अमरकंटक एक्सप्रेस गाड़ी में चढ़े। यहाँ भी मेरी साइड लोअर सीट थी। इतने में सऱ आकर बोले,’’नीलम तुम मेरी सीट पर चली जाओ। मेरे बराबर की सीट पर महिला है। उसे असुविधा होगी। मैं तुम्हारी सीट ले लेता हूँ।’’मैं चली गई। सीट पर बैठी ही थी कि टी.टी. आकर
पूछताछ करने लगा। मैंने बताया कि ये सीट सऱ की है। साथ की महिला की ओर इशारा करके कहा कि इन्हें असुविधा न हो इसलिये उन्होंने हम दो महिलाओं को इक्ट्ठा कर दिया और वो मेरी सीट पर चले गये हैं। वह और उसके पति हंसने लग गये। मैं बिस्तर लगाने लगी। महिला ने परदा लगा कर बताया कि सामने की साइड सीट पर बैठी महिला का बच्चा मैंटली रिटार्डिड है। सुन कर बड़ा दुख लगा। उसने पूछा,’’आप कहाँ जा रहीं हैं? मैंने कहा कि हम लोग अमरकंटक जा रहें हैं। हमें पता नहीं था, हमने टिकट शहडोल तक की ली है। उतरना पैण्ड्रा रोड है।’’ उसके पति ने कहा कि टी.टी से बात कर लो। शहडोल से पाण्ड्रा रोड एक घण्टे का सफर है। मैं तुरंत आकर ये बातचीत़, सर को बता गई और निशि्ंचत हो गई कि सर तो टी.टी. से बात कर ही लेंगे। सुबह से पचमढ़ी और पिपरिया के बीच जितने भी दर्शनीय स्थल थे वहाँ गये थे इसलिये थकान थी। मैं लेट गई। वे पति पत्नी बैठ गये। पति श्रोता थे। पत्नी ने मुझसे मेरी जाति, धर्म ,परिवार मेरे बच्चे क्या करते हैं और मैं क्या करती हूँ आदि सबके बारे में पूछा। मैंने उसके सभी प्रश्नों का जवाब दिया। वह ऐसे बैठ गई बतियाने, जैसे उसे रात को सोना ही नहीं था। फिर वह अपने बारे में बताने लगी कि वह ईसाई है। उसके दो बच्चे हैं, बेटा मुंबई में इंजीनियर है। बेटी बैंगलोर में लेक्चरर है। महिला की फिटनैस देख कर मेरे मुहं से निकला,’’ आप इतने बड़े बच्चों की माँ नहीं लगती।’’जिसके जवाब में उसने पति की ओर मुस्कुराकर देखा और मुझे धन्यवाद दिया। पति रेलवे में हैं इस समय शहडोल में हैं। वे अकेली बिलासपुर में रहती हैं। वीकएंड पर पति आ जाते हैं। अब वह बच्चों से मिल कर आ रही थी। मैं समझ गई कि बच्चे जॉब में व्यस्त होंगे। क्रेडिट कार्ड दे दिया होगा कि जो मर्जी शापिंग करें। पर बच्चों को उनसे बात करने की फुरसत नहीं हुई होगी। वे महानगर कल्चर में बात करने को तरसती रह गयीं होंगी, अब बातों का कोटा मुझसे पूरा कर रहीं थीं। अपने शहर की सब्ज़ियों के स्वाद की बातें कर रहीं थी। सबसे ज्यादा अपने पड़ोसियों को याद कर रहीं थी। वे बोली,’’ जब मैं जाऊँगी। सभी मिलने आयेंगीं।’’ दो दिन भी दिखाई न दूँ, तो देखते ही पूछेंगी,’’भाभी कहीं बाहर गई थीं? मैं तो अपना बिलासपुर छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगी।’’ मुझे नींद भी आ रही थी। पर जबलपुर में दो वेशभूषा से अत्याधुनिक महिलाएँ चढ़ी और साथ में उनकी माँ। चढ़ते ही उन्होने लाइट जलाई और नींद में बेसुध अंजना की चादर खींच कर बोली,’’अरी दूसरे की सीट पर सोते, तुझे शरम नहीं आती, उठ।’’ अंजना ने अपनी टिकट से सीट नम्बर ध्यान से देखा और उन्हें कहा वे भी ध्यान से देखें, उन्होने गलत पढ़ा था। अब सॉरी बोलकर एक ही सीट पर तीनों ने बैठ कर, उन्होंनें ठहाके लगाते हुए खाना खाया और उसी पर तीनो सो गई! हमारी बातें फिर शुरु, उसने बताया ये तो शहडोल उतर जायेंगे, मैं विलासपुर तक जाऊँगी। पति तो अपर सीट पर जाकर सो गये। मैं भी लेटी हुई थी। मैं बोली,’’आपके दोनो बच्चे, अच्छे से सैटल हो गये, आपको कितनी खुशी मिलती होगी! उन्होंने जवाब दिया,’’हमें मकान बड़ा नहीं बनाना चाहिये था। बच्चे तो इसमें बसने आयेंगे नहीं। पहले उसे बनाने में और बच्चे पढ़ाने में लगे रहे। अब इतने बड़े घर की मेंटेनैंस में लगी रहती हूँ। मैंने मन में सोचा अब तो सो लूँ। फिर तो अमरकंटक तक सोने को नहीं मिलेगा। मैं सो गई। सवा बजे कार्तिक जगाने आया कि शहडोल आने वाला है। सामान ले हम गाड़ी रुकने का इंतजार करने लगे। मैं एकदम तेजी से लौटी और अपनी सहयात्रिणी को जगाया कि शहडोल आने वाला है। वे बोली,’’ उन्होंने इरादा बदल दिया है। अब वे बिलासपुर जा रहें हैं।’’ स्टेशन आ गया और मैं सबसे आखिर में उतरी।
सर ने बताया कि टी.टी. ने कहा कि यहाँ से टू. ए. सी. में सीट रिर्जव नहीं हो सकती एक घण्टे का तो रास्ता है। चार बजे पैसेंजर गाड़ी आयेगी उसमे बैठ जाना। पैसेंजर का टिकट खरीद कर हम वेटिंग रूम में गये।क्रमशः