शादी की दावत निपट गई। सरोजा की जिंदगी में भी सुख के दिन आए। सरोजा को अब सास का पद नसीब हुआ। उसने चांदनी को बड़े प्यार से अपने पास बिठा कर गृहस्थी के नियम समझाते हुए कहा,’’मैं हमेशा अपनी सास से पहले सुबह उठती थी। सब को खिला कर, चौका समेट कर, बरतन घिस कर बैठती थी। जो सास देती, वह खाती थी। फिजूल खर्ची कभी न की, जभी तो इत्ती बड़ी बिल्डिंग बना ली। कभी सास के पांव दाबे बिना न सोई। पर मैं ऐसी न हूं। जब तुझे भूख लगे, तूं खा लियो। बस मेरे परशोतम को खुश रखियो।’’ सास के प्रवचन सुन कर चांदनी ने सिर झुका कर हामी भर दी। और उसके पांव दाबने लगी। इतने में परशोतम ने चांदनी चांदनी का जाप शुरु का दिया। और सरोजा ने उसे सोने की परमीशन दे दी। चांदनी गर्दन झुकाए चल दी। सरोजा सोचने लगी कि उसका पति यदि उसकी सास के सामने ऐसे उसके लिए पुकार मचाता तो उसकी सास या ससुर उसे लट्ठ से पीटते। अब तो घोर कलयुग आ गया है। ये सोच कर वह सो गई, सुबह काम पर भी जाना है। मुंह अंधेरे चादंनी की नींद खुल गई। सास अभी सो ही रही थी। पीछे कमरे में ये सो रहे थे। आगे रसोई, बाथरुम के सामने की जगह पर सरोजा सो रही थी। सास की नींद खराब न हो इसलिए वह उठ कर काम भी नहीं कर सकती थी। दोबारा नींद न लग जाये और वह सोती रह जाए, सास उसके पहले जाग गई, तो नियम का उलघंन हो जायेगा न। हंसना और रोना तो वह जन्म लेते ही सीख गई थी। पराये घर जाना है इसकी तैयारी उसकी मां ने उससे खूब काम लेकर करवा दी थी। अब जिंदगी को कैसे जीना है? ये उसे सीखना है। जैसे ही सरोजा उठने को हुई, चांदनी उसके पैरों के पास जाकर खड़ी थी। उसके बैठते ही उसने सास के पैर छू लिए और चाय नाश्ता बनाने लगी। जीवन में पहली बार उसे नाश्ता परोसा गया था। नाश्ता करके सरोजा काम पर चली गई। खटर पटर और दो औरतों की बातों में भी परशोतम घोड़े बेच कर सोता ही रहा। परशोतम सो कर उठा। वह जो भी अपना काम करने लगता, चांदनी झटपट उसकी मदद को आती, वह गुस्से से उसका हाथ झटक देता। जब वह नहीं मानी तब उसने कठोर आवाज में कहा कि जब मैं मदद मांगूंगा तब देना। अब जब उसने नश्ता मांगा। तब उसने उसे गर्म गर्म उसे परोसा। घर के सब काम निपटा कर, नहा कर उसने दोपहर के खाने की तैयारी कर ली। सास आयेगी तो उसे गर्म रोटी खिलायेगी और ढूंढ ढूंढ के घर के काम निपटाने लगी। इतने में एक पड़ोसन सास की सहेली आई। पहले वह चांदनी को घूरने लगी, फिर घूरना स्थगित का बोली,’’क्यों री, हमारा छोरा अंधा है, तो इसका मतलब ये न है कि तूं सोक डाल के बैठी रहेगी। चल पहले श्रृंगार कर। सुहागिन है। कौन से शास्तर में लिखा है कि अंधे की लुगाई को श्रृंगार की मनाही है।" चांदनी जल्दी से सजने संवरने लगी, सास के आने से पहले ये सोच कर कि जब उसकी सहेली को इतना बुरा लगा है तो सास को कितना बुरा लगेगा उसका न सजना!! घर को सवारने में वह सुबह से ही जी जान से लगी हुई थी। अपने लिए उसने सोचा, वो सजे न सजे परशोतम को क्या र्फक पड़ेगा? पर यहां तो पति को छोड़, सबको पड़ने लगा था। सरोजा तो घर में कदम रखते ही खिल गई। घर और बहू को सजा देख कर। क्रमशः
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Tuesday, 10 December 2019
