अगले दिन कात्या
मुले ने मुझसे पूछा कि मेरे परिवार में कितने लोग रहते है? मैंने बताया कि मेरी माँ, दो भाई उनकी पत्नियाँ, बच्चे, मैं मेरी बेटी।
बेटी तो अब बाहर आ गई है। इसकी शादी होगी। इतने लोग रहते हैं और खाना एक जगह बनता है।
मेरी बहनें भी पैदल दूरी पर ही रहती हैं| कोई भी किसी के
घर कभी भी आ जा सकता है| ये सुनकर वो बोली,” मैं तो बूढ़ी होने पर जर्मनी जाकर ओल्डेज होम
चली जाउंगी।“ फिर उसने मुझसे पूछा कि
अगर वह बूढ़ी होने पर हमारे घर में रहना चाहेगी तो मैं उसे रख लूंगी। मैंने कहाकि
तुम अभी चलो रहने, हमारे घर में सब
तुम्हें देख कर बहुत खुश होंगे। पर तुम हमारे घर में रह नहीं पाओगी। उसने पूछा,’’क्यों?’’ मैंने कहाकि मेरे घर में सब कुछ सब की सुविधा के अनुसार
चलता है| मेरी भाभियां अघ्यापिकाएं हैं और भाई व्यापार
करते हैं। भाभियां सुबह पढ़ाने जाती है, दोपहर में आती
हैं। दुकान भी पैदल की दूरी पर है| भाई सुबह ग्यारह बजे जाते हैं, रात को देर से आते हैं। दोनों बारी बारी
से घर पर आराम भी कर जाते हैं| सब की सुविधा के
अनुसार परिवार चलता है। कोई ब्रेकफास्ट, लंच डिनर टाइम फिक्स नहीं है। जिन दिनों ज्यादा काम होता है तो मैं भी मदद के
लिए दुकान चली जाती हूँ| खाना हम खुद
बनाते हैं| बाकि कामो के लिए दो बाईं आती हैं| वो बड़ी हैरान
होकर सब सुनती रही| काफी देर चुप रह कर
विचारने के बाद प्रश्न पूछने के अंदाज में एक शब्द बोली,”स्पेस |” मैंने भी पूछा,”तुम्हारे कहने का मतलब, स्पेस यानि मनमर्जी से है|” जवाब में बोली,”हाँ हाँ|” मैंने कहा कि कोई रोकटोक नहीं, पूरी मनमर्जी| अम्मा से सब
बतियाते हैं| जब तक घर में सब आ नहीं
जाते, अम्मा सोती नहीं हैं| अभी मेरे लौटने
में एक महीना था। उसे मेरा इण्डिया जाये, बिना वीजा बढ़वाने की चिंता सताने लगी और उस कोशिश में वो लग गई। अचानक मेरी
छोटी बहन को ऑपरेशन की डेट मिल गई । उसके तीन साल के बेटे ने जिद पकड़ ली, नीनो मासी के साथ रहेगा यानि मेरे साथ। मुझे
तुरंत लौटना था। कल की फ्लाइट थी। रात वो मुझे बाहर डिनर के लिए ले कर गई| मैं हरी साड़ी, जिसका काला बारीक
बॉर्डर था काले ब्लाउज के साथ मैं पहने
थी। उसने मेरी तस्वीर ली। जिसे मैं हमेशा अपनी प्रोफाइल में लगाती हूं। वो बहुत
उदास थी| मैंने उसे अपनी सबसे पसंद की साड़ी दी और जल्दी
लौटने का वादा किया। बेटी को मुझे अकेले भेजने की चिंता सता रही थी पर मेरे तो ज़हन
में भी नहीं था कि मुझे क्या तकलीफ थी? जब मैं यहां आ
रही थी उस समय मेरी हालत देख, बेटी इण्डिया से
लेने मुझे वो खुद आई थी। अब मैं ठीक महसूस कर रही थी। मैं कात्या मुले से जल्दी
लौटने का वादा करके दुबई एयरपोर्ट गई। दस बजे की फ्लाइट, दो बजे चली । न जाने कितने गेट नम्बर बदले| जिसके कारण मैंने पूरा दुबई एअरर्पोट नाप लिया।
बेटी को मैं फोन पर बताती जा रही थी। मेरे अच्छे स्वास्थ्य में कात्या मुले का
सहयोग, भगवान के बराबर था। उड़ान से पहले मैंने उसे फोन
किया| उसने जवाब में यही कहा कि जल्दी लौटना। मैंने उससे
लौटने का वादा किया। उसकी याद और अच्छा स्वास्थ्य लेकर मैं लौटी। समाप्त