सिंगापुर लौटते
ही काजल ने घर सैट किया, उस दिन संडे था
इसलिये सप्ताह की प्लानिंग की। पूरा सप्ताह हम बच्चों से अलग रहते हैं इसलिये
शनिवार रविवार को बच्चे हमारे साथ रहते हैं। हमारा बाहर आना जाना खाना रहता है। तब
काजल प्रेस वगैहरा कर लेती है अगर उसका मन होता है तो साथ भी चली जाती है। इस बार
काजल ने सण्डे ऑफ लिया। शनिवार की रात उसने एक चम्मच भी जूठा नहीं छोड़ा। सुबह देर
तक सोई फिर तैयार होकर चली गई। घर का काम और दो बच्चों के साथ भागदौड़ से उसकी
फिटनैस गजब की थी। मैं तो उसे जाते हुए देखती ही रह गई। मुझे उसका छुट्टी बिताना,
अपने लिये पहली बार घर से निकलना अच्छा लगा।
मैंने और नमन ने भी सोमवार को उसे घर वैसा ही लौटाया, जैसा उसने हमें दिया था हमने भी सण्डे को कोई भी काम उसके
लिये नहीं छोड़ा था। काजल तीनों भाइयों में सबसे बड़ी थी। लेकिन शादी, उससे छोटे
भाई कालू की कर दी गई। मुझे तो यह अच्छा नहीं लगा, शायद काजल को भी ठीक न लगा हो। अब सोना तो हमारे साथ प्ले
और डे केयर में जाती है और हमारे साथ ही लौटती थी क्योंकि समर घिसटता हुआ पूरे घर
में सामान इधर उधर फैंकता था इसलिये उसे ज्यादा देखभाल की जरूरत थी। वह शाम को समर
को कौंडो के प्ले एरिया में ले जाती, जहाँ वह बच्चों को खेलता देख खुश होता। कभी अण्डरपास से इस्ट कॉस्ट पार्क ले
जाती। वहाँ समुद्र और शिप देखकर वह बहुत खुश रहता। अब उसकी आसपास की मेट भी
सहेलियाँ बन गई। शाम को गूगल से हमारी लोकेशन देख कर, हमारे आने पर वह मेज पर खाना लगा रखती थी। दरवाजा खुलते ही
समर मेरे पास और सोना दीदी के पीछे पीछे रहती। वो बड़ी फुर्ती से उसका बैग डायरी सब
चैक कर लेती। जो स्कूल में सिखाया जाता, सब सुन लेती। जब भी वह सण्डे बाहर घूम कर आती तो वह फेस बुक में अपनी देखी हुई
जगह के साथ अपनी तस्वीरें जरूर पोस्ट करती। उन तस्वीरों को देखने का मुझे भी बड़ा
चाव रहता। मेरी ऑफिस की रिटायर ड्रेस में वह बहुत अच्छी लगती थी। इतनी व्यस्त होने
पर भी वह इंटरनेट के लिये समय निकाल ही लेती। कुकिंग का उसे बहुत शौक था। घर में
इंगलिश ज्यादा बोली जाती थी इसलिये ये काम चलाउ अंग्रेजी बोल लेती थी। नई सहेलियाँ
बनने से काजल उनके देश की किसी डिश की रैस्पी ले आती। वीक एंड पर बच्चे हमारे पास
होते, ये पूरी लगन से कोई न कोई
डिश बनाती। जिसका स्वाद लाजवाब होता था। एक दो दिन छोड़ कर, वही डिश हम रैस्टोरैंट से लाकर उसे खिलाते, अपनी कामयाबी पर वह बहुत खुश होती। दो साल का
होने पर समर भी प्ले स्कूल जाने लगा। दोपहर को काजल ही उसे स्कूल से ले आती। थका
हुआ समर आते ही सो जाता। उसके उठने तक वह खाने की तैयारी कर लेती। समर को भी सारा
सेलेबस याद करवा देती। काजल के कारण मेरी कामकाजी सहेलियाँ मुझसे ईष्या करतीं थीं।
काजल में मैं कुछ परिवर्तन महसूस करने लगी
थीं। अब वह बहुत खुश रहती थी। मौहम्मद रफी के गीत हमेशा गुनगुनाती थी। बार बार
मोबाइल चैक करती थी। शीशे में बार बार अपने को निहारती थी। आठ बजते ही वह अपने
एरिया में जाकर दरवाजा बंद कर लेती थी। मैं चैक करती, वह ऑनलाइन रहती थी। मेरे सोने तक भी वह जगी होती थी। लेकिन
सुबह कभी भी उसे लेट उठते नहीं देखा था सिवाय उसके ऑफ के। ये सब देख कर मैंने
सिक्योरिटी में कह दिया कि मेरे यहाँ कोई भी आये, मेरे और नमन की परमीशन के बिना किसी को भी हमारे अर्पाटमेंट
में न जाने दिया जाये। पहले काजल से इंटरकॉम पर पूछा जाता था। कैमरे में तस्वीर
दिखाई जाती थी, तब वह जा सकता था,
जाता कौन था!
