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Friday 27 May 2016

अनोखा मध्य प्रदेश देनवा दर्शन और अनहोनी में गर्म पानी का कुण्ड Madhya Pradesh Part भाग 6


अनोखा मध्य प्रदेश  देनवा दर्शन और अनहोनी में गर्म पानी का कुण्ड                                भाग  6
                                                                          नीलम भागी
हमारा लौटना था और राजा को अगले चार दिन के लिये टूरिश्ट मिल गये। उसने हमें आगे जिप्सी  मालिक दिलीपशुक्ला को हैण्डओवर कर दिया। दरशनीय पचमढ़ी में पाँच दिन बिता कर आज सुबह ही हमें जिप्सी से पिपरिया के लिये निकलना था। वहाँ से शाम को हमारा ट्रेन से अमरकंटक के लिये रिजर्वेशन था। हमने शुक्ला जी से कहा कि पिपरिया के रास्ते के आसपास पड़ने वाले, सभी दर्शनीय स्थल हम देखेंगे।’’ उन्होने कहा,’’ सुबह सात बजे मैं होटल से आपको ले लूंगा। तभी आप सब कुछ देख पायेंगे और ट्रेन भी पकड़ पायेंगे।’’नाशत सब जगह आठ बजे के बाद ही मिलना शुरू होता था। हम सुबह छः बजे तैयार होकर नाष्ते की खोज में चल पड़े, ये सोचकर कि जिन लोगो ने घर में रैस्टोरैंट खोल रक्खे हैं, वहाँ जरूर ब्रेकफास्ट मिल जायेगा। सुबह की ताज़गी का आनन्द लेते हुए, हम टहल भी रहे थे और बोर्ड भी पढ़ रहे थे। एक परिवार अपने रेस्टोरेन्ट में नाष्ते की तैयारी कर रहा था। हमने उनसे नाष्ते के लिये कहा। जवाब में उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी तो चाय और पोहा बन सकता है। हमने कहा,’’चलेगा।’’ उन्होनें झटपट बनाना षुरू किया। जितनी देर में हमने पोहा खाया और चाय पी उस घर की महिलाओं ने बटाटा और कांधा की भजिया तल दी। हम भजिया का स्वाद ले ही रहे थे कि साथ ही एक साँड का हृदय विदारक विलाप शुरू हो गया। मैं बोली,’’ लगता है साँड आपस में लड़ रहे हैं। कोई इन पर पानी डाल दे तो ये भाग जायेंगे।’’मेरी सलाह सुनते ही, रैस्टोरैंट मालिक बोला,’’ये न गाड़ी के जाते ही यह चुप हो जायेगा।’’मैंने पूछा,’’गाड़ी से इसके रोने का क्या संबंध है?’’उसने बताया कि इसकी माँ यहीं बिजली के खंभे से सींग खुजला रही थी। करंट लगा और वह मर गई। रात भर यह उसकी डैड बॉडी के पास बैठा रहा। सुबह यह कूड़ा उठाने वाली गाड़ी आई और इसकी माँ को ले गई। तब से रोज जब यह गाड़ी यहाँ डस्टबिन से कूड़ा लेने आती है। ये कहीं भी हो गाड़ी के पास आकर ऐसे ही रोता है। जैसे दूध पीता बछड़ा हो। हम नाष्ता कर चुके थे। पेमैंट करके बाहर आये। थोड़ी दूरी पर देखा सफाई  कर्मचारी कूड़ा भर रहे थे। साँड की आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे और वह गले से विलाप कर रहा था। बार बार गाड़ी से मुँह लगा रहा था, मानों पूछा रहा हो," मेरी माँ को कहाँ छोड़ आये?" माँ तो माँ ही होती है। बछड़े से साँड होने पर भी जिसे वह भूला नहीं पाया था। होटल पहुँचे शुक्ला जी हमारा सामान लगा चुके थे।
    हम गाड़ी में बैठे और गाड़ी चल पड़ी। एक गली के आगे शुक्ला जी ने रूक कर मोबाइल में रिंग दी और साथ ही बोले,’’ बस दो मिनट।’’ इतने में एक बच्ची हाथ में लंच बॉक्स पकड़े दौड़ती हुई आई। शुक्ला जी ने उससे लंच बॉक्स लेते हुए कहा,’’घबराना नहीं, मैं शाम को आऊँगा।’’और  बेटी को बाय करके चल दिये। एक जगह मटकुली आई। मैं बोली,’’मटकुली शब्द कितना अच्छा सा लग रहा है, सुनने में। जिसने भी रक्खा, बड़ा प्यारा सा है।’’ शुक्ला जी बोले, ’’रखना किसने है! वो तो पड़ गया। हुआ यूं कि पचमढ़ी में अंग्रेज रहते थे। उन्हें मेड और कुली की जरूरत पड़ती थी। यह गाँव पास पड़ता था। वे यहाँ से मेड कुली मंगाते थे। मेड कुली का विगड़ा रूप मटकुली हो गया, जो आपको सुनने में अच्छा लग रहा है। अच्छा लगा देखकर कि अब वहाँ विकास कार्य चल रहें हैं। अब गाइड का काम शुक्ला जी कर रहे थे।
विस्मय विमुग्ध करने वाली जगह पर गाड़ी रूकी, हम उतरना भूल कर एक टक बाहर देखे जा रहे थे। शुक्ला जी बोले,’’देनवा दर्शन कर लो।’’हम उतर कर ग्रिल तक आये। हरी भरी घाटी में नीचे देनवा बह रही थी। पता नहीं कितनी देर हम दर्शन करते रहे। शुक्ला जी की आवाज ’’चलिए’’ कानों में पड़ते ही हम गाड़ी में बैठ गये। अब हम अनहोनी की ओर चल पड़े। रास्ते में वे बताते जा रहे थे, ये आदिवासी इलाका हैं। ये महिलायें बहुत मेहनती, मजबूत कदकाठी की होती हैं। खेत में काम करते ही अगर इनकी डिलीवरी हो जाती है, तो वहीं नाड़ काट कर, बच्चा कपड़े में लपेट कर घर आ जाती हैं। आकर गिलास भर कर महुए का शर्बत पीती रहती हैं। अगले दिन से फिर घर गृहस्थी के कामों में लग जाती हैं। बतियाते हुए हम अनहोनी पहुँच गये। वहाँ पानी के कुंड में पैर डाला और चीख मार कर निकाला।