भेड़ा घाट, संगमरमर की चट्टानों के बीच माँ नर्मदा में नौका विहार, बंदर कूदनी
नीलम भागी
1.30 बजे हमारी बस ’प्रहलाद बाजपयी जिन्दाबाद’ के नारे लगाती भेड़ाघाट की ओर चल पड़ी। इसमें सभी कानपुर से थे। गन्दी सी गर्मी अचानक 1.ः50 पर बारिश आने से सुहाने मौसम में बदल गई। मैं कण्डक्टर को अपनी सीट पर बिठा कर उसकी ड्राइवर राहुल के बराबर वाली सीट पर बैठ गई। उसने मुझे कहाकि आप भीग जाओगी, शीशा टूटा है। पर मुझे तो शहर से परिचय करना था। सामने से सब ओर दिखता है। एक जगह पानी देख मैं तस्वीर लेने लगी तो राहुल बोला,’’अरे यहाँ तो 50-52 ताल हैं किसकिस की फोटो लेंगी!’’ उसे अपने शहर से इतना मोह था कि मुझे जबलपुर के बारे में बताता भी जा रहा था। बरसात के पानी को सड़क के गड्डों में भरा देख मैंने पूछा,’’यहाँ सड़कों का यही हाल है।’’ वह बोला,’’नही जी, बस ये भी बनने वाली हैं। आगे जाकर जब साफ सड़क आई तो तुरंत बोला,’’अब अच्छी है न सड़क, ये हाइवे है।" सड़क के दोनो ओर हरियाली से भरे खेत, इतनी उपजाऊ जमीन! एक जगह बोर्ड लगा था, प्लॉट लें 480रू प्रति स्क्वायर फीट किसी नई कालोनी का नाम लिखा था। पढ़ का अच्छा नहीं लगा, क्यों इतनी हरी भरी जमीन को कंकरीट के जंगल में बदला जायेगा। ऐसी जगह में तो बहुमंजिली इमारते होनी चाहिये। जमीन खेती के लिये बचानी चाहिये। रात गाड़ी में मैं बहुत ही कम सोई थी पर यहाँ की ताज़गी के कारण बिल्कुल फ्रेश थी। राहुल बोला," ये लम्हेटा घाट है।" सब कोरस में बोले,’’पहले भेड़ा घाट।’’मैंने राहुल से पूछा से पूछा,’’स्टेशन से भेड़ाघाट की बस सर्विस कैसी है?’’ वो बोला,’’वहाँ से हमेशा आपको बस मिलेगी, कुल 23 किमी दूर है। बस का किराया बहुत सस्ता है ऑटो टैक्सी में आपकी बारगेनिंग का हुनर काम आयेगा ।’’ स्टेशन से विजय नगर तक का किराया कुल 15रू लगा था। क्यूंकि सुबह हमने अधिवेशन की सवारी का इंतजार नहीं किया था। यानि बहुत कम किराया । बस रूकी हम सब भेड़ाघाट की ओर चल दिये। सड़क के दोनो ओर दुकानो में र्माबल की मूर्तियाँ, शो पीस, हल्के पत्थर के इयररिंग न जाने क्या क्या कलाकृतियाँ थी, जो मुझे रूकने को मजबूर कर रहीं थी इसलिये मैंने दायं बायं देखना बंद कर दिया। सीढ़ियाँ उतरने लगी सामने नर्मदा जी!! जो मुझे सांवली लग रहीं थी मैं उन्हें देखती हुई किनारे किनारे चलती जा रहीं हूँ, फर्श खत्म हुआ तो खड़ी होकर सोचने लगी, माँ तो यहाँ होशंगाबाद, अमरकंटक से अलग लग रही हैं। अब मैंने चारो ओर देखा वे तो काले संगमरमर की चट्टानों के बीच से जा रहीं हैं और आसमान में भी बादल थे इसलिये वे सांवली लग रहीं थी। साथियों ने नाव तय कर ली। सौ रू प्रति सवारी। हरिद्वार में जबसे डूबने से बची थी। तब से मैं पानी के किनारे ही रहती हूँ। मैंने नाव में बैठने से मना कर दिया। शोभा मुझे डाँट लगाते हुए बोली,’’नौएडा में मरेगी, तो भी तेरी अस्थियाँ विर्सजन के लिये गंगा जी जाना पड़ेगा। यहाँ सदेह तूं नमामि देवी नर्मदे की गोद में होगी।’’