कोरियर या डिलीवरी वाला। हमारे पास तीन कार्ड थे। उन्हें तीन जगह स्विप करके ही हम
अर्पाटमेंट में आ सकते थे। एक कार्ड नमन के पास, एक मेरे पास और एक काजल के पास रहता था।
इस संडे ऑफ पर वह एक नामी ब्रॉण्ड की पोशाक पहन
कर जब जाने लगी, मैं उसे देखती ही
रह गई। उस ब्राण्ड के कपड़ों के मैं तो दाम पढ़ कर ही छोड़ने को मजबूर हो जाती हूँ।
काजल तो चली गई पर मेरे लिये प्रश्न उछाल गई कि इतने मंहगे कपड़ों के लिये इसके पास
पैसा कहाँ से आया? क्योंकि जब से इस
बार इण्डिया से लौटी है। तब से यह मुझसे पचास डॉलर लेती है। बाकी एकाउण्ट में
ट्रांसफर करवा देती है। बस, बैंकिंग इसे नहीं
आती। फिर ये पोशाक..!! दिन भर मेरे दिमाग में डिबेट चलती रही। अंत में मैंने ये
सोच कर मन को समझाया कि हमारे यहाँ काम करती है। हमारी गुलाम नहीं है। अपना काम तो
अच्छे से करती है। अपनी सहेलियों की मेट के किस्सों से मैं अपने आप को कितना लकी
समझती हूँ। उनकी मेड रात को ड्यूटी ऑफ के बाद कभी भी घूमने चल देती हैं। जब तक रात
में लौटती नही, तब तक सहेलियाँ
अगले दिन के लिये यह सोच कर डरती हैं कि न आई तो! अगले दिन उन्हें ऑफ करना होगा।
पर ऐसा यहाँ कभी किसी के साथ नहीं हुआ क्योंकि अपनी ड्यूटी के प्रति सभी बहुत
सिंनसियर हैं। खैर, रात को शॉपिंग
बैगस से लदी हुई काजल लौटी, मैं तो उसे हैरान
होकर देखती रह गई। वो बिना कुछ बोले, एक नजर मुझ पर डाल कर, गर्वित सी अपने
एरिया में चली गई। मैं भी अपने बैडरूम में आ गई।
आते ही मैंने नमन को आँखों देखा बताया। सुनते
ही उसने कहाकि काजल अब बच्ची नहीं है। इसकी जगह कोई और मेट होती तो तुम ऐसा सोचती!
उसकी भी अपनी जिंदगी है। अपराध यहाँ होते नहीं हैं। दिल का मामला होगा तो उसमें हम
तुम कुछ नहीं कर सकते। ज्यादा तुम्हें बुरा लग रहा है तो तुम कांट्रैक्ट तोड़कर
पैसे का नुकसान उठा कर इसे इण्डिया भेज दो। इस देखी भाली को कोई भी बुला लेगा। फिर
भी मेरा सुझाव है कि इसकी सेवाओं को देखते हुए, इससे सहेलियों सा व्यवहार करो ताकि तुमसे अपने दिल की बात
करे, कुछ गलत कर रही होगी तो
तुम अगाह कर देना। मैं फिर सोच में पड़ गई। यहाँ सब मेट अपने एम्पलायर को सर मैडम
कहतीं हैं। हमें ये दीदी भइया बोलती है। सोना समर भी काजल को दीदी कहते हैं। कभी
खाने पीने में फर्क नहीं किया। अभी कुछ समय से इसने ही मुझसे बात करना कम कर दिया
है। मेरी आदत है घर आते ही बच्चे को गोद में लेते ही बोलती हूँ,’’ दीदी को तंग तो नहीं किया।’’जवाब में ये हमें खाना परोसते हुए, बच्चों का कोई न कोई किस्सा जरूर सुनाती थी। अब
’नहीं नहीं’ कह कर चुप हो जाती है। लगता है किसी दुसरी
दुनिया में खो गई है। स्वभाव में फर्क आया है लेकिन उसके काम में, कोई कमी नहीं मैं निकाल सकती। सुबह मैं उससे
बेमतलब बतियाती हुई ऑफिस गई उसने जवाब हाँ न में ही दिये। किसी भी बात को उसने आगे
नहीं बढ़ाया। रात में मैंने उससे फिर समर की बात की। फिर उसे बताया कि कल मेरी
सहेली के बेटे का जन्मदिन था वहाँ सब कुलीग अपनी फैमली के साथ आये थे। वहाँ सबसे
अलग सोना समर रहे। कोई एक पोयम सुनाने को कहता, ये पूरी सीडी सुना देते। सब कुछ इन्हें आता था। जब मैंने सब
को बताया कि मैंने तो कभी इनका बैग ही खोल कर नहीं देखा, सब इनकी काजल दीदी की मेहनत का फल है। पहले का समय होता तो
वह सुनकर खुश होती, कुछ जवाब देती।
उसने बस हल्की सी मुस्कान दी। जल्दी जल्दी काम समेटा और आठ बजते ही अपने एरिया में
चली गई और ऑनलाइन में व्यस्त हो गई। मैं अपना सा मुँह लेकर रह गई। सुबह मैं वैसे
ही रही जैसे पहले रहती थी। रात वह नई पोशाक में कीमती परफ्यूम से महकती, पर्स उठाये जाने लगी तो मैंने पूछ ही लिया,’’काजल तुमने खाना खा लिया।’’वह जवाब में बोली,’’मैं बाहर खाउँगी।’’ और कार्ड उठा कर चल दी। लौटने पर यहाँ दरवाजा तो खोलना ही नहीं पड़ता, कार्ड जो है। मेरी आँखों में नींद नहीं थी। दो
घण्टे बाद जब उसके लौटने की आवाज आई, तब मैं सोई। नमन को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। मेरे मायके से जो थी। उसे बचपन से
जानती थी शायद इसलिये मुझे सब अजीब लग रहा था। सुबह उठी, बाहर वह वैसे ही रोज की तरह काम में लगी हुई थी। अब वह कभी
कभी रात को जाती पर ज्यादा से ज्यादा साढ़े दस तक लौट आती। अगले ऑफ पर वह शनिवार
रात को ही ट्रॉली बैग लेकर निकली। जाते जाते बोल गई, सोमवार तड़के आ जायेगी। क्रमशः