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Sunday, 19 January 2020

आशि़क़ होने की कोई उम्र नहीं होती! हाय! मेरी इज्जत का रखवाला भाग 17 Hai Mere Izzat Ka Rakhwala Part 17 Neelam Bhagi नीलम भागी


मैं और आराधना संस्कार के अगले दिन मातमपुरसी के लिए चांदनी के पास गये। परशोतम को वह दिल की गहराइयों से प्यार करती थी। एक ही दिन में उसका रुप फीका पड़ गया था। हमें देख कर फफक फफक कर रोने लगी। जब रो कर शांत हुई तो आराधना ने समझाया कि परशोतम तो अब लौट नहीं सकता। इस समय हिम्मत सरोजा की जिंदगी से आयेगी। उसने अकेली ने उसे पाला पोसा, जिसको हर वक्त सहारे की जरुरत थी। सुनकर चांदनी की कमर कुछ सीधी हुई। हमें धीरे से बोली,’’दीदी संतोषी आपको शिकायत का मौका नहीं देगी। मैं उनके सभी संस्कार पंडित जी के कहे अनुसार करवाउंगी ताकि अगले जनम में भगवान उनको आंखें लगा कर भेजे। उनके कारण हमेशा घर का दरवाजा खुला रहता था। रेडियो बंद है तो समझो वो सो रहें हैं। मैं अगर काम पर गईं हूं, तभी घर से बाहर जाते थे। उसके माता पिता चुपचाप मुंह नीचे किए बैठे थे। हमने कहा जैसे तेरे मन को शांति मिले वैसे कर। उसने उठ कर हमें दोनो घरों की चाबी दी और कहा कि वह तेरहवीं के बाद काम पर आयेगी। घर आये तो संतोषी कुमार का काम खत्म करके, हमारा इंतजार कर रही थी। आराधना ने उसे चार कप चाय बनाने को कहा क्योंकि मि. कुमार भी आकर बैठ गये। संतोषी चाय लाई तो आराधना ने उसे कहा,’’तूं भी अपनी चाय लेकर यहीं बैठ कर पी।’’आराधना ने उसके मुंह से परशोतम की मौत का पूरा किस्सा सुना। सब सुना कर संतोषी बोली,’’दीदी चांदनी को दुनियादारी बिल्कुल नहीं आती। उसके मरने पर चुपचाप आंसुओं से रोती रही। आंसू तो सूख जाते हैं। जब बिरादरी आई तो मैंने आगे जाकर इसका घूंघट खींच कर इसको दो हत्थड़ मार कर, कान में कहा कि हल्ला मचा कर रो, जैसे मैं रोई फिर इसकी ऐसी रुलाई फूटी कि घर की दीवारें भी हिल गई। दीदी अगर मैं ऐसा न करती तो इसके आंसू किसी ने न देखने थे। सबने बातें बनानी थी कि चांदनी ने शुकर किया कि अंधे से पीछा छूटा।’’इन दोनो घरो की तो जरुरत है चांदनी। संतोषी फिर चालू हो गई,’’ सरोजा और मेरा बचपन का साथ है। काम में भी हमने एक दूसरे का साथ दिया है। दीदी पता नहीं कहां कहां से रिश्तेदार आये हैं?  न हमने परशोतम के बाप के मरने पर इतने देखे! न उसकी शादी पर। शादीशुदा कुंवारों में टोनू मोनू को प्यार करने की होड़ लगी है। सब इसी ताक में लगे हैं कि उनके नाम की चूड़ी पहन ले। अभी ताजा ताजा घाव है न इसलिए हिम्मत नहीं कर रहें हैं। मेरे घर से कोई न कोई चांदनी के पास बैठा रहता है। काम से लौट कर मैं बैठ जाती हूं। बाहर के काम सब काना और मोनू देखता है। अब संतोषी जल्दी जल्दी काम निपटाने लगी। चांदनी के कारण हम सब दुखी थे। यहां तक की रूखे, सख्त और तने चेहरे वाले मैथ के रिटायर प्रोफेसर मि. कुमार का चेहरा भी चांदनी के दुख के कारण मुलायम होने लगा। उन्होंने आराधना से कहा कि चांदनी को फोन लगाओ और कहो कि कोई परेशानी हो तो हमें कभी भी फोन कर सकती है। आराधना ने उसी समय फोन कर उसे ऐसे ही कहा। क्रमशः