नर्मदा जी को प्रणाम कर दिल से उन्हें कहा कि माँ ,मैं भारत भ्रमण करना चाहती हूँ, मरना नहीं चाहती और सब के बीच में दुबक कर बैठ गई। नर्मदा मइया की जै बोल कर नाव चली, साथ ही मेरा डर भी चला गया। हल्की बूंदे भी कभी पड़ जातीं, मोबाइल खराब होगा, कोई परवाह नहीं पर मैं विडियों बनाने में लगी रही। रंग बदलती संगमरमर की चठ्टानों के साथ माँ का भी रूप बदलता जाता था। नाविक का नाव खेते हुए वर्णन करना, कमाल का! उसने कहा,’’ऊपर झाड़, नीचे पहाड़, बीच में आप करते नौका विहार।’’ साहित्यिक साथियों ने इसे समवेत स्वर में नौटंकी स्टाइल में गाया। अब वह उत्साहित होकर सीधी सरल मनोरंजक तुकबंदियां कर रहा था और मंच के विद्वान वक्ता ठहाके लगाते हुए, उसे जिज्ञासु श्रोता की की तरह सुन रहे थे। बंदर कूदनी एक ऐसी जगह थी जहाँ पहले सतपुड़ा और विंघ्याचल की पहाड़ियाँ इतनी पास थीं कि बीच में से नर्मदा जी संकरी होकर बहती थीं और ऊपर से बंदर कूदकर दूसरी ओर चले जाते थे। लेकिन अब पानी के कटाव ने दूरी बढ़ा दी है। उसे बंदरों द्वारा अब कूद कर पार लायक नहीं छोड़ा। नाविक ने बताया कि हमारी यात्रा 50 फीट की गहराई से शुरू हुई थी, अब नर्मदा जी 600 फीट गहरी हैं और संगमरमरी चट्टाने 120 फीट तक ऊँची थी। उनमें तरह तरह की आकृतियाँ अपने आप बन गई थीं। जिधर इशारा नाविक का होता सबकी गर्दन वहीं घूम जाती थी। नाविक ने दोनों हाथों से कटोरा बनाकर नर्मदा जी का पानी पीना शुरू किया। मैंने भी तुरंत अपनी बोतल का पानी, नर्मदा जी में पलट कर उसमें नर्मदा जल भर कर पिया। उस बोतल को भर भर कर सभी ने पवित्र जल को पिया। ढाई किमी. दूर हम घाट से आ गये थे। अब लौटे यानि कुल पाँच किमी का नौका विहार। विडियो बनाने के लिये खड़े हाने पर नाव का बैलेंस बिगड़ता था, मैं बीच मैं बैठी थी। इसलिये बाँह उठा कर बना रही थी। बाँह दुखने लगती थी। एक सज्जन मेरे पीछे ऊँचाई पर बैठे थे। वे मेरी मदद के लिये बीच में मोबाइल ले लेते थे। घर लौट कर जब मैंने विडियो देखे, मजाल है कोई भी विडियो उनकी सूरत और अदाकारी से छूटा हो। अपने मोबाइल में अपना विडियो बना कर अपनी सूरत को निहारते रहो, कौन मना करता है? जबरदस्ती दूसरे के विडियो में घुसना! पर ये तो अच्छा हुआ बीच बीच में मैं उनसे मोबाइल ले लेती थी। नही ंतो मुझे विडियो में नर्मदा जी के सौन्दर्य के स्थान पर उनकी सूरत देखनी पड़ती।https://youtu.be/2rCmBjI0hRI
https://youtu.be/2rCmBjI0hRI क्रमशः