बीमार ही पड़ेगें। पॉलिथिन में बंधा खाना खाते देख ,जब मैं आवारा पशु के मुंह से पॉलिथिन खींच कर खाने से पालिथिन हटाती हूँ , तो मुझे लगता है कि एक कावेरी कष्टदायक मौत से बच गई।