नीलम भागी
पोरबंदर से श्री सोमनाथ की दूरी 152 किमी है। बापू की जन्मस्थली से परिचय करते हुए हम बस से जा रहे थे। शहर की बसावट के बाद रास्ता के दोनो ओर या तो खेत थे या नारियल और केले के पेड़ लगाये गये थे। मुझे इन्हें देखना बहुत अच्छा लग रहा था। कहीं कहीं पवन चक्की भी लगी थीं। विकास तो चल ही रहा था। सड़कें बन रहीं थी। रोड साइड ढाबे में हम लंच के लिए रूके। टैंपू, सरकारी बसें जो भी पास से गुजर रहीं थीं उनमें बैठी महिलाओं ने मैं देख रही थी, सभी ने गाढ़े रंगो के कपड़े पहने थे। रंग वही थे पर कुछ अलग विशेषता थी। हम उन्हें गुजराती कलर कह सकते हैं। दो घण्टे 45 मिनट में हम श्री सोमनाथ संस्कृत यूनीवर्सीटी, राजेन्द्र भवन रोड, वेरावल पहुंचे। इस विश्वविद्यालय को सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट चलाता है। यहाँ संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। संगोष्ठी का संचालन डॉ. विनोद बब्बर ने किया। संगोष्ठी लगभग दो घण्टे चली। समापन पर डॉ. विनोद बब्बर ने कहाकि 7 बजे श्री सोमनाथ मंदिर में आरती होगी और 7.30 से 8.30 लाइट एण्ड साउण्ड प्रोग्राम एक घण्टे का होगा। कोई भी मंदिर में फोन कैमरा, इलैक्ट्रॉनिक आइटम नहीं लेकर जायेगा। सब फटाफट बस में बैठ गये। किसी का इंतजार नहीं करना पड़ा। बस मंदिर की ओर चलने लगी और हम सब अपना सामान संभालने लगे। मंदिर से कुछ दूरी पर बस ने उतार दिया। कुर्ते की जेब में रूपये रख, खाली हाथ हम मंदिर की ओर चल दिए। सबकी चप्पलें एक जगह देकर टोकन लिया। एक साथी शो की टिकट लेने चला गया। सबको निर्दैश मिला कि एक साथ रहना है। मोबाइल न रहने से कोई किसी को बुला नहीं सकेगा। मेरे लिए सबने कोरस में कहा कि नीलम आप अधिक समय लगाती हो, ध्यान रखना। आरती चल रही थी। लंबी लाइनों में हम लग गये। इन लाइनों में दुनिया के कोने कोने से आये श्रद्धालु दर्शन की प्रतीक्षा में खड़े आरती देख रहे थे और अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। भक्तों की आस्था से अलग सा भाव बना हुआ था। यहाँ तो प्रभु की छवि अपनी आँखों मेें उतारनी थी और अपने दिल की मैमोरी में फीड करनी थी। हाथ जोड़े , मुंह में शिव जी का जाप करते सब धीरे धीरे खिसक रहे थे। उस समय मंदिर की वास्तुकला, आस पास किसी भी ओर मेरा ध्यान नहीं था। मुझे बहुत अच्छे से दर्शन हुए, वहाँ कुछ समय खड़ी भी रहीं और माता पार्वती को देखती रही। बाहर आते ही ध्यान आया शो का, उस ओर चल दी। शो शुरू ही हुआ था। साथियों ने आवाज लगाई। वहाँ उन्होंने मेरे लिए जगह रोकी हुई थी। जाकर बैठ गई। मंदिर का इतिहास बताया जा रहा था। एक घण्टा कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। शो के समापन पर हम भीड़ छटने के इंतजार में वहीं बैठ गये। मंदिर से बाहर आकर चप्पलें लीं। बाहर सामान बेचने वालों की और खरीदने वालों की भीड़ लगी हुई थी। हम अपनी बस की ओर चल पड़े। बस में बैठते ही सबसे पहले मोबाइल ऑन किया। इतनी देर बिना मोबाइल के रहे। हमारे श्री सोमनाथ ट्रस्ट, श्री सोमनाथ महेश्वरी समाज अतिथी गृह में कमरे बुक थे। अपने कमरे की चाबी लेकर सामान रखा और गुजराती डिनर किया और आते ही सो गई। क्रमशः