खान पान और रहन सहन, हांग कांग की यात्रा पर भाग 8
नीलम भागी
अनजाने में मैं पोर्क खा गई, अब जान गई हूँ, तो उसे दुबारा नहीं खा सकती। अब मैं अपने लिये खाना खुद ही आॅडर करने लगी। होटल में सामान रख कर, मैं थोड़ा लेट गई। उत्तकर्षिनी ने इतनी देर में बाहर जाने की तैयारी कर ली। हम तेज तेज हारबर की ओर लाइट एंड साउण्ड प्रोग्राम देखने चल दिये। वहाँ बहुत अनुशासित भीड़ थी। सभी फोटोग्राफी और विडियो बनाने में मशगूल थे। जगह जगह ओपन थियेटर थे। जहाँ शो चल रहे थे। आकाश को छूती इमारतें और हरियाली, शांत वातावरण, अच्छा ट्रांसर्पोट नेटवर्क, शानदार पार्क जहाँ भी देखो, महिला पुरूष स्मार्ट कपड़ों, क्लास्कि हैण्डबैग और आर्कषक फुटवियर में फुर्ती से चलते नज़र आ रहे थे, जो मेरी आँखों में बस गये थे। वहाँ नब्बे प्रतिशत लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते थे। सीनियर सीटीजन वयोवृद्ध भी हाथ में खूबसूरत स्टिक के सहारे चल रहे थे। जो बुजुर्ग चलने में असमर्थ थे, उसे भी परिवार के किसी सदस्य ने व्हील चेयर पर बिठा रखा था और साथ लिये घूम रहे थे। सड़कों पर डबलडैकर बसें, मैट्रो ट्रेन का जाल, मैट्रो स्टेशन किसी माॅल से कम नहीं थे। हांग कांग दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले देशों में शुमार है। ट्रैफिक के नियमों का पालन करने में अभ्यस्थ लोग, क्राॅसिंग पर ही आप भीड़ देखेंगे। सड़क पर ट्रैफिक चलता है, फुटपाथ पर लोग चलते हैं। बस स्टैण्ड पर लोग आते जाते हैं और फुटपाथ की किनारी पर लाइन लगाते जाते हैं, ताकि उनकी लाइन पैदल चलने वालों के लिये परेशानी न पैदा करे। बस आते ही सब क्रम से चढ़ जाते हैं। अधिकतर बसे डबलडैकर हैं। टैक्सी के लिये भी हमें टैक्सी स्टैण्ड पर जा कर लाइन में लगना पड़ा था। लोग चलते ही जा रहे होते हैं, शायद इसलिये इतने स्मार्ट हैं। शो से हम पैदल लौट रहे थे। जो सोने की दुकाने थी, सोने से लदी पड़ी थी पर कोई भी गार्ड नहीं था। राह चलते कोई भी सिग्रेट नहीें पीता दिखा। डस्टबिन के पास खड़े ही पीते दिखे। न ही कूड़ेदान लबालब कूड़े से भरे थे और न उनके बाहर फैला कूड़ा दिखा। जहाँ से हम गुजर रहे थे, वहाँ बहुत चौड़ा फुटपाथ था। सिंगल स्टोरी दुकानो के बीच चौड़ी सीढि़याँ और सीढि़यों के दोनो ओर बड़े बड़े खिलौने रखे थे। हम गीता को लेकर ऊपर गये, वहाँ प्लेग्राउण्ड और उसके ऊपर पार्क था, गीता वहाँ बच्चों के साथ मस्त हो गई। उत्तकर्षिनी और गीता वहीं रह गई और मैं नीचे आकर सड़क किनारे की बैंच पर बैठ गई, रात का समय था और पास ही बस स्टैण्ड था। मैं दो घण्टे वहाँ गीता के लौटने के इंतजार में बैठी रही। कोई बोरियत नहीं, लोगों को देखना अच्छा लग रहा था। इतनी चलती सड़क उस पर से प्राइवेट गाडि़याँ नाम मात्र, कानफोड़ू हाॅर्न की आवाज कहीं नहीं। काम से लौटने का समय था। बड़े तेज कदमों से लोग बस