माँ ग्यारह बजे जगा देना शारजाह ऑफिस जाना है। बेटी एक स्लिप लगा कर सोई हुई थी। 11 बजे उसे जगाया और हम चल दिए। रास्ते में बेटी बोली,’’माँ आप दानिश खान का ध्यान रखना, वो सिगरेट पीने जाता है और खो जाता है।’’ मैंने पूछा,’’कहाँ चला जाता है?’’ वो बोली,’’जाता कहीं नहीं बस सपनों में खो जाता है। काम में बहुत अच्छा है। बस आप बीच बीच में देखती रहना, मैं कुछ और काम पूरा कर लूंगी।’’ मैं बहुत खुश हो गई। चलो कुछ काम करने को तो मिला है। एडिटिंग रुम में जाते ही दानिश ने मेरे पैर छुए और अपने काम में मश़गूल हो गया। मैं पहले की तरह शॉल ओढ़ कर सोफे पर लेट गई क्योंकि एडिटिंग रूम में एसी बहुत कम टेंपरेचर पर चल रहा था। बेटी और काम निपटाने चली गई। मैं सो गई। जब भी आँख खुलती दानिश को काम में खोया देखती। अचानक आँख खुली दानिश गायब! डायनिंग रुम में उसे देखने गई। सामने उसके सुलेमानी(बिना दूध की चाय का दुबई में नाम) रक्खी रखी थी। अंगुलियों में सिगरेट सुलग रही थी और वह विचारों में खोया हुआ था। मैं अपने लिये कॉफी बनाने लगी तो उसका ध्यान टूटा, एकदम उठ कर आया और बोला,’’अम्मी आप बैठिये न। मैं बना कर लाता हूँ। मैं बैठ गई। जैसे ही वह कॉफी बनाकर लाया। मैं बोली,’’बेटा,रुम में चल कर पीते हैं।’’जैसी आपकी मर्ज़ी कह कर वह मेरे पीछे चल दिया। मैंने कॉफी का पहला घूंट भरा और बोली,’’आपने कॉफी तो बहुत अच्छी बनाई है।’’शुक्रिया कह कर उसने मुझसे पूछा,’’आपको दुबई कैसा लगा?’’मैंने उसे दुबई की विशेषताओं पर निबंध सुना कर कहा कि यहाँ मुझे कोई काम नहीं है सिवाय बेटी के साथ समय बिताने के और कात्या मूले के साथ बतियाने के। फिर मैंने पूछा कि तुम्हें दुबई कैसा लगा? उसने जवाब दिया,’’अच्छा लगता है पर परिवार मुंबई में है इसलिये मन वहीं अटका रहता है।’’ कुछ तो उसकी मज़बूरी रही होगी इसलिये मैंने नहीं कहा कि फैमली को यहाँ ले आओ। मैं उसके बच्चों की पढ़ाई आदि के बारें में बात करने लगी। अब वह बताने लगा कि उसके एक बेटा और बेटी है। पत्नी सकीना होम मेकर है। बेटा दसवीं में है और बेटी नवीं में। मैं खुश होकर बोली कि चलो बेटा बेटी दोनो बड़ी क्लास में हैैं। दुबई में कब से हो? वह बोला,’’बच्चे जब पहली दूसरी में थे तब से यहाँ आया हूँ। मैंने की कहा कि परिवार तो तुम्हें बहुत मिस करता होगा न! सुन कर उसके चेहरे पर गहरी वेदना आ गई। वह बोला,’’अम्मी, मैं इण्डिया से उस समय के चौगुने वेतन पर यहाँ आया था। वहाँ हम बहुत हिसाब से चलते थे। हमने किराये का एक कमरे का फ्लैट, दोनों पढ़ने वाले बच्चों के स्कूल के पास लिया था, सकीना ही उन्हें पैदल छोड़ने और लेने जाती, बिना बाई के घर सम्भालती, बच्चों का होमवर्क करवाती, बुरे वक्त के लिए बचत भी कर लेती। पाँच घण्टे का लोकल से आना जाना करके, हाथ में कुछ खाने को जैसे भेल, वड़ापाव वगैरहा लेकर ही मैं घर आता था। मुझे देखते ही, दोनों बच्चे पानी की बोतल लाने के लिए फ्रिज खोलने लगते। चेंज करते ही चाय भी आ जाती। किराये का स्टुडियो अर्पाटमेंट जन्नत सा लगता था। स्कूल बैग खोल कर, बच्चे स्टार दिखाते, उनको देख कर मेरी थकान उतर जाती थी। मेरा गृहस्थी चलाने में सिर्फ कमाने का योगदान था। बाकि सब सकीना का महकमा था। यहाँ आने पर भी मैं सकीना को अपनी भारत में मिलने वाली तनखाह देता था। मेरा तो कोई खर्च ही नहीं था। सकीना को अब चार की बजाय, तीन लोगों का घर खर्च चलाना था और हम यहाँ तो घर द्वार छोड़ कर कमाने और बचाने आये हैं। यहाँ भी वन रुम सैट में हम चार दो कुवांरे और दो शादीशुदा रहते हैं। एक गाड़ी रक्खी हुई है। रोटी पराठां बाजार यानि सुपर स्टोर से ले आते हैं। सालन खुद बना लेते हैं। वैक्यूमक्लिनर, डिशवाशर और वाशिंग मशीन की मदद से मिलजुल कर काम कर लेते हैं। बाकि समय फ्लाइट या जरुरत के सामान की सेल देखते हैं, जब सेल होती है तो इण्डिया ले जाने के लिये और यहाँ के लिए खरीदारी करते हैं। जितने समय में मैं लोकल से रोज सफ़र करता था, इतने समय में तो मैं दुबई से मुंबई घर चला जाता हूँ। बचत के कारण साल में दो बार मैं घर जाता हूँ। शुरु शुरु में बच्चे मेरे जाने पर खेलने भी नहीं जाते थे। हर वक्त मुझे घेरे रहते थे। अपने और सकीना के परिवार में मिलने जाता वहाँ भी मुझसे चिपके रहते थे। कुछ समय बाद फोन पर सकीना की शिकायतें शुरु होने लगीं कि बच्चे उसे बहुत तंग करते हैं। वो अकेली क्या क्या करे? मैंने बच्चों से कहा कि तुम्हें दुबई घूमने आना है? वे यहाँ आने के नाम पर बहुत खुश हुए। मैंने कहा कि इस साल मैं नहीं आउंगा। छुट्यिां तुम लोग दुबई में ही बिताओगे। क्रमशः