सजना है मुझे, सजना के लिए हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 7 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 7 Neelam Bhagi नीलम भागी
शादी की दावत निपट गई। सरोजा की जिंदगी में भी सुख के दिन आए। सरोजा को अब सास का पद नसीब हुआ। उसने चांदनी को बड़े प्यार से अपने पास बिठा कर गृहस्थी के नियम समझाते हुए कहा,’’मैं हमेशा अपनी सास से पहले सुबह उठती थी। सब को खिला कर, चौका समेट कर, बरतन घिस कर बैठती थी। जो सास देती, वह खाती थी। फिजूल खर्ची कभी न की, जभी तो इत्ती बड़ी बिल्डिंग बना ली। कभी सास के पांव दाबे बिना न सोई। पर मैं ऐसी न हूं। जब तुझे भूख लगे, तूं खा लियो। बस मेरे परशोतम को खुश रखियो।’’ सास के प्रवचन सुन कर चांदनी ने सिर झुका कर हामी भर दी। और उसके पांव दाबने लगी। इतने में परशोतम ने चांदनी चांदनी का जाप शुरु का दिया। और सरोजा ने उसे सोने की परमीशन दे दी। चांदनी गर्दन झुकाए चल दी। सरोजा सोचने लगी कि उसका पति यदि उसकी सास के सामने ऐसे उसके लिए पुकार मचाता तो उसकी सास या ससुर उसे लट्ठ से पीटते। अब तो घोर कलयुग आ गया है। ये सोच कर वह सो गई, सुबह काम पर भी जाना है। मुंह अंधेरे चादंनी की नींद खुल गई। सास अभी सो ही रही थी। पीछे कमरे में ये सो रहे थे। आगे रसोई, बाथरुम के सामने की जगह पर सरोजा सो रही थी। सास की नींद खराब न हो इसलिए वह उठ कर काम भी नहीं कर सकती थी। दोबारा नींद न लग जाये और वह सोती रह जाए, सास उसके पहले जाग गई, तो नियम का उलघंन हो जायेगा न। हंसना और रोना तो वह जन्म लेते ही सीख गई थी। पराये घर जाना है इसकी तैयारी उसकी मां ने उससे खूब काम लेकर करवा दी थी। अब जिंदगी को कैसे जीना है? ये उसे सीखना है। जैसे ही सरोजा उठने को हुई, चांदनी उसके पैरों के पास जाकर खड़ी थी। उसके बैठते ही उसने सास के पैर छू लिए और चाय नाश्ता बनाने लगी। जीवन में पहली बार उसे नाश्ता परोसा गया था। नाश्ता करके सरोजा काम पर चली गई। खटर पटर और दो औरतों की बातों में भी परशोतम घोड़े बेच कर सोता ही रहा। परशोतम सो कर उठा। वह जो भी अपना काम करने लगता, चांदनी झटपट उसकी मदद को आती, वह गुस्से से उसका हाथ झटक देता। जब वह नहीं मानी तब उसने कठोर आवाज में कहा कि जब मैं मदद मांगूंगा तब देना। अब जब उसने नश्ता मांगा। तब उसने उसे गर्म गर्म उसे परोसा। घर के सब काम निपटा कर, नहा कर उसने दोपहर के खाने की तैयारी कर ली। सास आयेगी तो उसे गर्म रोटी खिलायेगी और ढूंढ ढूंढ के घर के काम निपटाने लगी। इतने में एक पड़ोसन सास की सहेली आई। पहले वह चांदनी को घूरने लगी, फिर घूरना स्थगित का बोली,’’क्यों री, हमारा छोरा अंधा है, तो इसका मतलब ये न है कि तूं सोक डाल के बैठी रहेगी। चल पहले श्रृंगार कर। सुहागिन है। कौन से शास्तर में लिखा है कि अंधे की लुगाई को श्रृंगार की मनाही है।" चांदनी जल्दी से सजने संवरने लगी, सास के आने से पहले ये सोच कर कि जब उसकी सहेली को इतना बुरा लगा है तो सास को कितना बुरा लगेगा उसका न सजना!! घर को सवारने में वह सुबह से ही जी जान से लगी हुई थी। अपने लिए उसने सोचा, वो सजे न सजे परशोतम को क्या र्फक पड़ेगा? पर यहां तो पति को छोड़, सबको पड़ने लगा था। सरोजा तो घर में कदम रखते ही खिल गई। घर और बहू को सजा देख कर। क्रमशः
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