स्टैण्ड तक जाते, लाइन में लगते ही मोबाइल में लग जाते। बुजुर्ग भी व्हीलचेयर पर मोबाइल पर झुके होते। उत्तकर्षिनी, रोती हुई गीता को लेकर आई, कारण गीता भाषा न जानते हुए भी, वहाँ के बच्चों में घुल मिल गई। किसी तरह आने को तैयार नहीं ,जब जबरदस्ती करो, तो जमीन पर लोट लोट कर रोने लगती। उत्तकर्षिनी की परेशानी देखकर एक आदमी ने गीता को चाइनीज में न जाने क्या बोल बोल कर डराया। गीता उत्तकर्षिनी का हाथ पकड़ कर दौड़ आई और गीता चुपचाप अपनी प्रैम पर बैठ गई। हम फिर अपनी पदयात्रा पर चल पड़े। बहुमंजली इमारतों के बीच, फल सब्जि़यों, मांस यानि रोज़मर्रा की जरूरत के सामान के स्टाॅल हैं। डिनर करके हम होटल पहुँचे, गीता के मुँह में बोतल लगाई और तीनों सो गये। सुबह हम एक साथ नाश्ता करने गये। एक डिश हमारे देश जैसी थी। नाम और शेप अलग, ये थी, सिर्फ नमक डाल कर तली हुई आलू की टिक्की, जिसके साथ खाने को बहुत कुछ था पर मैंने टिक्की ही खाई और और स्टीमड वैजीटेब्लस। आते ही हमने पैकिंग शुरू कर दी। राजीव मकाऊ में रेनबो एशिया टी.वी. अवार्ड फंगशन के सम्मानित जज आमन्त्रित थे। वे मकाऊ पहुँच चुके थे। गीता ने तो पापा पापा का जाप शुरू कर दिया। होटल वालों ने टैक्सी मंगा दी। दो बेटियाँ, दो माँ मकाओ के लिये चल दीं। 15 मिनट में टैक्सी ने हमें फैरी टर्मिनल पहुँचा दिया। सामान लेकर हम तीनों लिफ्ट से फेरी की टिकट के लिये टिकटघर की ओर चल दिये। क्रमशः मकाउ यात्रा
नीलम भागी
अनजाने में मैं पोर्क खा गई, अब जान गई हूँ, तो उसे दुबारा नहीं खा सकती। अब मैं अपने लिये खाना खुद ही आॅडर करने लगी। होटल में सामान रख कर, मैं थोड़ा लेट गई। उत्तकर्षिनी ने इतनी देर में बाहर जाने की तैयारी कर ली। हम तेज तेज हारबर की ओर लाइट एंड साउण्ड प्रोग्राम देखने चल दिये। वहाँ बहुत अनुशासित भीड़ थी। सभी फोटोग्राफी और विडियो बनाने में मशगूल थे। जगह जगह ओपन थियेटर थे। जहाँ शो चल रहे थे। आकाश को छूती इमारतें और हरियाली, शांत वातावरण, अच्छा ट्रांसर्पोट नेटवर्क, शानदार पार्क जहाँ भी देखो, महिला पुरूष स्मार्ट कपड़ों, क्लास्कि हैण्डबैग और आर्कषक फुटवियर में फुर्ती से चलते नज़र आ रहे थे, जो मेरी आँखों में बस गये थे। वहाँ नब्बे प्रतिशत लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते थे। सीनियर सीटीजन वयोवृद्ध भी हाथ में खूबसूरत स्टिक के सहारे चल रहे थे। जो बुजुर्ग चलने में असमर्थ थे, उसे भी परिवार के किसी सदस्य ने व्हील चेयर पर बिठा रखा था और साथ लिये घूम रहे थे। सड़कों पर डबलडैकर बसें, मैट्रो ट्रेन का जाल, मैट्रो स्टेशन किसी माॅल से कम नहीं थे। हांग कांग दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले देशों में शुमार है। ट्रैफिक के नियमों का पालन करने में अभ्यस्थ लोग, क्राॅसिंग पर ही आप भीड़ देखेंगे। सड़क पर ट्रैफिक चलता है, फुटपाथ पर