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Tuesday 25 April 2017

मकाओ Macao यात्रा भाग 1 मेरी पहली समुद्र यात्रा नीलम भागी


       मकाओ यात्रा भाग 1 मेरी पहली समुद्र    नीलम भागी
फैरी टर्मिनल में लिफ्ट से बाहर आते ही एक बहुत स्मार्ट लड़की और कुछ लड़के मकाओ मकाओ चिल्ला रहे थे। हमारे मुंह से मकाओ सुनते ही लड़की ने हमारे बैग पकड़ कर चलना शुरू कर दिया। हम उसके पीछे चल दिये। पता नहीं परदेसी होने के कारण टिकट खिड़की पर लाइन लगी देखकर, मन में वहम आ गया। हमने पूछा,’’मकाओ का टिकट कितने का है?’’ वो बोली,’’200 डॉलर और फैरी जाने को तैयार है।’’टिकट खिड़की पर लाइन देख कर, हमने मना कर दिया और टिकट के लिये टरबोजेट की लाइन में लग गये। जब हमारा नम्बर आया तो इकोनोमी क्लास की टिकट खत्म हो गई, 4 बजे की फैरी में थीं, हम इतनी देर वेट नहीं कर सकते थे क्योंकि राजीव मकाओ पहुँच चुके थे और उनको इवेंट में जाना था। गीता ने पापा पापा की रट लगा रक्खी थी। हमने फिर 2.30 बजे की सुपर क्लास में 348 डॉलर प्रति टिकट के हिसाब से तीन टिकट ले ली और एक बैग 25 डॉलर में जमा करवा दिया। बाकि सामान अपने साथ रख लिया और 2 घंटे इंतजार में फैरी टर्मिनल पर घूमते रहे। तरह तरह के स्नैक्स लिये, जो हमें अलग से लगे। मेरी तो पहली बार समुद्री यात्रा थी। जो सिर्फ एक घण्टे की थी। बादल छाये हुए थे। 01.45 पर हम अगली विदेश यात्रा के लिये चैक इन की लाइन में, र्बोडिंग पास के लिये  लगे। हमें छोटे छोटे स्टिकर से मिले जिस पर सीट नम्बर लिखा था। टर्बोजेट में नीचे इकोनॉमी क्लॉस थी और सीढ़ी चढ़ कर पहली मंजिल पर सुपर  क्लास, उसमें जाकर बैठे, यहाँ भी बेल्ट बांधने का निर्देश था। मैं विंडो सीट पर बैठी थी, सामने टी.वी. चल रहा था पर मेरी नजरें तो खिड़की से बाहर थीं। इस क्लास में फेरी के चलते ही जलपान सर्व होता है। परिचारिका वाइन के लिये पूछने आई। मैंने कॉफी मांगी। वह बोली,’’सॉरी, मौसम खराब होने के कारण गर्म कुछ नहीं। कोल्ड कॉफी, जूस, आइस टी? मैंने कोल्ड कॉफी ली। खूबसूरत किनारा दूर होता जा रहा था। धूप का कहीं नामोनिशान नहीं, पानी पर चल रहे थे ऊपर से पानी बरस रहा था। कभी कभी लहरें खिड़की को छू रहीं थी। ओपन सी में कुछ समय पानी के सिवा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। पूरे रास्ते समुद्र का रंग ग्रे ही रहा। मैं तो डरी सहमी बैठी रही। धीरे धीरे मकाऊ का किनारा दिखने लगा , साथ ही मेरे चेहरे की रंगत भी बदलने लगी। फैरी से उतरे फिर वीसा की लाइन में लगे। अबकी मुझे ध्यान से घूरा , पर रोका नहीं। बैल्ट से हमने अपना लगेज़ उठाया और बाहर आये। यहाँ एक व्यक्ति खड़ा लाइन लगवा रहा था। हमने बताया, कोटाई सेन्ट्रल में, कॉनराड होटल में जाना है, उसने लाइन बता दी और हम लाइन में लग गये। लग्ज़री बस आई, उसमें बैठ गये। रास्ता बेहद खूबसूरत इतने तो काशी, भुवनेश्वर में मंदिर नहीं होंगे, जितने यहाँ कैसीनो नजर आ रहे थे। जिधर देखो संपन्नता नज़र आ रही थी। यहाँ प्राइवेट गाड़ियाँ दिख रहीं थी। टूरिस्ट बहुत ज्यादा थे। राजीव ने कहा था कि हम पहुँच कर उन्हें फोन कर ले, वे हमें नीचे लेने आ जायेंगे। हम दोनो का नेटवर्क ही नहीं आ रहा था। हम कोटाई पहुँच गये। होटल का पता रूम नम्बर सब कुछ था। ग्यारहवीं मंजिल पर हमें जाना था। लिफ्ट में गये, पर ये क्या! लिफ्ट तो होटल के रूम की चाबी से ही चल रही थी। लिफ्ट में एक अत्यंत सुन्दरी न जाने कौन से देश की महिला से, जो अंग्रेजी बिल्कुल नहीं जानती थी, से हमने रिक्वेस्ट की कि वह अपनी चाबी से 11 फ्लोर का बटन ऑन कर दे। समझ आने पर उसने तुरंत हमारा काम कर दिया। हम रूम में पहुँचे। गीता पापा को देख कर बहुत खुश हुई। राजीव को आधे घण्टे में निकलना था। तैयार होकर निकलने लगे, गीता ने रोना शुरू कर दिया। राजीव ने उसे समझाया कि आप घूमी करने आये हो, मैं काम करने आया हूँ। वो समझ गई और बोली,’’पापा, आप ऑफिस जाओ।’’मैं तो इतनी देर विंडो से बाहर ही देखती रही। गीता को दूध पिलाया, हमने चाय पी। उत्तकर्षिनी ने नक्शा लिया और उसमें सुपर मार्किट को खोजा। जहाँ गीता की जरूरत के सामान के साथ साथ, इसके आसपास रिहायश भी तो देखने को मिलती है, ऐसा मेरा मानना है। उत्तकर्षिनी तैयारी करती रही और मैं खिड़की से बाहर रेनबो एशिया टी.वी. अवार्ड फंगशन जो एक बहुत बड़ी स्क्रीन पर प्रसारित हो रहा था, उसे देखती रही। तैयारी होते ही हम चल पड़े। क्रमशः