Search This Blog

Thursday 23 May 2019

वडोदरा से द्वारका जी गुजरात Vadodara to Dwarka Gujrat Yatra Part 15 यात्रा भाग 15 नीलम भागी



स्टैचू ऑफ यूनिटी, खूबसूरत फ्लावर वैली और सरदार सरोवर डैम देखने के बाद, सब फटाफट बस में अहमदाबाद के लिये बैठ गये। सबको चिंता थी कि गाड़ी न छूट जाये। बस जब  वडोदरा के पास पहुंची तो चंद्रभूषण त्यागी जो हमारी द्वारका यात्रा के ग्रुप लीडर थे, बस रूकवा कर बोले,’’उतरों।’’ सब उतर गये और फटाफट सामान उतारा। हमारे साथियों ने बाय के साथ आपस में एक दूसरे के संपर्क में रहने को कहा। हमारे सभी साथी बहुत अच्छे स्वभाव के थे। उन्हें हम मिस कर रहे थे। बस अहमदाबाद को चल दी। अब त्यागी जी ने कहाकि जिस गाड़ी को हमने अहमदाबाद में पकड़ना है। वह वडोदरा से होकर जाती है। मैंने रिस्क लेना उचित नहीं समझा, रास्ते में जाम वगैरहा मिल गया तो गाड़ी छूट जाती और तीन ऑटो स्टेशन के लिये बुलाये। हमने सामान रक्खा और स्टेशन को चल दिये। अहमदाबाद से द्वारका जी की टिकट तो हमारे पास थी। वहाँ पता चला कि गाड़ी 30 मिनट लेट है। मैं लेडिज वेटिंग रूम में सबके सामान के साथ बैठ गई। महिलाओं की लाइन छोटी थी इसलिये पूनम माटिया वडोदरा से अहमदाबाद की टिकट लेने चल दी। लेडिज़ वेटिंग रूम में चार्जिंग के प्वाइंट बहुत थे। जो भी महिला आती, वह सबसे पहले चार्जर लगाती। मैंने भी लगा दिया। पूनम माटिया टिकट ले आई और उन्होंने बताया कि गाड़ी प्लेटर्फाम नम्बर दो पर आयेगी। त्यागी जी ने कहा,’’ चलो लंच कर आते हैं।’’ सब सामान उठाकर चल दिये। मैं पीछे रह गई। जब तक मैं चार्जर उतार कर, सामान लेकर बाहर आई। मुझे कोई दिखा ही नहीं। मैं लगेज़ उठा कर सीढ़ियों से प्लेटर्फाम नम्बर दो पर आ गई। वडोदरा स्टेशन पर कॉफी और दाल के पकौड़े बहुत स्वाद मिलते हैं। हरी मिर्च के साथ मैं पकौड़े और कॉफी का आनन्द उठा ही रही थी कि अंजना का फोन आया कि मैं अब तक क्यों नहीं आई? मैंने बता दिया कि मैं नहीं आ रही दोबारा सीढ़ियां चढ़ कर, यहीं खा रहीं हूं फिर मैंने एक वड़ा पाव भी खाया। थोड़ी देर में सब आ गये। गर्मी थी लस्सी के पैकेट ले लिये। गाड़ी में सवार हो, हम द्वारका जी चल पड़े। अब त्यागी जी द्वारका के होटल में कमरों की बुकिंग में लग गये। स्लीपर डिब्बा था, खिड़कियां खुली थीं। आस पास ऊपर जिसको जहाँ जगह मिली वो लेट गया। जब सब सोकर उठे तो त्यागी जी ने बताया कि गाड़ी रात सवा बारह बजे द्वारका पहुंचेगी। रूम बुक हो गये हैं, जाते ही सो जाना है। सुबह से लेकर रात तक द्वारका घूमना है। रात को वॉल्वो में स्लीपर में सोते हुए अहमदाबाद आना है। अहमदाबाद घूम कर फिर शाम 4.30 की फ्लाइट से दिल्ली लौटना है। अब हमने लोगों को रिक्वेस्ट करके, सब सीट आसपास कर ली, बतियाते खाते ,छाछ, चाय पीते रास्ता काट रहे थे।  और खुश थे कि हमें रिर्जवेशन मिल गया और हमारी एक धाम की यात्रा हो रही थी। गाड़ी कहीं भी खड़ी हो जाती थी। खाने का ऑर्डर लेने आये। सबने डिनर ऑर्डर किया।  मैंने नहीं किया। मैं तो स्टेशन में खाने के स्टॉल को घूर घूर कर देखती, अगर गाड़ी 5 मिनट रूकती तो जाकर ले आती जैसे खाकरे, थेपले, इडली, वड़ा, सिंगदाना आदि। बारह बजे के बाद गाड़ी में ठंड लगने लगी। हवा के साथ मिट्टी बहुत आ रही थी। हमारे बालों, कपड़ों,  मुंह पर मिट्टी की परत जम गई थी। मैं जिंस और फुल स्लीव कुर्ते में थी, दुप्पटा होता तो सिर से पांव तक ढाप के सो जाती। पैरों में ठंड लग रही थी। मैंने पर्स में पैर डाल लिये और बालों से मुंह ढक लिया और सो गई। सागर जी ने स्टेशन आने से पहले आवाज लगाई। सब सामान समेट कर तैयार हो गये। रात ढाई बजे हम स्टेशन पर उतरे। होटल से फोन आया था। हमने बताया कि गाड़ी लेट है। उसने कहा कि होटल स्टेशन के पास है। 50रू ऑटो वाला लेगा। ऑटो से पूछा, वह बोला 200 रू। हममे से कोई गुस्से से बोल गया कि तीर्थ स्थानों पर यही प्राब्लम है, बाहर से आने वालो को लूटना। किसी ने सुन लिया। अब तो ऑटो आते जा रहे, लोग बैठते जा रहे। हमें कोई मना भी नहीं कर रहा, न ही बैठा रहा था। मैं सामान के पास खड़ी थी। बाकि ऑटो के लिये कोशिश कर रहे थे। मैं यहां अलग अलग प्रांतों से आये श्रद्धालुओं को देखने में मस्त थी। मैंने देखा एक आदमी फोन करता था। सामने आता हुआ ऑटो एक ग्रुप के आगे खड़ा होता, वह उसमें चढ़ जाता। मैंने उससे पूछा कि ये हमें क्यों नहीं बिठा रहे हैं। वो बोला,’’इन लोगो के होटल र्धमशाला दूर हैं। आज गाड़ी बहुत लेट थी ,सब आटो वाले चले गये थे। मैं फोन करके बुला रहा हूं। वो देखो आपके लिये भी आ गया। दस लोग बैठ सकते हैं। 20रू सवारी यानि 200 रू। रात में बीस रूपये सवारी, मैं हैरान!! उसने छत पर हमारा सामान रक्खा, हमें बिठाकर वह होटल पहुंचा गया।   क्रमशः