लोग चलते हैं। बस स्टैण्ड पर लोग आते जाते हैं और फुटपाथ की किनारी पर लाइन लगाते जाते हैं, ताकि उनकी लाइन पैदल चलने वालों के लिये परेशानी न पैदा करे। बस आते ही सब क्रम से चढ़ जाते हैं। अधिकतर बसे डबलडैकर हैं। टैक्सी के लिये भी हमें टैक्सी स्टैण्ड पर जा कर लाइन में लगना पड़ा था। लोग चलते ही जा रहे होते हैं, शायद इसलिये इतने स्मार्ट हैं। शो से हम पैदल लौट रहे थे। जो सोने की दुकाने थी, सोने से लदी पड़ी थी पर कोई भी गार्ड नहीं था। राह चलते कोई भी सिग्रेट नहीें पीता दिखा। डस्टबिन के पास खड़े ही पीते दिखे। न ही कूड़ेदान लबालब कूड़े से भरे थे और न उनके बाहर फैला कूड़ा दिखा। जहाँ से हम गुजर रहे थे, वहाँ बहुत चौड़ा फुटपाथ था। सिंगल स्टोरी दुकानो के बीच चौड़ी सीढि़याँ और सीढि़यों के दोनो ओर बड़े बड़े खिलौने रखे थे। हम गीता को लेकर ऊपर गये, वहाँ प्लेग्राउण्ड और उसके ऊपर पार्क था, गीता वहाँ बच्चों के साथ मस्त हो गई। उत्तकर्षिनी और गीता वहीं रह गई और मैं नीचे आकर सड़क किनारे की बैंच पर बैठ गई, रात का समय था और पास ही बस स्टैण्ड था। मैं दो घण्टे वहाँ गीता के लौटने के इंतजार में बैठी रही। कोई बोरियत नहीं, लोगों को देखना अच्छा लग रहा था। इतनी चलती सड़क उस पर से प्राइवेट गाडि़याँ नाम मात्र, कानफोड़ू हाॅर्न की आवाज कहीं नहीं। काम से लौटने का समय था। बड़े तेज कदमों से लोग बस स्टैण्ड तक जाते, लाइन में लगते ही मोबाइल में लग जाते। बुजुर्ग भी व्हीलचेयर पर मोबाइल पर झुके होते। उत्तकर्षिनी, रोती हुई गीता को लेकर आई, कारण गीता भाषा न जानते हुए भी, वहाँ के बच्चों में घुल मिल गई। किसी तरह आने को तैयार नहीं ,जब जबरदस्ती करो, तो जमीन पर लोट लोट कर रोने लगती। उत्तकर्षिनी की परेशानी देखकर एक आदमी ने गीता को चाइनीज में न जाने क्या बोल बोल कर डराया। गीता उत्तकर्षिनी का हाथ पकड़ कर दौड़ आई और गीता चुपचाप अपनी प्रैम पर बैठ गई। हम फिर अपनी पदयात्रा पर चल पड़े। बहुमंजली इमारतों के बीच, फल सब्जि़यों, मांस यानि रोज़मर्रा की जरूरत के सामान के स्टाॅल हैं। डिनर करके हम होटल पहुँचे, गीता के मुँह में बोतल लगाई और तीनों सो गये। सुबह हम एक साथ नाश्ता करने गये। एक डिश हमारे देश जैसी थी। नाम और शेप अलग, ये थी, सिर्फ नमक डाल कर तली हुई आलू की टिक्की, जिसके साथ खाने को बहुत कुछ था पर मैंने टिक्की ही खाई और और स्टीमड वैजीटेब्लस। आते ही हमने पैकिंग शुरू कर दी। राजीव मकाऊ में रेनबो एशिया टी.वी. अवार्ड फंगशन के सम्मानित जज आमन्त्रित थे। वे मकाऊ पहुँच चुके थे। गीता ने तो पापा पापा का जाप शुरू कर दिया। होटल वालों ने टैक्सी मंगा दी। दो बेटियाँ, दो माँ मकाओ के लिये चल दीं। 15 मिनट में टैक्सी ने हमें फैरी टर्मिनल पहुँचा दिया। सामान लेकर हम तीनों लिफ्ट से फेरी की टिकट के लिये टिकटघर की ओर चल दिये। क्रमशः मकाउ यात्रा