चुम्मू की क्रेच से मुझे ऑफिस में फोन आया कि इस संडे को शाम 5 बजे क्रेच के बच्चों के लिये फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता आयोजित की जा रही है। पेरेंट ही अपनी मरजी से बच्चों को तैयार करके , उसका मंच पर इन्ट्रोडक्शन देंगे। सुन कर ,मैं खुशी से फूली नहीं समायी, मेरा 1 साल 6 महीने का चुम्मू कम्पटीशन में भाग लेगा। मैं उसी समय फोन से सहेलियों, रिश्तेदारों से सलाह लेने लगी की अपने लाडले चुम्मु को क्या बनाऊँ?
अब देखिये न डेढ़ साल का चुम्मू ता ता पा पा बोलता है। सू सू पौटी तक नैपी में करता है। वो तो बता नहीं सकता कि उसे क्या बनाया जाये? मेरा चुम्मू सबसे डिफरेंट लगे ,इसलिये मैंने सबकी सलाह माँग ली। शनिवार की छुट्टी लेकर, बस ड्रेस लेंगे। मैंने उसके दादा, दादी, बुआ की राय लेने के लिये उन्हे भी बुला लिया।
ड्रेस लेना बहुत ही कठिन काम था। नगर परिक्रमा करने पर दो चार दुकाने ही मिलीं। वहाँ चुम्मू के नाप की ड्रेस बहुत ही कम और अगर मिलीं भी तो फल और सब्जियाँ। दुकानदार बोला,’’यह बैंगन, टमाटर, शिमलामिर्च में बहुत प्यारा लगेगा।’’मैं चुप, मुझे चुप देखकर बोला,’’बच्चे को एप्पल, केला, सन्तरा बना दो।‘‘ उसकी बुआ ने मुहँ बिचका कर कहा,’’जूट की बोरी लपेट कर, आलू न बना दें, सब्ज़ियों का राजा लगेगा और झट से मना कर दिया। हम डिसाइड नहीं कर पा रहे थे कि उसे क्या बनाया जाये, इसलिए टेंशन में थे और चुम्मू परिवार के साथ घूमने में बहुत खुश था। सहेलियों ने दो महिलाओं का पता बताया, उनके पास मेरे बच्चे के नाप में सिर्फ चुहिया और गिलगरी की ड्रेस थी। जिसे देखते ही उसकी दादी जी बोली,’’चुम्मू की मर्दाना पर्सनैलटी है, चुहिया, गिलहरी, न न , बिल्कुल नहीं। यह सुनते ही चुम्मू के पापा बोले,’’इसे चड्डी पहनाकर ,सुम्मो रैसलर का मेकअप कर दूँगा बिल्कुल छोटा सा मर्द लगेगा।’’
इस खोज में मोबाइल का इस्तेमाल खूब हो रहा था। मुझे एकदम चुम्मू को मोबाइल बनाने का आइडिया आया। मैंने अपना आइडिया दुकानदार को बताया। ड्रेस का खर्च हमारा, बाद में ड्रेस दुकानदार की, वह अर्जेंट भी तो दे रहा था न इसलिए। तय करके एडवांस देकर हम घर लौटे।
चुम्मू की मोबाइल पोशाक पर एन्टीना था, जिसे वह नोचे जा रहा था। मैं स्टेज पर ले जाने से पहले उसे मेकअप लगाने लगी। जैसे ही लिपिस्टिक लगाई। झट से उसने चाकलेट की तरह अपने चारो दाँतों से उसका टुकड़ा काट लिया। मैंने उसके मुहँ में अँगुली डाल कर लिपिस्टिक निकाली तो वो चीख चीख कर रोने लगा। साथ ही उसका नाम एनाउन्स हो गया।
रोते हुए चुम्मू ने एक हाथ से पापा की अँगुली पकड़ी और एक हाथ से मेरी, हमने खुशी से पूरे दाँत निपोड़ रखे थे। मंच पर मोबाइल(चुम्मू) को लेकर आए। खूब तालियाँ बजी । तालियाँ सुन, अब चुम्मू भी खरगोश की तरह अपने चारों दाँत दिखा कर हमारी अँगुली छुड़ा मंच पर फुदकने लगा। सांत्वना पुरुस्कार लेकर, हमारे खानदान का पहला एक साल 6 महीने का बच्चा पुरुस्कृत हुआ। पर मैं दुखी थी क्योंकि मेरा बच्चा फस्ट नहीं आया था। अगले दिन क्रेच की छुट्टी थी।
अब मैं छुटटी लेकर घर पर चुम्मू को खिला रही थी, वो सब खिलौने छोड़, केवल इनाम में मिली ट्रॉफी को ही पटक-पटक कर, मुँह में लेकर खेल रहा था। मैं सजाने के लिए छिनती, तो हृदय विदारक विलाप करता। तंग आकर मैंने उसका इनाम उसे दे दिया वह खुशी से खेलने लगा। मुंझे लगातार सबके फोन आ रहे थे, सबका एक ही प्रश्न’’ चुम्मू ़र्फस्ट आया न!
मुझे स्ट्रेस होने लगा। उत्कर्षिनी आई। उसने मुझे समझाया कि क्या प्रतियोगिता में भाग लेने का मतलब फस्ट आना ही है? हमने, बच्चों ने कितना एन्जॉय किया। क्योंकि बच्चे छोटे थे वे फस्ट, सेकण्ड की दौड़ से बाहर थे। शायद इसलिए खुश थे। उन बच्चों पर कितना प्रेशर होता होगा, जिनके माता-पिता के लिए प्रतियोगिता में भाग लेने का मतलब फस्ट आना ही होता है। यह समझ आते ही मैं तनाव से बाहर आने लगी।