उत्तकर्षिनी वशिष्ठ अंतरराष्ट्रीय लेखिका का लॉस एन्जिलस से फोन आया बोली,’’मां मुझे बर्लिन से ऑफिशियल लैटर आ गया है, गंगुबाई के प्रीमियर में जाने के लिए।’’ मैंने उसकी आगे नहीं सुनी और तुरंत बोलने लगी,’’जा बेटी, जरुर जा, तुझे जाना ही है।’’उसने फोन काट दिया। मुझे बुरा नहीं लगा क्योंकि वह अत्यंत व्यस्त लेखिका है। समय का फर्क होने के कारण मैं उसे कॉल नहीं करतीं, मैसेज़ करती हूं। वह मुझे उसकी सुविधा अनुसार कॉल करती है।
उसे गंगुबाई के प्रीमियर में जाने का कहने के बाद मुझे चिंता होने लगी कि उसकी छोटी बेटी दित्या कुल छ महिने की है और गीता भी 6 साल की है। बेटियों की परवरिश में कोई कमी न रहे इसलिए लेखन घर में रह कर करती है। जनवरी में मुम्बई में प्रीमियर था। वह राजीव और दोनों बेटियो के साथ भारत आ रही थी और मैं नौएडा से मुम्बई जा रही थी। कोरोना के कारण फिर परिवर्तन हुआ।
2011में संजय लीला भंसाली ने उसे भंसाली प्रोडक्शन में नियुक्त किया और उसे समझाया कि तुम अपने विचारों और शब्दों को लेखन में उतारो। लिखते समय ये मत सोचो कि तुम्हारा लेखन कैसा बिजनैस करता है और वह गंगुबाई की कहानी में खो गई। उन दिनों मैं मुम्बई में थी। वह लैपटॉप पर लिखती, अचानक उठ कर वॉशरुम जाती और मुंह धोकर आती। मैं उसका चेहरा देख कर समझ जाती कि ये रोकर आ रही है। कभी उसकी सहेलियां वीकएंड पर घूमने या पिक्चर का प्रोग्राम बनातीं। वह बीच में हमें छोड़ कर आ जाती थी। हम आकर दूसरी चाबी से दरवाजा खोलते, देखते वह लैपटॉप पर लिख रही होती थी। मैंने एक दिन पूछा,’’बेटी तूं दीन दुनिया से बेख़बर ऐसा क्या लिख रही है!!’’उसने जवाब दिया,’’ मां जब फिल्म बनेगी तब देखकर आप ही इसका जवाब देना।’’
अगली बार मैं मुम्बई गई तो उत्कर्षिनी एयरपोर्ट के बाहर खडी थी। चेहरे पर वही भाव जो उसका पहली बार र्बोड का रिजल्ट आने से पहले था। मैंने कारण पूछा तो उसने बताया,’’मां पता नहीं पहले गंगुबाई बनेगी या रामलीला।’’मैंने जवाब दिया,’’ बेटी मैं जब टी.वी. पर कोई प्रोग्राम देखतीं हूं तो ब्रेक में चैनल बदलती हूं। अगर किसी चेनल पर संजय लीला भंसाली की देवदास आ रही होती है फिर तो देवदास ही देखती हूं। जो प्रोग्राम देख रही थी, उसे भी पूरा नहीं देखती हूं जबकि जितनी देवदास अब तक बनीं हैं सब देख चुकी हूं। शरद चंद्र का नॉवल भी पढ़ चुकी हूं पर फिर भी देखती हूं! हमारे खानदान में दूर दूर तक कोई फिल्म इंडस्ट्री में नहीं है न! वे बहुत अनुभवी हैं और जब वे गंगुबाई बनायेंगे तब हम बहुत खुश होंगे। ये सोचना उनका काम है। अब उसका चेहरा नार्मल हो गया।
’गोलियों की रासलीला रामलीला’ में उत्तकर्षिणी इस फिल्म की एसोसियेट डायरेक्टर थी। संजय लीला भंसाली के लिए उनका कहना है कि वे फिल्म निर्माण के विश्वविद्यालय हैं। उनके साथ काम करने का मतलब है सीखना। भंसाली जी का और उत्कर्षिनी का फोन पर भी और मिलने पर भी गंगूबाई पर काम लगातार चलता रहता था।
अचानक दो चार दिन बाद बेटी का फोन,’’मां, मैं बर्लिन पहुंच गई।’’मैंने पूछा,’’दित्या!!’’ उसने फोटो के साथ मैसेज़ किया, अपने पापा के साथ पार्टी कर रही है। पड़ोसी दूसरे देशों के मित्र परिवार अमेरिका में राजीव जी का सहयोग कर रहे थे। उत्कर्षिनी के पास गीता दित्या की जो फोटो जाती, वह मुझे फॉरवर्ड करती थी। जैसे उत्कर्षिनी गंगुबाई के लेखन के समय उसमें खो गई थी। वैसे ही मैं सोशल मीडिया पर गंगूबाई फिल्म पर जो भी आ रहा है। उसे देखने, पढ़ने में खो जाती हूं। गंगूबाई के निर्माण में भी बहुत बाधाएं आई। तीन बार तो कोविड के कारण निर्माण रोकना पड़ा। दो साल में सब कठिनाइयों पर विजय पाकर यह लाजवाब गंगूबाई फिल्म बनी। उत्कर्षिनी ने घर लौटते ही गीता और दित्या का लाइव विडियों दिखाया। मैंने भगवान और Utkarshini Vashishtha के मित्र परिवारों का धन्यवाद किया। अब फिल्म देखने जा रही हूं।