बुलबुल जब मुझसे
काम माँगने आई
थी तो, मैं
उसकी फिटनैस देख
कर खुश हो
गई थी। इस
खुशी के भी
कई कारण थे।
मसलन सेहतमंद होने
कारण वह बार
बार बीमारी का
बहाना नहीं बना
सकती थी। लम्बा
कद होने से
जाले पंखो की
सफाई आराम से
करेगी। उसकी लम्बी
बाँहों का ये
फायदा कि पोचा
लगाते समय उसका
हाथ दूर तक
जायेगा यानि मेरे
घर के कोने
कोने का कूड़ा
निकलेगा। हफ्ते में एक
दिन उससे छत
साफ करवाना तय
था। जब पहली
बार छत साफ
करने गई, तो अब
वह आते ही
सबसे पहले छत
पर जाने लगी।
उसके आने से
पहले मैं रोज
कबूतरों को दाना
पानी डालने छत
पर जाती थी,
उसने मुझे इस
काम से भी
मुक्ति दे दी।
वह जाते समय
दाना पानी और
एक पाॅलिथिन लेकर
ऊपर जाती लेकिन
झाड़ू सिर्फ हफ्ते
में एक दिन
ही वह लेकर
जाती थी। मैं
उससे बहुत खुश थी। एक दिन
मैं वैसे ही
ऊपर छत पर
गई देखती क्या
हूँ? उसने दोनों
हाथों के बीच
में एक कबूतर
पकड़ कर अपने
पेट से चिपका
रक्खा था। मैं
देखते ही चिल्लाइ,’’छोड़ बुुलबुल,
छोड़ बिचारे को।’’
उसने तुरंत उसे
छोड़ दिया। मैंने
उसे पक्षी प्रेम
पर एक लैक्चर
पिला दिया। उसने
भी चुपचाप पी
लिया और मैं
भी इस बात
को भूल गई। एक दिन मैं
डस्टबिन में कुछ
फैंकने गई। उसके
पास एक बँधी
काले रंग
की पाॅलिथिन पड़ी
थी। जबकि डस्टबिन
आधा खाली था।
मैं थैली को
कूड़ेदान में डालने
ही वाली थी
कि इतने में
वह हिल पड़ी।
मैंने खोल कर
देखा उसमें कबूतर
था। मैंने उसे
उड़ा दिया। समझदार
को इशारा काफी
इसलिये मैंने उसे कुछ
नहीं कहा। और
न कहने का
भी एक कारण
था .कहीं नाराज़ होकर
ये मेरा काम न
छोड़ दे फिर
नई ढूँढने का
चक्कर। इसलिए मैं चुप
लगा गई। लगातार
चार दिन तक
वह जिंदा कबूतर
की थैली जगह
बदल बदल कर
रखती रही और
मैं उसे उड़ाती रही चौथे दिन शाम को वह
छः अपने जैसी
बाइयाँ लेकर आई।
मैंने हँसते हुए
उसकी साथिनों की
ओर इशारा करके
पूछा,’’बुलबुल ये सब
कौन हैं?’’ वह
गुस्से से बोली,’’मेरे देश की हैं?’’ मैंने
हँसते हुए जवाब
दिया?’’मैं भी
तो तेरे देश की हूँ?’’ जवाब
में वे सीधे
मुद्दे पर आईं।
चपटी शक्ल की
उनकी नेतानी ने
मुझसे पूछा,’’आपने
बुलबुल के पाँच
कबूतर क्यों उड़ाये।’’मुझे कोई
जवाब नहीं सूझा
पर मैं बोली,’’मेरे घर
से पकड़े थे
इसलिए।’’ यह सुनते
ही नेतानी फैसला
सुनाते हुए बोली,’’इसने कबूतर
का शोरबा पीने
के लिए, उन्हें
बड़ी मेहनत से
पकड़ा था। अब
आप इसे पाँच
कबूतर के पैसे
दो, तब यह
आपके घर काम
करेगी।’’मैंने जवाब दिया, सोच कर बताऊँगी। शाकाहारी ब्राह्मणी हूँ। मैं
ऐसी क्यों हूँ?
पाठक ही बतायें,
अब मुझे क्या
करना चाहिये।