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Friday, 6 December 2019

दिल ने मेरे जो कहा, मैंने वैसा ही किया, हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 6 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 6 Neelam Bhagi नीलम भागी


सरोजा ने शादी तो गाँव में की थी क्योंकि बारात बांध कर सबको गांव तो वो नहीं ले जा सकती थी। उसका यहां व्यवहार बहुत था। कहीं न कहीं से उसे बुलावा रहता ही था, अब उसका बुलाने का समय आया है। परशोतम की शादी!! वो भी अर्पूव सुन्दरी से ये तो उसके मन की मुराद पूरी हुई थी। अपनी खुशी को वह सब में बांटना चाहती थी। उसने काने को आवाज लगाई। उस समय काने के खोखे पर गुटके, पान, पानमसाला और सिगरेट के ग्राहक थे। उसने भी वहीं से जवाब दिया,’’चाची ग्राहक निपटा कर आता हूँ।’’इस कालौनी में इस पीढ़ी के कुछ रिवाज थे। मसलन संबोधन में चाचा, काका, मौसी, भुआ, ताऊ आदि शब्दों से पुकारते थे। मामूली अपंग का नाम बचपन में उसके माँ बाप प्यार से बच्चे का जो मरज़ी रक्खें, पर  बड़े होने पर लोग नामकरण अपने आप अपंगता के अनुसार कर देते हैं। एक आँख खराब है तो काना, टाँग में कमी है तो लंगड़ा, मुंह पर चेचक के दाग हैं तो नाम है छेदी, छेदीलाल या छेदी राम। अगर कोई लड़का किसी लड़की को भगा कर ले जाता है और वो कुछ समय बाद लौट आते हैं और अपनी गृहस्थी बसा लेते हैं तो उस लड़की का नाम कुछ समय तक भगौड़ी रहता है। परशोतम  इस प्रकार के नामकरण से बचा हुआ था। काने का खोखा इनके घर से दिखाई देता था। काने ने इनकी छत किराये पर ले रक्खी थी। छत पर उसने तिरपाल और गत्तों से सोने और सामान रखने की जगह जगह बना रक्खी थी और अपने खोखे की रात में निगरानी भी कर लेता था। दिन में सरोजा के घर की और मौहल्ले की सूचनाएं इक्ट्ठी करके सरोजा को देता था। उसके खोखे पर हमेशा एक दो आवारा किस्म के लड़के खड़े रहते थे। उनका एक ही काम था, स्टाइल में रहना और ध्यान रखना कौन सी लड़की कितने घरों में काम करती है। उसमें से अपने लायक योग्य लड़की से इश्क कैसे लड़ाया जाये, इस पर विचार करना आदि। काने के आते ही सरोजा ने उसके आगे तश्तरी में दो लड्डू और पानी का गिलास रक्खा और चांदनी को बुला कर कहा,’’देख री, ये काना मेरे लिए बेटे से बढ़ कर है, इस नाते तेरा ये जेठ है। कोई भी काम रात के बारह बजे भी इसे कहती हूं। ये कभी जवाब नहीं देता।’’ वो तो पलक झपके बिना चांदनी को निहार रहा था। पता नहीं क्यों आज काने को अपने लिए चांदनी के सामने काना कहे जाना अच्छा नहीं लगा, उसका मुंह लटक गया। चांदनी निगाह और गर्दन दोनो नीची करके खड़ी रही। उसने काने की ओर आंख उठा कर भी नहीं देखा। इतने में परशोतम ने चांदनी चांदनी की पुकार मचा दी। सरोजा ने कहा,’’जाकर अंदर बैठ, चांदनी अंदर चली गई। काने के चेहरे की लटकन गायब होकर, उस पर मुस्कान लौट आई। सरोजा ने उससे सलाह की कि परशोतम की शादी की दावत कैसे करें? काने ने सलाह दी कि सोमवार को मार्किट की छुट्टी होती है। परसों ही सोमवार है। सतनारायण भगवान जी की कथा करवा कर, सबका खाना कर दो। सरोजा बोली,’’मैं जनानी जान, कैसे ये सब कर पाउंगी? बेटा तूं ही सब इंतजाम करियों और देखियो। मैं तो बस पैसे ही दे सकूं।’’वहाँ के बाशिंदे ही तो नामी हलवाइयों के कारीगर थे। हम सब को भी दावत का बुलावा था। उसने शाम का समय रक्खा था। हम लोग पहुंचे तो राजरानी वहाँ पहले से ही बैठी थी। कथा लगभग समापन पर थी। उसने इशारा करके मुझे और अराधना को अपने पास बिठाया। हमारे बैठते ही फुसफुसा कर बोली,’’दीदी चांदनी बहुत ही सुंदर है।’’सामने देखा, परशोतम के बाएं ओर घूंघट में गर्दन झुकाए चांदनी बैठी हुई थी। आरती के बाद सरोजा ने खाने के लिए हमें शामियाने  में न बिठा कर अंदर बिठाया। चांदनी ने उनके रिवाज के अनुसार हमारी घुटनों तक टांगें दबा दबा कर पांव छुए। हम उसे रोकना भूल कर, एकटक उसका चेहरा देखते रह गए। अराधना  बोली,’’इसकी तो उम्र भी कम है।’’सरोजा ने जबाब दिया,’’दीदी, बूढ़े तोते राम राम नहीं सीखते। छोटी है न जैसी चलाउंगी वैसी चलेगी।’’खाना भी ग़़ज़ब का स्वाद था।    क्रमशः