कुमार ने इनको समझाया कि पैसों का ज़िक्र किसी से भी नहीं करना और सारा पैसा सरोजा के परिवार के नाम से बैंक में सुरक्षित किसी न किसी योजना में लगा दिया। इस पैसे को सरोजा की तेहरवीं में भी खर्च करने को नहीं दिया। परशोतम ने अपनी जमापूंजी से सब संस्कार निपटाये। शर्मा जी ने परशोतम को समझाया था कि सरोजा को टोनू मोनू को पढ़ाने का बहुत शौक था और स्कूल के रास्ते में वो मरी है इसलिए ये पैसा बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करना होगा। परशोतम को सब समझ आ गया। सरोजा की सहेली संतोशी ने इतने दिन सरोजा और चांदनी का काम संभाला इसलिये चांदनी ने सरोजा के काम उसको दे दिए। आराधना और कुमार के काम चांदनी ने अपने पास रक्खे। संतोशी सुबह काम पर जाते समय टोनू मोनू को स्कूल छोड़ देती। चांदनी दोनों घरों का सब काम खत्म करके, लौटते हुए बच्चों को ले आती। शुरु में लगा था कि सरोजा के बिना कैसे घर चलेगा? पर हिसाब के लेक्चरार मि. कुमार ने सब मैनेज़ कर दिया कर दिया। परशोतम भी दुख से उबर गया और पहले की तरह काने के खोखे पर बैठने लगा और रेडियो सुनने लगा। चांदनी की सीढ़ियां चढ़ कर और शारीरिक श्रम से उसकी गज़ब की फिटनैस थी। दोनो कामकाजी मैडम के कपड़े पहनती। खाना बनाने के कारण साफ सुथरी रहती। जब बच्चों को स्कूल से लेकर लौटती, टोनू मोनू खोखे पर बाप को देख कर, दौड़ कर उसका हाथ पकड़ कर घर की ओर चल पड़ते। वहां खड़े एक दो छिछोरे चांदनी को देख कर बोलते,’’लाटरी तो परशोतम की निकली है।’ चांदनी की तारीफ सुनकर उसका मूड खराब हो जाता। परशोतम को छुट्टी का दिन बहुत बुरा लगता था। बच्चे घर पर उधम मचाते थे। चांदनी जब काम से थकी हुई घर आती तो वह उसे जली कटी सुनाता। उसे लगता कि आज ये देर से आई है। बेमतलब उस पर दो चार अभियोग लगा देता। मसलन ’आ गई अपने यारों से मिलकर’। सुन कर वो चुप लगा जाती। ताकि उसका गुस्सा शांत हो जाये। क्योंकि अगर पीटने लगा तो सरोजा भी नहीं है बचाने को। जब तक पड़ोसी बचाने आयेंगे ये कई छड़ियां उस पर बरसा देगा। कमरे के एरिया का उसे पूरा पता था जब गुस्से में छड़ी घुमाता तो छड़ी लगती जरुर थी। इसलिये चांदनी कोई ऐसा काम नहीं करती थी कि परशोमत को गुस्सा आये। एक दिन मिसेज कुमार को भयानक पेट में दर्द हुआ। तुरंत नर्सिंग होम लेकर गये। कई टैस्ट हुए। डॉक्टर ने रिर्पोट देख कर कहा कि गॉल ब्लैडर निकालना पड़ेगा। ऑपरेशन में पता चला कि उनको कैंसर है। अपने जीवन के लगभग डेढ़ साल वो निकाल देंगी। दो दिन आईसीयू में रहीं। दोनो बेटे बहू विजिट कर जाते। जब रुम में आईं तो वे बुके लेकर विजिट करने आते थे। दो आया रख दीं थी, उनकी देखभाल के लिए, एक जाती दूसरी आती थी। उन्होंने मीनू को नहीं बताया कि उसे कैंसर है। घर आये तो कम से कम एक महीने का बैड रैस्ट था। कौन कराए? वर्किंग बेटे बहुओं ने कहा कि वे उनके पास आ जाएं। कुमार नहीं माने वो कोठी भी उन्हीं की बनाई हुई थी। पर वे मीनू को लेकर इसी घर में आये। आराधना को मीनू की बीमारी के बारे में बताया। वो सुनकर बहुत दुखी हुई। मीनू उनसे दिल की बातें करती थी। कर क्या सकती थी! अकेली बैठ कर खूब रो ली। कुमार ने चांदनी से कहा कि सुबह नौ से शाम छ बजे तक रहने के लिए कोई मेड भेज दे। चांदनी अच्छा बोल कर आ गई। घर आकर उसने परशोतम से कहा। सरोजा तो यहां सबको जानती थी पर किसी की नियत खराब होते भला पता चलता है!!उनका तो रुपया पैसा सब ऐसे ही रक्खा रहता है। परशोतम ने कहा कि एक महीने की बात है तूं ही रुक जा। क्रमशः
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Wednesday, 15 January 2020
