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Saturday 12 January 2019

प्रसिद्ध साहित्यकार गांधीवादी श्री नारायण ’मुनिजी’ सीतामढ़ी बिहार यात्रा भाग 9 Shri Narayan Munuji, Sitamarih Bihar Yatra लम भागी

 प्रसिद्ध साहित्यकार गांधीवादी श्री नारायण ’मुनिजी’ सीतामढ़ी  बिहार यात्रा भाग 9
                                                   नीलम भागी
मेरे सामने मंच पर 81 वर्षीय एक बुर्जुग आये। उनके आते ही सब उनके सम्मान में खड़े हो गये। उनके बैठने पर सब बैठे। जिसको भी देखती थी वह श्रद्धा से उनकी ओर देख रहा था। मेरे दिमाग में बोकाने कला गाँव के आधुनिक गांधी की तस्वीर आ गई। अरे! ये तो प्रसिद्ध साहित्यकार, समाजसेवी,व सर्वोदयी श्री नारायण ’मुनि जी’ हैं। जो  व्यक्तित्व से भी गांधीवादी हैं और कृतित्व से भी गांधी विचारधारा के अनुसार ही जीवन जी रहें हैं। यहाँ सब उन्हें मुनि जी कहते हैं। बचपन में आजादी पूर्व से ही बापू से प्रभावित हुए और समाजसेवा में लग गये। तीन वर्ष की उम्र में ही पिता की मृत्यु हो गई थी। माँ और दादी ने भी इनके समाज सेवा के कार्यों को प्रोत्साहित किया। 15 अक्टूबर 1950 को इन्होंने छोटी सी लाइब्रेरी खोली जिसका नाम जनता पुस्तकालय रक्खा और पुस्तकदान यज्ञ शुरू किया। वे दानियों से कहते कैश नहीं, अपने हस्ताक्षर करके पुस्तक दान दो। बाद में पुस्तकालय का नाम प्रजापति सेवा सदन रख दिया। आज उनके पुस्तकालय में 31000 किताबे हैं। साथ ही साथ शराबबंदी और नशामुक्ति के लिये भी स्थानीय लोगों में काम करते हैं। इन्होंने सात पुस्तकों की रचना की है। प्रसिद्धि से दूर रहते हैं। पर इनके कार्यों की कीर्ति इन्हें सम्मानित करवाती है। गांधी जी पर गोष्ठी थी। अपने बहुत ही संक्षिप्त व्याख्यान में उन्होंने यह कह कर कि ’गांधी जी के विचारों पर चलना ही सही मायनों में उनके सपनों को साकर करना है।’  सब कुछ कह दिया। बापू के समय मेरा जन्म नहीं हुआ था इसलिये उनकी मुर्तियों तस्वीरों के साथ अपनी तस्वीर लेती हूं। मैंने कृष्ण कांत से कहाकि मेरी मुनिजी के साथ फोटो खींचना। जब वे मंच से उतरे कृष्णकांत ने मेरी उनके साथ तस्वीर ली। सायं 5 बजे हम सीतामढ़ी के लिये निकले। मैं स्कार्पियों में आगे की सीट पर बैठी, सबके बैठने पर एक बहुत ही कम उम्र का लड़का आकर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। मैंने चंपारण घुमाने वाले ड्राइवर साहेब को बुला कर उससे पूछा कि ये ठीक से ड्राइविंग जानता हैं। उन्होंने जवाब दिया, ’’हाँ जी, ये कई बार कलकत्ता तक जा चुके हैंं। फिकिर नॉट, टेंशन न लीजियेगा।’’ मैंने भी तुरंत टेंशन लेनी छोड़ दी। गाड़ी चलते ही मैंने बाहर आँखें गड़ा लीं क्योंकि दिन छोटे थे। कुछ ही देर में अंधेरा हो जाना था फिर मैं दूर दूर तक फैली हरियाली को कैसे देख सकती थी भला! पेड़ों से ढकी सड़क के बीच से हम जा रहे थे। मैंने सड़क के रास्ते से जितनी भी यात्रायें की हैं, उनमें दो फायदे होते हैं पहला तो शहर से परिचय हो जाता है और दूसरा गाने बहुत अच्छे सुनने को मिलते है। क्योंकि ज्यादातर ड्राइवर गाने अच्छे लगाते हैं , बशर्ते उनका दिल न टूटा हो अन्यथा आपको रास्ते भर टूटे दिल के ,दिल के टुकड़ों के, हसीना की बेवफाई के, जुदाई के गीत और प्यार में धोखे के गीत सुनने को मिलेंगें। साथ ही उनके गीतों में किसी नाज़नीन से दिल न लगाने की नसीहत भी मिलेगी। राजा ने पहला गाना लगाया ’तेरा प्यार प्यार प्यार प्यार हुक्का बार।’ साथ ही फच से बाहर गुटका थूका। गाने की धुन के अनुपात में ही उसने, गाड़ी की स्पीड कर दी। मैंने उसे तुरंत टोक कर कहाकि बिहार के लोक गीत लगाओ। छठ आने वाली थी। इस लिये उसने छठ के गीत लगाये, जो पूर्णतः धार्मिक और सौभाग्यदायक और पतिप्रेम को दर्शा रहे थे। मधुर धुन में ये गीत बज रहे थे और इन गीतों का आनन्द लेते हुए हम जा रहे थे। बीच बीच में गाड़ी कूद कूद कर धूल उड़ाती कच्चे अन्धेरे रास्तों से जा रही थी। मैंने राजा से पूछा,’’यहाँ ऐसी सड़कें हैं। उसने जवाब दिया कि नहीं, यहाँ सड़कें बन रहीं हैं। सुन कर अच्छा लगा।    क्रमशः