न तो हम बेवफा हैं न, हम झूठे हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 13 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 13 Neelam Bhagi नीलम भागी
कुमार ने इनको समझाया कि पैसों का ज़िक्र किसी से भी नहीं करना और सारा पैसा सरोजा के परिवार के नाम से बैंक में सुरक्षित किसी न किसी योजना में लगा दिया। इस पैसे को सरोजा की तेहरवीं में भी खर्च करने को नहीं दिया। परशोतम ने अपनी जमापूंजी से सब संस्कार निपटाये। शर्मा जी ने परशोतम को समझाया था कि सरोजा को टोनू मोनू को पढ़ाने का बहुत शौक था और स्कूल के रास्ते में वो मरी है इसलिए ये पैसा बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करना होगा। परशोतम को सब समझ आ गया। सरोजा की सहेली संतोशी ने इतने दिन सरोजा और चांदनी का काम संभाला इसलिये चांदनी ने सरोजा के काम उसको दे दिए। आराधना और कुमार के काम चांदनी ने अपने पास रक्खे। संतोशी सुबह काम पर जाते समय टोनू मोनू को स्कूल छोड़ देती। चांदनी दोनों घरों का सब काम खत्म करके, लौटते हुए बच्चों को ले आती। शुरु में लगा था कि सरोजा के बिना कैसे घर चलेगा? पर हिसाब के लेक्चरार मि. कुमार ने सब मैनेज़ कर दिया कर दिया। परशोतम भी दुख से उबर गया और पहले की तरह काने के खोखे पर बैठने लगा और रेडियो सुनने लगा। चांदनी की सीढ़ियां चढ़ कर और शारीरिक श्रम से उसकी गज़ब की फिटनैस थी। दोनो कामकाजी मैडम के कपड़े पहनती। खाना बनाने के कारण साफ सुथरी रहती। जब बच्चों को स्कूल से लेकर लौटती, टोनू मोनू खोखे पर बाप को देख कर, दौड़ कर उसका हाथ पकड़ कर घर की ओर चल पड़ते। वहां खड़े एक दो छिछोरे चांदनी को देख कर बोलते,’’लाटरी तो परशोतम की निकली है।’ चांदनी की तारीफ सुनकर उसका मूड खराब हो जाता। परशोतम को छुट्टी का दिन बहुत बुरा लगता था। बच्चे घर पर उधम मचाते थे। चांदनी जब काम से थकी हुई घर आती तो वह उसे जली कटी सुनाता। उसे लगता कि आज ये देर से आई है। बेमतलब उस पर दो चार अभियोग लगा देता। मसलन ’आ गई अपने यारों से मिलकर’। सुन कर वो चुप लगा जाती। ताकि उसका गुस्सा शांत हो जाये। क्योंकि अगर पीटने लगा तो सरोजा भी नहीं है बचाने को। जब तक पड़ोसी बचाने आयेंगे ये कई छड़ियां उस पर बरसा देगा। कमरे के एरिया का उसे पूरा पता था जब गुस्से में छड़ी घुमाता तो छड़ी लगती जरुर थी। इसलिये चांदनी कोई ऐसा काम नहीं करती थी कि परशोमत को गुस्सा आये। एक दिन मिसेज कुमार को भयानक पेट में दर्द हुआ। तुरंत नर्सिंग होम लेकर गये। कई टैस्ट हुए। डॉक्टर ने रिर्पोट देख कर कहा कि गॉल ब्लैडर निकालना पड़ेगा। ऑपरेशन में पता चला कि उनको कैंसर है। अपने जीवन के लगभग डेढ़ साल वो निकाल देंगी। दो दिन आईसीयू में रहीं। दोनो बेटे बहू विजिट कर जाते। जब रुम में आईं तो वे बुके लेकर विजिट करने आते थे। दो आया रख दीं थी, उनकी देखभाल के लिए, एक जाती दूसरी आती थी। उन्होंने मीनू को नहीं बताया कि उसे कैंसर है। घर आये तो कम से कम एक महीने का बैड रैस्ट था। कौन कराए? वर्किंग बेटे बहुओं ने कहा कि वे उनके पास आ जाएं। कुमार नहीं माने वो कोठी भी उन्हीं की बनाई हुई थी। पर वे मीनू को लेकर इसी घर में आये। आराधना को मीनू की बीमारी के बारे में बताया। वो सुनकर बहुत दुखी हुई। मीनू उनसे दिल की बातें करती थी। कर क्या सकती थी! अकेली बैठ कर खूब रो ली। कुमार ने चांदनी से कहा कि सुबह नौ से शाम छ बजे तक रहने के लिए कोई मेड भेज दे। चांदनी अच्छा बोल कर आ गई। घर आकर उसने परशोतम से कहा। सरोजा तो यहां सबको जानती थी पर किसी की नियत खराब होते भला पता चलता है!!उनका तो रुपया पैसा सब ऐसे ही रक्खा रहता है। परशोतम ने कहा कि एक महीने की बात है तूं ही रुक जा। क्रमशः
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